Fri. Nov 22nd, 2024
चाय के प्याले

आपको आश्चर्य होगा कि आज से ढाई-तीन सौ साल पहले तक भारत में असम के कुछ हिस्सों को छोडकर चाय को कोई जानता तक नहीं था। हमारे प्राचीन ग्रंथ यहां तक कि आयुर्वेद की भैषज्य रत्नावली और चरक संहिता भी इसे लेकर खामोश हैं।

रेनू जे. त्रिपाठी

क बार चाय को लेकर हो रही चर्चा में मेरे पति ने करीब 40 साल पुराना एक किस्सा सुनाया था। वह करीब 13-14 साल के रहे होंगे, एक दिन शहर में ही रहने वाले एक वृद्ध रिश्तेदार मिलने के लिए आये। दादी ने इनके हाथों स्टील के एक बडे गिलास में गाय का दूध और कुछ मिठाई उनके लिए भिजवायी। कुछ देर बाद वह चले गये और इधर इनकी दादी ने इन्हें किसी काम से अपने चचिया देवर के यहां भेजा। यह बताते हैं कि छोटे बाबा के घर के दरवाजे पर ही जो सुनायी पड़ा, उससे मेरे पांव ठिठक गये। कुछ देर पहले ही हमारे घर से विदा लेकर गये वह सज्जन छोटे बाबा से कह रहे थे, “हद हो गयी दाज्यू, बोजी (भाभी) ने एक घुटुक चाय तक के लिए नहीं पूछा!”

आम भारतीय घरों में मेहमानों की आवभगत में चाय की आज क्या अहमियत है, उक्त घटना इसका प्रमाण है। दरअसल चाय को भारत में अलिखित तौर पर “राष्ट्रीय पेय” का दर्जा हासिल हो चुका है। लेकिन, आपको आश्चर्य होगा कि आज से ढाई-तीन सौ साल पहले तक भारत में असम के कुछ हिस्सों को छोडकर चाय को कोई जानता तक नहीं था। हमारे प्राचीन ग्रंथ यहां तक कि आयुर्वेद की भैषज्य रत्नावली और चरक संहिता भी इसे लेकर खामोश हैं।

सन् 1815 में कुछ अंग्रेज़ यात्रियों का ध्यान असम में उगने वाली एक जंगली झाड़ी (चाय) पर गया जिससे स्थानीय आदिवासी एक पेय बनाकर पीते थे। भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेन्टिक ने 1834 में चाय की परम्परा भारत में शुरू करने और इसके उत्पादन की सम्भावना तलाश करने के लिए एक समिति का गठन किया। इसके बाद 1835 में असम में चाय के बागान लगाये गये। देखते ही देखते हर तरफ इसके बागान लहलहाने लगे। शुरुआत में इसके छोटे-छोटे पैकेट मुफ्त बंटवाये गये। कुछ साल बाद ही उत्तराखण्ड के चम्पावत क्षेत्र में चाय की खेती शुरू हुई। तब तक भारतीय इसके स्वाद के गुलाम बनने लगे थे। इस तरह देखा जाये तो भारत में चाय को प्रचलित करने का श्रेय अंग्रेजों को है।

कॉफी : बस एक घूंट ही काफी

चाय को लेकर एक और कहानी ज्यादा प्रचलित है। बात ईसा से 2737 साल पहले की है। एक दिन चीन के सम्राट शैन नुंग के सामने रखे गर्म पानी के प्याले में हवा के ज़रिये उड़कर कुछ सूखी पत्तियां आकर गिर गयीं। कुछ ही देर में वह पानी कुछ रंगीन हो गया। शैन नुन ने उसकी चुस्की ली तो उन्हें उसका स्वाद बहुत पसंद आया। यहीं से शुरू होता है चाय का सफ़र। सन् 1610 में डच व्यापारी चाय को चीन से यूरोप ले गए और धीरे-धीरे यह पूरी दुनिया का प्रिय पेय पदार्थ बन गया।

भारते में असम चाय का सबसे बड़ा उत्पादक है। इसके बाद पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल का स्थान है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा तथा उत्तराखंड के चम्पावत, अल्मोड़ा और नैनीताल जिलों में भी चाय के बागान हैं। जहां तक दुनिया की बात है, चीन सबसे बड़ा चाय उत्पादक है। चीन और भारत मिलकर दुनिया की 60 प्रतिशत चाय का उत्पादन करते हैं। कीनिया, श्रीलंका. तुर्की, वियतनाम और इण्डोनेशिया में भी बड़े पैमाने पर चाय की खेती होती है। चीन हरी चाय का सबसे बड़ा निर्यातक है तो काली चाय के निर्यात में कीनिया, श्रीलंका और भारत का दबदबा है।

चीन में पैदा होने वाली डा-होंग पाओ चाय को दुनिया की सबसे कीमती चाय का रुतबा हासिल है। फुजियान के वूईसन इलाके में होने वाली इस चाय की कीमत नौ करोड़ रुपये प्रति किलोग्राम है।

2 thought on “चाय : एक झाड़ी जो बन गयी “राष्ट्रीय पेय””
  1. I know a lot of folks whom I think would really enjoy your content that covers in depth. I just hope you wouldn’t mind if I share your blog to our community. Thanks, and feel free to surf my website FQ7 for content about Cosmetics.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *