Chennakeshava Temple :चेन्नाकेशव मन्दिर चेन्नाकेशव स्वामी (भगवान विष्णु) को समर्पित है। चेन्नाकेशव का अर्थ है सुन्दर (चेन्ना) विष्णु (केशव)। सोप स्टोन (स्टीटाइट) से बने इस मन्दिर की नक्काशी असाधारण और शिल्पकला उत्कृष्ट है। इनके संयोग से उत्पन्न सौन्दर्य इतना अभिव्यंजक है कि सभी कलाकृतियां अत्यन्त सजीव प्रतीत होती हैं। मुख्य मन्दिर 178 फीट लम्बा और 156 फीट चौड़ा है।
न्यूज हवेली नेटवर्क
मैसूर से करीब तीन घण्टे का सफर कर हम हासन जिले के बेलूर (पूर्व नाम बेलापुरी) पहुंचे तो दिन ढल चुका था। दोपहर ढलने तक मैसूर के दर्शनीय स्थल देखने के बाद सड़क मार्ग की इस यात्रा ने हमें बेतरह थका दिया था। दरअसल, हमारी इस यात्रा का उद्देश्य होयसल काल में बनाये गये मन्दिरों को देखना और समझना था। कर्नाटक में होयसल वास्तुकला से सुशोभित करीब 90 मन्दिर हैं जिनमें से 35 अकेले हासन जिले में हैं। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार यागाची नदी के तट पर स्थित चेन्नाकेशव मन्दिर (Chennakeshava Temple) हमारी इस दर्शन-यात्रा का दूसरा पड़ाव था।
अगली सुबह हम जब अपने होटल से बाहर आये तो सात बज चुके थे। चेन्नाकेशव मन्दिर यहां से करीब ही था। हम पैदल ही चल दिए। कुछ ही देर में होयसल वास्तुकला की अनुपम कृति हमारे सामने थी। 103 साल में बनकर तैयार हुआ यह मन्दिर चेन्नाकेशव स्वामी (भगवान विष्णु) को समर्पित है। चेन्नाकेशव का अर्थ है सुन्दर (चेन्ना) विष्णु (केशव)। सोप स्टोन (स्टीटाइट) से बने इस मन्दिर की नक्काशी असाधारण और शिल्पकला उत्कृष्ट है। इनके संयोग से उत्पन्न सौन्दर्य इतना अभिव्यंजक है कि सभी कलाकृतियां अत्यन्त सजीव प्रतीत होती हैं। मुख्य मन्दिर 178 फीट लम्बा और 156 फीट चौड़ा है। इसमें कुल 48 अलंकृत खम्भे हैं। दूर से यह किसी तारे की तरह नजर आता है। इसके तीन प्रवेश द्वार हैं। 1433 में ईरान के यात्री अब्दुल रज़ाक ने इस मन्दिर के बारे में लिखा था कि वह इसके शिल्प के वर्णन करते हुए डरता है कि कहीं उसके प्रशंसात्मक कथन को लोग अतिशयोक्ति न समझ लें।
बेलूर के चेन्नाकेशव मन्दिर का इतिहास (History of Chennakeshava Temple of Belur)
होयसल नरेश विष्णुवर्धन ने इस मन्दिर (Chennakeshava Temple) का निर्माण 1117 ईस्वी में शुरू करवाया था। वास्तुकला की इस उत्कृष्ट कलाकृति का निर्माण पूरा कराने में इस राजवंश की तीन पीढ़ियों को 103 वर्ष लग गये। कहा जाता है कि इसके निर्माण में एक हजार से भी अधिक कारीगरों का योगदान रहा। इतिहासकारों के अनुसार राजा विष्णुवर्धन ने चोलों पर सैन्य विजय के उपलक्ष्य में इस मन्दिर का निर्माण कराया था। एक अन्य स्थानीय मान्यता के अनुसार इस मन्दिर का निर्माण राजा विष्णुवर्धन द्वारा जैन धर्म त्याग कर सनातन धर्म अपनाने के उपलक्ष्य में कराया गया था। विष्णुवर्धन जब जैन धर्म का पालन कर रहे थे तब उन्हे बिट्टीदेव कहा जाता था।
गोपुरम
यह मन्दिर चारों ओर से भित्तियों से घिरा हुआ है। इसके पूर्वी प्रवेश द्वार पर पांच तलों का विशाल गोपुरम है। आक्रमणकारियों ने मुख्य द्वार को नष्ट कर दिया था। विजयनगर साम्राज्य के काल में इसका पुनर्निर्माण किया गया। गोपुरम का निचला भाग कठोर पत्थर से जबकि ऊपरी भाग ईंट और गारे से बनाया गया है। इस पर देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बनायी गयी हैं। इसके दो सर्वोच्च कोनों पर गाय के सींग के आकार की दो संरचनाएं हैं, इसीलिए इसे गोपुरम कहा जाता है। इन दो सींगों के मध्य पांच सुनहरे कलश हैं।
