पर्यावरण संरक्षण को समर्पित नेपाल के नेपालगंज का “नेपालगंज साइकिलिंग क्लब” समय-समय पर “नेपालगंज साइकिल फेस्टिवल” के अन्तर्गत “टूर द ठाकुरद्वारा” (Tour The Thakurdwara) आयोजित करता रहता है। इस प्रतिष्ठित आयोजन में शामिल होने के लिए दुनियाभर से शौकिया साइकिलिस्ट नेपाल पहुंचते हैं। पिछले दिनों आयोजित इस टूर में भारत के कई साइकिलिस्ट भी शामिल हुए। इनमें से बरेली निवासी संजीव जिन्दल के अनुभवों को हमने कुछ दिन पहले प्रकाशित किया था। इसी कड़ी में इस बार प्रस्तुत है इस टूर में शामिल बरेली निवासी कक्षा 12 के छात्र शिवांकर गंगवार की डायरी में दर्ज रोचक संस्मरण।
पहला दिन (आठ फरवरी 2024)
सुबह-सुबह मम्मी की आवाज से मेरी नींद दूटी,“जिन्दल बाबा (संजीव जिन्दल) आ गय़े हैं, फटाफट तैयार हो जाओ।” जल्दी से फ्रेश होकर नीचे आया तो देखा बाबा ड्राइंग रूम में बैठे थे और पापा अभी तक बाथरूम में ही थे। मम्मी ने पूड़ी-सब्जी बना दी थी। नाश्ता करने के बाद हम निकल लिये एक अनोखी और अद्भुत यात्रा पर। इससे पहले की हर यात्रा में पापा के साथ मैं, मम्मी और दोनों छोटे भाई होते थे। इस बार की यात्रा में मैं, पापा और जिन्दल बाबा थे।
रास्ते में पापा ने अपने नेपाली दोस्तों के लिए मिठाई के चार डिब्बे खरीदे। बीसलपुर, बिलसण्डा, खुटार और लखीमपुर (खीरी) कब पार कर लिया, पता ही नहीं चला। लखीमपुर क्रॉस करने के बाद एक ढाबे पर पापा और जिन्दल बाबा ने चाय पी और मैंने कोल्ड ड्रिंक। यहां से करीब दो घण्टे में हम लोग रुपईडीहा बॉर्डर पहुंच गये। भारत-नेपाल सीमा पर हमने अपने सामान की स्कैनिंग कराई। नेपाल की सीमा में दाखिल होते ही पापा के दोस्त रितेश जी इन्तजार करते मिले। गाड़ी पार्क करके पापा और रितेश जी गाड़ी का भंसार कटवाने चले गये। इसके बाद रितेश जी की दुकान पर मोबाइल हैण्डसेट का सिम बदला। पापा के फोन करने पर उनके पत्रकार दोस्त नरेन्द्र जी दस मिनट में ही आ गये। यहां से हम लोग टूर द ठाकुरद्वारा (Tour The Thakurdwara) के आयोजक नेपालगंज साइकिलिंग क्लब (Nepalgunj Cycling Club) के कार्यालय पहुंचे और दो लोगों के 4,400 रुपये जमा किए। इस समय तक शाम के 4:00 बज गये थे। एक ठीक-ठाक रेस्टोरेन्ट देख हम वहां घुस गये। जिन्दल बाबा ने फोन कॉल कर पवित्रा बरदेवा और अजीत बराल को भी वहीं बुला लिया। पवित्रा दीदी की पूरी टीम भी रेस्टोरेन्ट में आ गयी।
आगे बढ़ने से पहले पवित्रा दीदी और अजित दाई के बारे में बता दूं। इन दोनों से मेरी मुलाकात जून 2022 में हुई थी जब हम लोग छुट्टियों में नेपाल के खूबसूरत शहर पोखरा घूमने गए थे। पवित्रा दीदी सोलो ट्रैवलर हैं और नेपाल के 56 जिलों की अकेले ही पदयात्रा कर चुकी हैं। अजित दाई विश्व प्रसिद्ध साइकिलिस्ट हैं और दुनिया के कई देश साइकिल से घूम चुके हैं। यहां स्नैक्स लेने के बाद हमने एक मॉल में बिरयानी खायी और टूर द ठाकुरद्वारा (Tour The Thakurdwara) के आयोजकों की ओर से बुक कराए गये एक फाइव स्टार होटल पहुंचे।
