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लड़की की विदाई

हम तो बाबुल तोरे आंगन की चिरिया

अरे चुगे, पिए, उड़ जाए,

लखिया बाबुल मोरे,

काहे को ब्याहे बिदेस

 

अमीर खुसरो

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ख्वाजा जी

सुन ली हमरे जियरा की पीर

अंखियों से बहे है नीर

काहे को ब्याहे बिदेस,

अरे लखियन बाबुल मोहे

काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो बाबुल तोरे, बेले की कलियन

अरे घर-घर मांगे हैं जाए

अरे लखियन बाबुल मोहे

काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो बाबुल तोरे आंगन की चिरिया

अरे चुगे, पिए, उड़ जाए,

लखिया बाबुल मोरे,

काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो बाबुल तोरे, खूटे की गइया

अरे जिद हांके हंक जाए,

अरे लखियन बाबुल मोहे

काहे को ब्याहे बिदेस

ताक भर मैंने गुड़िया छोड़ी,

अरे छोड़ा सहेली का साथ

लखिया बाबुल मोरे,

काहे को ब्याहे बिदेस

महलन तले से डोला जो निकला

अरे बीरन में छाए पछाड़

लखियन बाबुल मोहे

काहे को ब्याहे बिदेस

डोली का पर्दा उठाकर जो देखा,

ना बाबुल ना बाबुल का देस रे

लखी बाबुल मोरे,

काहे को ब्याहे बिदेस

भैया को दियो बाबुल महलन दो महलन

अरे हम को दियो परदेस रे

लखियन बाबुल मोहे

काहे को ब्याहे बिदेस

घर से तो कईला हम के विदा,

अरे जिएरा से ना करियो जुदा,

खुसरो कहत है, ए मेरी लाडो,

अरे धन धन भाग सुहाग रे

लखिया बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस

 

One thought on “अमीर खुसरो का वह विवाह गीत जो अमर हो गया- काहे को ब्याहे बिदेस…”

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