मुख्य मन्दिर
इस मन्दिर का मुख्य भाग तारे के आकार का है जो एक मंच पर स्थापित है। इस मंच को जगती कहा जाता है। मंदिर में एक गर्भगृह, सुकनासी (ड्योढ़ी) और एक नवरंग मणडप है। यहां एक विमान अर्थात ईंट और गारे से निर्मित तथा सोने का पानी चढ़े हुए तांबे की चादरों से ढकी लकड़ी से संरक्षित संरचना थी। भीतरी गर्भगृह के रक्षण के लिए 19वीं शताब्दी में उसे खण्डित कर दिया गया था।
नवरंग मण्डप
इसमें प्रवेश करने के लिए पूर्व, उत्तर और दक्षिण दिशा में कुल मिलाकर तीन द्वार हैं। पूर्व दिशा में मकर तोरण द्वारा है। मुख्य द्वार के ऊपर स्थित पट्टिका पर भगवान विष्णु के दसों अवतारों को चित्रित किया गया है। द्वार के दोनों ओर बाघ के वध का दृश्य दो विशाल संरचनाओं द्वारा दर्शित किया गया है। यह होयसल राजवंश का राज प्रतीक भी है। इस प्रतीक के दोनों ओर भगवान विष्णु को समर्पित दो छोटे मन्दिर हैं। पूर्वी द्वार के दोनों ओर की भित्तियों पर राजदरबार का दृश्य है जिसमें बायीं ओर राजा विष्णुवर्धन जबकि दाहिनी ओर उनके पोते वीर बल्लाल हैं। पूर्वी द्वार के समक्ष गोपुरम की ओर एक सुनहरा ध्वजस्तम्भ है। इसके समक्ष भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ की आकृति है जिसका मुख मन्दिर की ओर है।
नवरंग मण्डप में अत्यन्त चमकीले पत्थरों से बने 48 स्तम्भ हैं जिन पर अद्भुत नक्काशी की गयी है। हर खम्भे का आकार एवं उसकी शैली भिन्न हैं। इन स्तम्भों में से मध्य में स्थित चार स्तम्भ सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। इन चार स्तम्भों में से भी सर्वाधिक विलक्षण स्तम्भ हैं दक्षिण-पश्चिम दिशा में तारे के आकार का मोहिनी स्तम्भ और दक्षिण-पूर्व दिशा में नरसिंह स्तम्भ। मोहिनी स्तम्भ पर भगवान विष्णु के मोहिनी रूप की विशाल प्रतिमा है। कहा जाता है कि किसी समय नरसिंह स्तम्भ अपनी ही धुरी पर गोल घूम सकता था लेकिन विमान को खण्डित किये जाने के पश्चात यह स्थिर हो गया।
मध्य में स्थित चार स्तम्भों के ऊपरी कोने चार कोष्ठक प्रतिमाओं द्वारा अलंकृत हैं। ये प्रतिमाएं हैं- शुक भाषिणी (अपने पालतू तोते से वार्तालाप करती नारी), रानी शान्तला देवी, गंधर्व नृत्य एवं केश श्रृंगार (स्नान के पश्चात अपने केशों से जल निचोड़ती नारी)। मण्डप की भीतरी छत का आकार दो संकेन्द्रित वर्ग के मध्य उलटे कमल जैसा है जबकि वर्ग का मध्य भाग उलटे शिवलिंग के समान है। आधार पर नरसिंह और मध्य में ब्रह्मा का प्रतीक कमल का पुष्प है। त्रिमूर्ति को पत्थर की एक शिला पर सांकेतिक रूप से प्रदर्शित किया गया है। इसे “त्रिमूर्ति संगम भुवनेश्वरी” कहा जाता है।
गर्भगृह
मण्डप का पश्चिमी भाग गर्भगृह की ओर ले जाता है। गर्भगृह में भगवान विष्णु की चतुर्भुज मुद्रा में छह फीट ऊंची भव्य प्रतिमा है। प्रभामण्डल युक्त यह प्रतिमा एक तीन फीट ऊंची पीठिका पर स्थापित है। भगवान विष्णु के ऊपरी दोनों हाथों में शंख एवं चक्र जबकि निचले दोनों हाथों में कमल और गदा हैं। प्रभामण्डल पर भगवान विष्णु के दस अवतारों को उत्कीर्ण किया गया है।