फ्रेश होने के बाद पापा मुझे जूते दिलाने के लिए कोहलपुर ले गये पर काफी ढूंढ-खोज के बाद भी मेरे नाप के जूते नहीं मिले। हम वापस रितेश ताऊ की दुकान पर आ गये। यहां से जिन्दल बाबा एक स्पा में चले गये। रितेश ताऊ ने पापा को बोला कि आप होटल जाओ, हम शिवांकर को अपने घर ले जा रहे हैं। ताऊ के घर में उनकी बेटी मिली। ताई किचन में थीं। मेरे ना-ना करने के बावजूद ताई ने कॉफी पिला ही दी। इसके बाद हम लोग होटल पहुंचे। रितेश ताऊ ने मुझसे पूछा कि हमारे साथ चलोगे या जहां सब साइकिल यात्रियों का डिनर है, वहां जाओगे। इसी बीच पवित्रा दीदी आ गयी। मैंने कहा कि मुझे पवित्रा दीदी के पास ही छोड़ दो। यहां अलग-अलग जगहों से आये हुए साइकिल यात्रियों का डिनर था।
मुझे छोड़कर रितेश ताऊ, नरेन्द्र ताऊ, जिन्दल बाबा और पापा अपनी पार्टी करने चले गये। डिनर करने के बाद मैंने पापा को फोन किया तो उन्होंने कहा कि अजीत दाई आपको होटल छोड़ देंगे या फिर मैं लेने आऊं। मैंने अजित दाई से पूछा तो उन्होंने अपनी मोटरसाइकिल से मुझे होटल पर ड्रॉप कर दिया। इतने में जिन्दल बाबा का फोन आ गया कि कमरे में न जाकर इस होटल के आर्किटेक्चर डिजाइन, रेस्टोरेन्ट और टेरेस को देखो। रेस्टोरेन्ट का रास्ता ढूंढने पर पता चला कि वह होटल के दूसरी तरफ है। पूरे होटल का मुआयना करने के बाद मैं अपने कमरे में आ गया, जिन्दल बाबा और पापा भी आ पहुंचे। जिन्दल बाबा के साथ रूम शेयरिंग में लखनऊ के प्रोफेसर अनिकेत थे। कुछ देऱ गपशप करने के बाद मैं और पापा सोने के लिए अपने कमरे में आ गये।
दूसरा दिन (नौ फरवरी 2024)
सुबह करीब साढ़े पांच बजे जिन्दल बाबा ने दरवाजा खटखटाया। मैं तो जाग गया पर पापा सोते रहे। क्लब की दी हुई टी शर्ट पहनकर मैं और जिन्दल बाबा होटल से निकल लिये। काफी इन्तजार के बाद हमें एक ऑटो मिला जिसने हम दोनों को बागेश्वरी मन्दिर के मैदान पर छोड़ दिया जहां देश-दुनिया के साइकिल यात्रियों का जमावड़ा शुरू हो चुका था। नेपालगंज साइकिलिंग क्लब (Nepalgunj Cycling Club) के प्रधान प्रदीप जी ने मुझे एक साइकिल दी। चाय पीने तक पापा भी आ गये। यहीं पर पापा ने नेपाल की एक चर्चित शख्सियत पुष्कर शाह से मुलाकात कराई जो दुनिया के 156 देश साइकिल से घूम चुके हैं।
सुबह के साढ़े आठ बजे तक बागेश्वरी मन्दिर के मैदान में ढाई सौ साइकिल यात्री इकट्ठा हो चुके थे। यहीं पर एक लगेज कैरियर गाड़ी, खराब साइकिलें लादने के लिए चार पिकअप गाड़ियां और दो एम्बुलेन्स भी आ गयीं। इन एम्बुलेन्स में से एक इन्सानों के लिए थी और दूसरी साइकिलों को लिए जिस पर साइकिल मिस्त्री सवार थे। इसी दौरान पापा ने मुझे तीन हजार भारतीय और चार हजार नेपाली रुपये दिए। साइकिल यात्रा शुरू हुई। आगे-आगे सिक्योरिटी की गाड़ी और पीछे हम सब साइकिल यात्री। यात्रा की शुरुआत में मैं गाड़ी में ही था। करीब 15 किलोमीटर दूर कोहलपुर में यात्रा के स्वागत और नाश्ते का प्रबन्ध था। यहीं से मैंने अपनी साइकिल यात्रा की शुरुआत की जो 104 किलोमीटर की थी। करीब 25 किलोमीटर साइकिल चलाने के बाद मैं थक गया। पापा के साथ गाड़ी में नासिर जी थे जो कपिलवस्तु से आए थे। उनको साइकिल देकर मैं गाड़ी में बैठ गया।
