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भीमबेटका (Bhimbetka) एक पुरापाषाणिक पुरातात्विक स्थल है। यहां की गुफाएं आदि-मानव द्वारा बनाये गये शैलाश्रयों और शैलचित्रों के लिए प्रसिद्ध है। यहां बनाये गये चित्र भारतीय उपमहाद्वीप में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न हैं। यहीं पर दुनिया की सबसे पुरानी पत्थर की दीवार और फर्श बने होने का प्रमाण मिलता है।

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विशाल गुप्ता

रेली से 780 किलोमीटर लम्बा सफर तय कर बरेली-मुम्बई लोकमान्य तिलक टर्मिनल साप्ताहिक एक्सप्रेस रानी कमलापति रेलवे स्टेशन पहुंची तो सुबह के साढ़े तीन बजने ही वाले थे। रात के अंधेरे की चादर में लिपटा भोपाल शहर भले ही सोया हुआ हुआ था पर भारत के सबसे आधुनिक रेलवे स्टेशनों में शुमार रानी कमलापति स्टेशन बदलते भारत की गवाही दे रहा था। ऐक्सेलेरेटर से हम बाहर आये और ऑटो रिक्शा कर आयोजकों के बताये अतिथि गृह की राह पकड़ी। दो दिन के सम्मेलन के समापन के बाद बहुत दिनों पश्चात मिले कुछ मित्रों के साथ गपशप शुरू हुई। चाय की चुस्कियों के बीच हुई चर्चा का निष्कर्ष यह रहा कि भोपाल तो हम सभी का कई-कई बार घूमा हुआ है, इस बार किसी नयी जगह चला जाये। अन्तोगत्वा भीमबेटका (Bhimbetka) के नाम पर सहमति बनी।

अगले दिन हमें तमिलनाडु एक्सप्रेस से नयी दिल्ली जाना था। यह ट्रेन सायंकाल आठ बजकर बीस मिनट पर भोपाल जंक्शन से रवाना होती है। यानी हमारे पास पूरा दिन था। सवेरे नाश्ता कर हम भीमबेटका के लिए रवाना हुए तो करीब सात बजे थे। लगभग सवा घण्टे में हम भोपाल के दक्षिण-पूर्व में लगभग 46 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भीमबेटका (Bhimbetka) में थे।

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भीमबेटका (Bhimbetka) मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में ओबेदुल्लागंज शहर से नौ किलोमीटर की दूरी पर विंध्य पहाड़ियों के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। यहां की विश्व प्रसिद्ध गुफाओं के दक्षिण में सतपुड़ा पहाड़ियों की क्रमिक श्रेणियां हैं। यह रातापानी वन्यजीव अभयारण्य के अन्दर है जो विंध्य रेंज की तलहटी में बलुआ पत्थर की चट्टानों में अंत:स्थापित है। भीमबेटका (Bhimbetka) साइट में सात पहाड़िया शामिल हैं- भीमबेटका, विनायका, भोंरावली, लाखा जुआर (पूर्व और पश्चिम), झोंद्रा और मुनि बाबा की पहाड़ी।

भीमबेटका (Bhimbetka) एक पुरापाषाणिक पुरातात्विक स्थल है। यहां की गुफाएं आदि-मानव द्वारा बनाये गये शैलाश्रयों और शैलचित्रों के लिए प्रसिद्ध है। यहां बनाये गये चित्र भारतीय उपमहाद्वीप में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न हैं। यहीं पर दुनिया की सबसे पुरानी पत्थर की दीवार और फर्श बने होने का प्रमाण मिलता है। भीमबेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (भोपाल मण्डल) ने अगस्त 1990 में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित किया था। जुलाई 2003 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।

भीमबेटका
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भीमबेटका (Bhimbetka) की पहाड़ी पर 750 से अधिक रॉक शेल्टर (चट्टानों की गुफाएं) पाए गये हैं। ये लगभग 10 किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हुए हैं। इस स्थान पर मौजूद सबसे पुराने चित्रों को आज से लगभग 30,000 साल पुराना माना जाता है। माना जाता है कि इन चित्रों में इस्तेमाल किए गये रंग वनस्पतियों से तैयार किए गये थे जोकि समय के साथ-साथ धुंधले होते चले गये। इन चित्रों को आन्तरिक दीवारों पर गहरा बनाया गया था।

भीमबेटका का इतिहास (History of Bhimbetka)