भीतरी गर्भगृह का प्रवेशद्वार मकर तोरण और फिलग्री कलाकृतियों से सुसज्जित है। प्रवेशद्वार के ऊपर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की मूर्तियां हैं। द्वार के दोनों ओर दो द्वारपालों जय और विजय की भव्य प्रतिमाएं हैं।
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बेलूर के चेन्नाकेशव मन्दिर के अन्य आकर्षण (Other attractions of Chennakeshava Temple of Belur)
मुख्य मन्दिर की बाहरी भित्तियों पर मानवों, पशुओं और देवी-देवताओं की भव्य प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। उत्तर दिशा में एक मंच पर एक विशाल पदचिन्ह है जिसे भगवान विष्णु का पदचिन्ह माना जाता है। मुख्य मन्दिर के अतिरिक्त इस संकुल में कप्पे चेन्निगरय मन्दिर, वीर नारायण मन्दिर, सौम्यानकि मन्दिर, आंडाल मन्दिर, कल्याण मण्डप (विवाह प्रांगण), पाकगृह, जलकुण्ड आदि हैं।
दीप स्तम्भ :
गोपुरम के बायीं ओर दक्षिण दिशा में स्थित दीप स्तम्भ 42 फिट ऊंचा है जिसे एकल शिला से बनाया गया है। इसे गुरुत्वाकर्षण विरोधी स्तम्भ भी कहा जाता है। यह एक ऊंची पीठिका पर बिना सम्बल अपने ही भार पर खड़ा है। उत्तरी दिशा में इसका आधार कुछ उठा हुआ है। इसके चलते पीठिका एवं स्तम्भ के मध्य कुछ अन्तर है जिसमें से कागज का टुकड़ा आसानी से पार हो सकता है। स्तम्भ के समीप जाने एवं पीठिका पर चढ़ने की अनुमति नहीं है।
देवी सरस्वती की प्रतिमा : यह प्रतिमा होयसल वास्तुकला के उत्क़ृष्ट उदाहरणों में से एक मानी जाती है। विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती को आमतौर पर आसन में विराज कर वीणा बजाते हुए दर्शाया जाता है पर यहां वह नृत्य मुद्रा में हैं। इसे गुरुत्वाकर्षण को ध्यान में रखकर कुछ इस तरह बनाया गया है कि अगर मूर्ति के सिर पर पानी डाला जाये तो वह नाक के नीचे बायीं ओर होता हुआ बायें हाथ की हथेली में आकर गिरता है। इसके बाद पानी की धारा दायें पैर के तलवे से होती हुई बायें पैर पर गिरती है।
वासुदेव सरोवर : परिसर के उत्तर पूर्व कोने में गोपुरम के दाहिने ओर एक छोटी कल्याणी अर्थात सीढ़ी युक्त जलकुण्ड अथवा बावड़ी है। इसके समीप स्थित शिलालेख में इसे वासुदेव सरोवर कहा गया है। इस जलकुणड के दूसरी ओर हाथी की दो मूर्तियां हैं। समीप ही दो छोटे मन्दिर भी हैं।
दर्शन का समय
सुबह से दोपहर – 07:30 बजे से 01:00 बजे तक
दोपहर से शाम – 02:30 बजे से 07:30 बजे तक
नोट : बेलूर जाने का सर्वोत्तम समय अक्टूबर से मार्च के मध्य का है।
बेलूर के उत्सव
वार्षिक रथोत्सव मार्च-अप्रैल में बेलूर में मनाया जाने वाला मुख्य त्योहार है जो उगादी या कन्नडिगा नववर्ष के 12 दिन बाद मानाया जाता है। 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव के दौरान एक मेला या जात्रे भी आयोजित किया जाता है।
ऐसे पहुंचें बेलूर के चेन्नकेशव मन्दिर (How to reach Chennakeshava Temple of Belur)
वायु मार्ग : निकटतम हवाईअड्डा मंगलौर (मंगलुरु) इण्टरनेशनल एयरपोर्ट बेलूर से करीब 151 किलोमीटर दूर है। मैसूर का मन्दाकली एयरपोर्ट यहां से करीब 162 किलोमीटर जबकि बंगलुरु का कैम्पेगौड़ा इण्टरेनशनल एयरपोर्ट लगभग 240 किलोमीटर पड़ता है।
रेल मार्ग : निकटतम बड़ा रेलवे स्टेशन हासन जंक्शन बेलूर से करीब 41 किलोमीटर दूर है। हासन के लिए बंगलुरु, मंगलौर, मैसूर,शिवमोगा, धारवाड़, हजरत निजामुद्दीन (दिल्ली) आदि से ट्रेन मिलती हैं।