कुछ ही देर में हम लोग केदारेश्वर धाम मन्दिर पहुंच गये जहां सभी यात्रियों का तिलक लगाकर स्वागत किया गया। आलू-गोभी की सब्जी और खीर खाकर कुछ देर आराम करने के बाद आगे की यात्रा शुरू हुई। यहां से 10 किलोमीटर के बाद ऑफ रोड जंगल का रास्ता था। इस रास्ते पर जंगली जानवरों का खतरा था इसलिए सबको इकट्ठा जाने को कहा गया। सभी साइकिल यात्री जंगल के रास्ते चल दिए जबकि यात्रा के साथ चल रही सभी गाड़ियां सड़क मार्ग से आगे बढ़ीं। सभी साइकिल यात्री जंगल के बीच से गुजरते हुए सतखुलवा गांव के सरकारी स्कूल पर इकट्ठा हुए। यहां पर थारू जनजाति के लोगों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए।
दोपहर के स्वादिष्ट भोजन के बाद कुछ देर आराम कर मैंने दोबारा अपनी साइकिल यात्रा शुरू की। सड़क, जंगल और ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर साइकिल चलाते हुए बहुत मजा आ रहा था। यह मेरी जिन्दगी का पहला रोमांचक अनुभव था। पापा ने मुझे अकेला छोड़कर कहा कि सबसे बातें करो, घुलो-मिलो और सीखो। करीब 30 किलोमीटर साइकिल चलाने के बाद मुझे पापा की गाड़ी दिखाई दी। पवित्रा दीदी भी पापा के साथ गाड़ी में ही थीं। एकाएक मेरी साइकिल का टाय़र पंक्चर हो गया। इसी बीच यात्रा के साथ चल रही एक टोयोटा पिकअप गाड़ी आ गयी। चालक ने मेरी साइकिल गाड़ी की ट्रॉली पर लाद ली और मुझे गाड़ी के अन्दर बैठने को बोला। पूरी गाड़ी खाली थी पर मैं साइकिल के साथ पीछे ही खड़ा हो गया। कुछ ही दूर चले होंगे कि एक साइकिल एम्बुलेंस आ गयी। उस पर सवार मिस्त्री ने पूछा कि बाबू आपकी साइकिल की मरम्मत कर दूं। मैंने कहा, “सभी साइकिल यात्री अब बहुत आगे निकल गये हैं और रास्ता भी 10 किलोमीटर का ही बचा है, इसलिए मैं अब इसी गाड़ी पर चलूंगा।” गाड़ी के पीछे खड़े होकर यात्रा करने में मुझे बहुत आनन्द आ रहा था। ठण्डी हवा और जंगल का रास्ता दोनों ही आनन्दित कर रहे थे।
कुछ दूर जाने के बाद सारी गाड़ियां रुकीं तो पापा ने कहा कि अब गाड़ी के अन्दर बैठ जाओ नहीं तो ठण्ड लग जाएगी। मैं गाड़ी के अन्दर बैठ गया और कुछ ही देर बाद झपकी आ गयी। जब जागा तो गाड़ी जंगल के ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चल रही थी। आधा घण्टे में हम ठाकुरद्वारा मन्दिर (Thakurdwara Temple) पहुंच गये। साइकिल यात्रियों के स्वागत में यहां आदिवासी समुदाय का सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहा था। मैं पापा की गाड़ी ढूंढने को बाहर निकला तो वहां पर यात्रियों के स्वागत के लिए बहुत सारी लड़कियां खड़ी थीं। उन्होंने मुझे तिलक लगाया और फूल दिए। मैं चाय की एक टपरी पर अजीत दाई और पवित्रा दीदी के ग्रुप के साथ बैठ गया। पापा के आते ही सब लोग बर्दिया नेशनल पार्क के अन्दर स्थित एक खूबसूरत फाइव स्टार रिसॉर्ट को चल दिए जो पास ही में था।