भीमबेटका
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भीमबेटका का नाम महाभारत महाकाव्य में वर्णित पाण्डु पुत्रों में से एक भीम से जोड़ा जाता है। भीमबेटका (Bhimbetka) शब्द भीमबैठका से लिया गया है जिसका अर्थ है “भीम के बैठने की जगह”। माना जाता है कि अपने आज्ञातवास की अवधि में पाण्डव यहीं पर रहे थे। भीमबेटका का इतिहास बहुत पुराना है। सन् 1888 के दौरान एक ब्रिटिश अधिकारी डब्लू किन्काइद ने एक विद्वान के पत्र के माध्यम से भीमबेटका का वर्णन किया था। उन्होंने भोजपुर क्षेत्र के आदिवासियों से मिली जानकारी के आधार पर इस क्षेत्र को एक बौद्ध स्थल के रूप में स्थान दिया। इन गुफाओं की खोज पुरातत्ववेत्ता डॉ. विष्णु श्रीधरवाकणकर ने की थी। उज्जैन के विक्रम विश्‍वविद्यालय में प्राध्यापक डॉ. वाकणकर 1957-58 में परम्परागत मार्ग से बहुत दूर भटक कर इस प्रागैतिहासिक खजाने के बीच में पहुंच गये। यहां की चट्ट्नी संरचनाओं को देखने के बाद उन्होंने एक टीम बनाकर इस क्षेत्र का फिर दौरा किया। उन्हें ऐसा लगा की ये रॉक शेल्टर वैसे ही हैं जैसे फ्रांस और स्पेन में देखे गये थे। उन्होंने ही इन प्रागैतिहासिक शैल आश्रयों के बारे में प्रामाणिक जानकारी दुनिया को दी।

भीमबेटका सभागार गुफा (Bhimbetka Auditorium Cave)

भीमबेटका
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ऑडिटोरियम रॉकया भीमबेटका सभागार गुफा भीमबेटका (Bhimbetka) का सबसे बड़ा आकर्षण और शैलाश्रय है। क्वार्ट्जाइट टावरों से घिरी यह गुफा कई किलोमीटर दूर से दिखाई देती है। रॉबर्ट बेड्नारिक ने इस गुफा का वर्णन “कैथेड्रल-जैसे” वातावरण के साथ किया है जिसमें “इसके गोथिक मेहराब और बड़े स्थान” शामिल हैं। इसकी रचना चार कार्डिनल दिशाओं से जुड़ी अपनी चार शाखाओं के साथ एक “समकोण क्रॉस” जैसा दिखती है। मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है। इस पूर्वी मार्ग के अन्त में गुफा के प्रवेश द्वार पर एक पास-ऊर्ध्वाधर पैनल के साथ एक बोल्डर है। यह बोल्डर सभी दिशाओं से दिखाई देता है। पुरातत्व साहित्य में इस बोल्डर का “चीफ रॉक” और “किंग्स रॉक” के रूप में वर्णन किया गया है।

भीमबेटका की चित्रकला (Paintings of Bhimbetka)

भीमबेटका
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भीमबेटका की गुफाएं मानव द्वारा बनाए गये शैलाश्रयों और शैल चित्रों के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां के 275 शैलाश्रयों में चित्र बने हुए हैं। इन चित्रों को मुख्य रूप से दो समूहों में वर्गीकृत किया गया है। पहला, शिकारी और भोजन इकट्ठा करने वाले तथा दूसरा, योद्धाओं और घोड़ा-हाथियों पर सवारों का जिनके हाथों में धातु के हथियार हैं। चित्रों का पहला समूह प्रागैतिहासिक काल का है जबकि दूसरा ऐतिहासिक समय का है। ऐतिहासिक काल के अधिकतर चित्रों में तलवार, भाले, धनुष और तीर चलाने वाले योद्धाओं के बीच लड़ाई को दर्शाया गया है। हालांकि ये गुफाएं मुख्य रूप से प्रागैतिहासिक काल की चित्रों के लिए लोकप्रिय हैं।

भीमबेटका
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इन गुफाओं की विशेषता यह है कि चट्टानों पर हजारों वर्ष पूर्व बनाए गये चित्र आज भी मौजूद हैं। अधिकतर चित्र लाल और सफेद रंग के हैं। कुछ चित्रों को पीले और हरे रंग के बिन्‍दुओं से सजाया गया है। यहां की चट्टानों पर वन्यप्राणियों के शिकार के दृश्यों के अलावा शेर, बाघ, घोड़ा, हाथी, जंगली सूअर, कुत्ते आदि के चित्र उकेरे गये हैं। वाद्ययन्त्र वादन, शिकार करने, घोड़ों और हाथियों की सवारी, शरीर पर आभूषणों को सजाने, शहद जमा करने आदि के चित्र भी प्रचुर संख्या में हैं। कई गुफाओं की चट्टानें धार्मिक संकेतों से सजी हुई हैं। यहां की एक चट्टान जिसे चिड़िया चट्टान कहा जाता है, पर हिरन, जंगली भैंसा, हाथी और बारहासिंघा को चित्रित किया गया है। एक गुफा में त्रिशूल के समान हथियार लेकर नृत्य कर रहे व्यक्ति की आकृति है। डॉ. वीएस वाकणकर ने इसे “नटराज” नाम दिया है। अनुमान लगाया गया है कि भीमबेटका के कम से कम 100 चित्रों को मिटा दिया गया होगा या वह स्वयं ही नष्ट हो गये होंगे।