सड़क मार्ग : बेलूर कर्नाटक की राजधानी बंगलुरु से करीब 220 किमी जबकि हासन से मात्र 38 किमी दूर है। बंगलुरु, मैसूर, हासन आदि से बेलूर के लिए नियमित रूप से बस चलती हैं।
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होयसल साम्राज्य यानी वास्तुकला का वैभव काल
होयसल साम्राज्य की स्थापना नृप काम द्वितीय (1026-1047) ने की थी। विष्णुवर्धन का पौत्र वीर बल्लाल इस वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा था। होयसल काल को विशेष रूप से उत्कृष्ट होयसल वास्तुकला के लिए स्मरण किया जाता है। होयसलों ने अपने पूरे साम्राज्य में डेढ़ हजार से अधिक मन्दिरों का निर्माण कराया था जिनमें से अब करीब 100 ही बचे हैं। दक्षिण भारत में कला, साहित्य, धर्म और समग्र आर्थिक-सामाजिक विकास के क्षेत्र में भी इस राजंवश का अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान रहा है। होयसल राजवंशी मूलतः सह्याद्रि के मलनाडू के रहने वाले थे। उन्होंने चालुक्य एवं कलचुरी राजवंशों के मध्य चल रहे आन्तरिक युद्ध का लाभ उठाते हुए कर्नाटक के कई क्षेत्रों पर आधिपत्य स्थापित किया था। तेरहवीं सदी तक कर्नाटक के अधिकतर क्षेत्रों तथा तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कई क्षेत्रों में उनके साम्राज्य का विस्तार चुका था। उन्होंने इस क्षेत्र में 317 वर्षों तक राज किया। आरम्भ में बेलूर उनकी राजधानी थी। कालान्तर में हैलेबिडु को अपनी राजधानी बनाया जिसे द्वारसमुद्र भी कहते हैं।
होयसल वास्तुकला 11वीं एवं 14वीं शताब्दी के बीच होयसल साम्राज्य के अन्तर्गत विकसित एक वास्तुकला शैली है जो ज़्यादातर दक्षिणी कर्नाटक क्षेत्र में केंद्रित है। होयसल मन्दिर हाइब्रिड या बेसर शैली के अन्तर्गत आते हैं क्योंकि उनकी अनूठी शैली न तो पूरी तरह से द्रविड़ है और न ही नागर। इन मन्दिरों में खम्भे वाले हॉल के साथ एक साधारण आन्तरिक कक्ष की बजाय एक केन्द्रीय स्तम्भ वाले हॉल के चारों ओर समूह में कई मन्दिर शामिल होते हैं और यह सम्पूर्ण संरचना एक जटिल डिजाइन वाले तारे के आकार में होती है।
होयसल वास्तुकला को हिन्दू वास्तुकला की सबसे शानदार उपलब्धियों के रूप में वर्णित किया जा सकता है। बेलूर और हलेबिड के मन्दिरों को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थलों के रूप में प्रस्तावित किया गया है।
विरूपाक्ष मन्दिर : भारतीय वास्तुकला की समृद्ध विरासत का गवाह
होयसल काल के प्रमुख मन्दिर
होयसलेश्वर मन्दिर (हालेबिदु), केदारेश्वर मन्दिर (हालेबिदु), केशव मन्दिर (सोमनाथपुरा), वीरनारायण मन्दिर (चिकमंगलूर), लक्ष्मी नरसिम्हा मन्दिर (नग्गेहल्ली), सदाशिव मन्दिर (नग्गेहल्ली), ईश्वर मन्दिर (अरसिकेरे), वीरनारायण मन्दिर (बेलवाड़ी), वीरनाराय़ण मन्दिर (गडग), ब्रह्मेश्वर मन्दिर (किक्केरी), पंचलिंगेश्वर मन्दिर (गोविंदनहल्ली), लक्ष्मी देवी मन्दिर (डोड्डगड्डवल्ली), लक्ष्मी नरसिम्हा मन्दिर (जगवल), भोग नरसिंह मन्दिर (शान्तिग्राम), चेन्नाकेशव मन्दिर (अनकेरे), लक्ष्मीनारायण मन्दिर (होसहोललु), ईश्वर मन्दिर (हासन), केदारेश्वर मन्दिर (हासन), बुसेस्वरा मन्दिर (हासन), बकेश्वर मन्दिर (कोरवंगला, हासन)।
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