पारम्परिक स्वागत के बाद हमने वहां चस्पा साइकिल यात्रियों के कमरा नम्बर और नाम की सूची देखी। मेरा, पापा और जिन्दल बाबा का एक ही कमरा था। कमरे में सामान रखने के बाद हम थोड़ी देर रिसॉर्ट में घूमे, यात्रियों से बात की, उनके अनुभव सुने, फिर रात्रि का भोजन करने चले गये। भोजन कर बाहर निकले तो रिस़ॉर्ट के मैदान में आदिवासियों का सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहा था। सभी साइकिल यात्री छोटे-छोटे ग्रुप में अलग-अलग बैठे हुए थे। एक हट पर अजीत दाई और पवित्रा दीदी का ग्रुप आग जलाकर बैठा था। बसन्ता दाई गिटार बजाते हुए गाने गा रहे थे। मैं इसी ग्रुप में शामिल हो गया। साइकिल यात्रा में शामिल होने के लिए यह ग्रुप पोखरा से नेपालगंज आया था। बहुत सारे गाने सुने, आपस में खूब सारी बातें कीं और रात 11:30 बजे अपने कमरे में आ गये। बेड पर लेटते ही नींद आ गयीं।
तीसरा दिन (10 फरवरी 2024)
सुबह छह बजे जिन्दल बाबा ने मुझे उठा दिया, “जल्दी से फ्रेश हो जाओ, हम लोग जंगल घूमने चलते हैं।” सुबह की सर्द हवा के बीच टहलते हुए हम लोग ढाई किलोमीटर दूर हाथीसार पहुंचे जहां नेपाल का वन विभाग हाथियों को पालता है। हम लोग कुछ देर हाथियों के बच्चों के साथ खेलते रहे। अब तक पापा भी आ गये। हाथीसार के सामने ही फ्रांस की एक युवती का कैफे था। कॉफी पीने का मन था पर उन्होंने बताया कि घाटे की वजह से कैफे बन्द कर दिया है। कैफे से बाहर निकलते ही हमारी मुलाकात एक दिलचस्प इन्सान से हुई जो जंगल सफारी के गाइड थे। इन गाइड की 2016 में बाघ से आमने-सामने लड़ाई हो गय़ी थी। उन्होंने जमकर संघर्ष किया और खुद को उसका निवाला बनने से बचा लिया, वह भी केवल एक डण्डे के सहारे।
हम लोग रिसॉर्ट वापस आ गये। मुझे जंगल सफारी करनी थी पर सफारी गाड़ी को नौ यात्री चाहिए थे जो पूरे नहीं हुए थे। रिसॉर्ट के रिसेप्शन पर जंगल सफारी की सूची में अपना नाम लिखवा कर मैं बाहर आ गया। इस यात्रा की सह प्रायोजक बिल्ड योर ड्रीम्स की कई इलेक्ट्रिक गाड़ियां टेस्ट ड्राइव के लिए रिसॉर्ट पर पर खड़ी थीं। जिन्दल बाबा ने पूछा, “गाड़ी की टेस्ट ड्राइव करोगे?” मैंने हां बोल दी। फिर क्या था, इलेक्ट्रिक कार की ड्राइविंग सीट पर मैं, बराबर की सीट पर कम्पनी का प्रतिनिधि तथा पीछे की सीट पर पापा और जिन्दल बाबा बैठ गये। करीब छह किलोमीटर की टेस्ट ड्राइव ही की थी कि रिसॉर्ट से फोन आ गया कि जंगल सफारी के लोग पूरे हो गए हैं, आप आ जाइए। रिसॉर्ट वापस पहुंचे तो एक बेहतरीन जंगल सफारी गाड़ी हमारा इन्तजार कर रही थी। इस नौ सीटर गाड़ी में मैं अकेला भारतीय था, बाकी सब लोग नेपाल के अलग-अलग हिस्सों से थे। पापा और जिन्दल बाबा ने उनसे निवेदन किया कि आप लोग नेपाली भाषा में बात ना करके हिन्दी में ही बात करें, नहीं तो हमारा शिवांकर बोर हो जाएगा। ऐसा हुआ भी, सबने हिन्दी में ही बातें कीं।
