“मामले के तथ्य स्पष्ट रूप से पद के दुरुपयोग को उजागर करते हैं और जब तथ्य इतने स्पष्ट हैं तो उचित नोटिस देने से इनकार करना कोई बड़ा उल्लंघन नहीं हो सकता है।”
नई दिल्ली। अपने समय में समाजवादी पार्टी (सपा) के कद्दावर नेता रहे उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री आजम खान (Azam Khan) को सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बड़ा झटका दिया। उनके मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट ने हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसमें रामपुर में जौहर स्कूल (Jauhar School) के लिए आवंटित सरकारी जमीन के पट्टे को रद्द कर दिया गया था और उत्तर प्रदेश सरकार को भूमि अधिग्रहण की इजाजत दे दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया।
याचिकाकर्ता आजम खान की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने पैरवी की। जिरह के दौरान उन्होंने कहा कि अभी इस स्कूल में 300 बच्चे पढ़ रहे हैं, लिहाजा इलाहाबाद हाई कोर्ट आदेश पर रोक लगाई जाए और प्रदेश सरकार के फैसले को रद्द किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा वाली पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि राज्य सरकार यह सुनिश्चित करे कि जौहर स्कूल में पढ़ रहे करीब 300 छात्रों का दाखिला दूसरे शैक्षणिक संस्थानों में हो सके। मुख्य न्यायाधीश ने फैसले को पढ़ते समय कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि आपके मुवक्किल (आजम खान) वास्तव में शहरी विकास मंत्रालय के प्रभारी कैबिनेट मंत्री थे और वह अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री थे। उन्होंने जमीन एक पारिवारिक ट्रस्ट को आवंटित करवाई जिसके वह आजीवन सदस्य हैं और लीज शुरू में एक सरकारी संस्थान के पक्ष में थी जो एक निजी ट्रस्ट से जुड़ी हुई है। एक लीज जो सरकारी संस्थान के लिए थी, उसे निजी ट्रस्ट को कैसे दिया जा सकता है?
दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रामपुर के मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट को सरकारी जमीन का पट्टा मामले में सपा नेता आजम खान के खिलाफ फैसला सुनाया था। मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट (Maulana Mohammad Ali Jauhar Trust) की कार्यकारिणी समिति की तरफ से हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी जिसको रद्द कर दिया गया। आजम खान मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं।
पद के दुरुपयोग का स्पष्ट मामला
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि मामले के तथ्य स्पष्ट रूप से पद के दुरुपयोग को उजागर करते हैं और जब तथ्य इतने स्पष्ट हैं तो उचित नोटिस देने से इनकार करना कोई बड़ा उल्लंघन नहीं हो सकता है। सीजेआई ने कहा कि यह पद का दुरुपयोग है।