भीमबेटका
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यहां पर कुछ अन्य पुरावशेष भी मिले हैं जिनमें प्राचीन किले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग और गुप्त कालीन अभिलेख एवं परमार कालीन मन्दिर के अवशेष शामिल हैं। शंख लिपि के अभिलेख भी यहां प्राय: देखने को मिलते हैं जो अभी तक पढ़े नहीं जा सके हैं।

भीमबेटका के निकटवर्ती पुरातात्विक स्थल (Archaeological sites near Bhimbetka)

भीमबेटका के पास ही पेंगावन (Pengawan) में 35 शैलाश्रय पाए गये हैं जो अति दुर्लभ माने गये हैं। इन सभी शैलचित्रों की प्राचीनता दस हजार वर्ष से ज्यादा की आंकी गयी है। भीमबेटका की तरह के ही प्रागैतिहासिक शैलचित्र रायसेन जिले में ही बरेली तहसील के पाटनी गांव में मृगेन्द्रनाथ की गुफा और होशंगाबाद के निकट आदमगढ़ में, होशंगाबाद के पास बुधनी की एक पत्थर खदान में, रायगढ़ जिले के सिंघनपुर के निकट कबरा पहाड़ की गुफाओं में, छतरपुर जिले के बिजावर की निकटस्थ पहाड़ियों पर तथा भोपाल-रायसेन मार्ग पर भोपाल के निकट की पहाड़ियों पर (चिडिया टोल) भी मिले हैं।

भीमबेटका के आसपास के दर्शनीय स्थान (Places to visit around Bhimbetka)

रातापानी वन्यजीव अभयारण्य

रायसेन किला (66 किमी)

सांची (91 किमी, वाया एनएच 46)

भोपाल (46 किलोमीटर)

होशंगाबाद (37 किमी)

भोजपुर (26 किलोमीटर)

सलकनपुर माता मन्दिर (47 किमी)

भीमबेटका कब जायें (When to go to Bhimbetka)

भीमबेटका
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भीमबेटका घूमने के लिए सबसे अच्छा और आदर्श समय अक्टूबर से मार्च के बीच का है। इस समय जलवायु अनुकूल होती है। बारिश का मौसम भी यहां घूमने के लिए अच्छा माना जाता है। आप चाहें तो बारिश के मौसम में भी यहां की सैर पर बिना किसी झिझक के निकल सकते है। गर्मी के मौसम में यहां जाने की सलाह हम कतई नहीं देंगे। आसमान से आग बरसाते सूरज और चट्टानों के तपने की वजह से बढ़ा तापमान शरीर की सारी ऊर्जा को मानो सोख लेता है।

ऐसे पहुंचें भीमबेटका (How to reach Bhimbetka)

भीमबेटका
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भीमबेटका भले ही रायसेन जिले में है पर भोपाल और होशंगाबाद शहर यहां से पास पड़ते हैं। भोपाल की वायु, रेल और सड़क कनेक्टिविटी बहुत अच्छी है। इसलिए बाहर से आने वाले पर्यटकों और पुरातत्व प्रेमियों के लिए वाया भोपाल ही यहां पहुंचना सुविधाजनक रहेगा। यह दिल्ली से करीब 835, मुम्बई से लगभग 821, कोलकाता से करीब 1400 (वाया राष्ट्रीय राजमार्ग 19) और चेन्नई से लगभग 1436 किलोमीटर दूर है।

वायु मार्ग : निकटतम हवाईअड्डा भोपाल का राजा भोज एयरपोर्ट यहां से करीब 57 किलोमीटर पड़ता है।

रेल मार्ग : भीमबेटका के लिए कोई सीधी रेल कनेक्टिविटी नहीं है। होशंगाबाद का नर्मदापुरम रेलवे स्टेशन यहां से करीब 36 किलोमीटर दूर है। भोपाल का रानी कमलापति रेलवे स्टेशन (पूर्व नाम हबीबगंज जंक्शन) और भोपाल जंक्शन यहां से क्रमशः 40 और 47 किलोमीटर पड़ते हैं। ये तीनों बड़े स्टेशन हैं और देश के प्रमुख स्थानों के साथ रेल नेटवर्क से जुड़े हैं। हालांकि अब्दुल्लागंज (9 किमी) और मण्डीदीप (26 किमी) निकटतम रेलवे स्टेशन हैं पर इन दोनों पर गिनीचुनी ट्रेनों का ही ठहराव है।

सड़क मार्ग : होशंगाबाद और भोपाल से यहां के लिए बस और टैक्सी मिलती हैं।

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