बर्दिया नेशनल पार्क के गेट पर हमारा गाइड हम सबकी एंट्री कराने चला गया। उसके वापस आने तक हमने गेट पर ही बने हुए मगरमच्छ और घड़ियाल प्रजनन केन्द्रों को देखा। वहां पिंजरे में बाघ, अहाते में गैंडा और एक पालतू हाथी भी था। सफारी के दौरान हरेभरे जंगलों की खूबसूरती और हिरण देखने को मिले। मुझे इस बात का दुःख हुआ कि इस सफारी के दौरान बाघ या कोई अन्य जंगली जानवर देखने को नहीं मिला। दोपहर करीब दो बजे हम लोग रिसॉर्ट वापस आ गये। यहां जिन्दल बाबा ने जुगाड़ करके तैरने वाली ट्रे बनाई और स्वीमिंग पूल में जाकर पार्टी करने लगे। मैं और पापा लन्च करने डाइनिंग हॉल में चले गये। लन्च में नेपाल का पारम्परिक खाना था पर आज चिकन की जगह मछली और सब्जी भी कुछ अलग थी। कुछ देर बाद हम लोग गाड़ी से सनसेट पॉइन्ट और दोबारा हाथीसार गये। वापसी में गाड़ी मैंने ड्राइव की। रिसॉर्ट पहुंचकर हम लोग पूल साइड बैठ गये। यहां पर एक महिला पत्रकार ने जिन्दल बाबा का इन्टरव्यू किया।
थोड़ी देर बाद अजीत दाई और पवित्रा दीदी अपनी टोली के साथ आ गये। मैं गाड़ी से अपना ब्लूटूथ स्पीकर निकाल लाया। हम सबने खूब गाने सुने और मौज-मस्ती की, थक जाने पर डिनर करने चले गये। इस बार नेपाल के पारम्परिक खाने के साथ मटन था। कुछ देर रिसॉर्ट में घूमने-फिरने के बाद सब लोग एक बार फिर कैम्प फायर के आसपास बैठ गये। बसन्ता दाई ने गिटार के साथ गाने सुनाकर सबका मनोरंजन किया। कब रात के 12 बज गये, पता ही नहीं चला। हां, यह जरूर पता चला कि कल सुबह सब लोग अपने-अपने घर वापस चले जाएंगे। यह सोचकर थोड़ा उदास हो गया। पूरे मजे करके मैं कमरे में पहुंचा तो पापा और जिन्दल बाबा घोड़े बेचकर सो रहे थे।
चौथा दिन (11 फरवरी 2024)
सुबह करीब आठ बजे जिन्दल बाबा ने मुझे जगा कर घर वापसी की तैयारी करने को कहा। हम सभी ने स्वादिष्ट और पौष्टिक नाश्ता किया। हमारे पास गाड़ी का ट्रान्सपोर्ट परमिट नहीं था। पापा और जिन्दल बाबा ने नेपाली कांग्रेस के दो नेताओं को अपनी गाड़ी में बैठा लिया। मैंने गाड़ी में अपना, पवित्रा दीदी और अजीत दाई का सामान भी रख लिया। पवित्रा दीदी और अजीत दाई नेपालगंज जाने के लिए बस में सवार हो गये। हमने दोनों कांग्रेस नेताओं को नेपालगंज छोड़ दिया। इनमें से एक नेता एक न्यूज़ चैनल और एफएम रेडियो के मालिक थे। उन्होंने हमको अपना स्टूडियो घुमाया। यहां से हम लोग साइकिलिंग क्लब के कार्यालय पहुंचे। पवित्रा दीदी और अजीत दाई का लगेज उनको सौंप कर और फिर मिलने का वादा करके उनसे विदाई ली। यहां से रितेश ताऊ की शॉप पर पहुंचकर मैंने अपना नेपाली सिम उनको वापस किया। हम लोगों को खाना खिलाने के बाद रितेश ताऊ ने बाई-बाई (नेपाल के लोकप्रिय नूडल्स) की एक पूरी पेटी हमें उपहार में दी। उनसे विदा लेकर हम भारत-नेपाल सीमा पर पहुंचे और जांच-पड़ताल के बाद बरेली के लिए रवाना हो गये। लखीमपुर से पहले अपनी गाड़ी फिर उन्हीं वीर जी के ढाबे पर रोक कर हम सबने कुल्हड़ वाली चाय पी। सांझ ढलने तक हम बरेली पहुंच गये। इसी के साथ जिन्दगी की कई यात्राओं में से एक यह सफर बहुतकुछ सिखाकर यादगार बन गया।