दो सदस्यीय पीठ ने अपने आदेश में कहा कि ठोस सबूतों के अभाव में इस तरह के व्यापक आरोप (घरेलू हिंसा मामले में) अभियोजन का आधार नहीं बन सकते।
नई दिल्ली। मंगलवार को सोशल मीडिया पर 1 घंटा 20 मिनट एक वीडियो तेजी से वायरल हुआ। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) इंजीनियर अतुल सुभाष ने यह वीडियो रिकॉर्ड करने के बाद बंगलुरु स्थित अपने घर में फांसी लगा ली थी। अतुल ने इस वीडियो में पत्नी की ओर से दर्ज कराए गए दहेज प्रताड़ना के आरोप से पैदा हुई परिस्थितियों पर अपनी बात रखी है। जिस दिन अतुल सुभाष का वीडियो वायरल हुआ उसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाया। इस दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि “धारा 498-A पत्नी और उसके परिवारीजनों (मायके वालों) के लिए हिसाब बराबर करने का हथियार बन गई है।”
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह के पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए वैवाहिक मतभेदों से पैदा हुए घरेलू विवादों में पति और उसके घर वालों को आईपीसी की धारा 498-A में फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता जताई है। शीर्ष अदालत ने यह सख्त टिप्पणी तेलंगाना के एक मामले में की। इस मामले में एक पति ने पत्नी से तलाक मांगा था। इसके खिलाफ पत्नी ने पति और उनके परिवारीजनों पर घरेलू क्रूरता का केस दर्ज कराया था। इसके खिलाफ पति ने तेलंगाना हाई कोर्ट की शरण ली थी लेकिन हाई कोर्ट ने केस को रद्द करने से इनकार कर दिया। इस फैसले को पति ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज केस रद्द न करके गंभीर गलती की है।
दो सदस्यीय पीठ ने अपने आदेश में कहा कि ठोस सबूतों के अभाव में इस तरह के व्यापक आरोप अभियोजन का आधार नहीं बन सकते। पीठ ने आगे कहा, “अदालतों को कानूनी प्रावधानों और कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने और निर्दोष परिवार के सदस्यों को अनावश्यक रूप से परेशान करने से बचने के लिए ऐसे मामलों में सावधानी बरतनी चाहिए।”
इससे पहले पिछले महीने यानी नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों से कहा था कि वे यह सुनिश्चित करें कि घरेलू क्रूरता (डोमेस्टिक वॉयलेंस) के मामलों में पति के दूर के रिश्तेदारों को अनावश्यक रूप से न फंसाया जाए।
संसद से अदालतों की क्या है उम्मीद
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले इस साल मई में आचिन गुप्ता बनाम हरियाणा राज्य मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एक फैसले को खारिज करते हुए इसी तरह की टिप्पणी की थी। शीर्ष अदालत ने दहेज प्रताड़ना से संबंधित कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए कहा था कि इस कानून में जरूरी बदलाव किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्र की बेंच ने कहा था,”भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 85 और 86 एक जुलाई से प्रभावी होने वाली है। ये धाराएं आईपीसी की धारा 498A को दोबारा लिखने की तरह हॉ। हम कानून बनाने वालों से अनुरोध करते हैं कि इस प्रावधान के लागू होने से पहले भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 85 और 86 में जरूरी बदलाव करने पर विचार करना चाहिए ताकि इसका दुरुपयोग न हो सके। नए कानून में दहेज प्रताड़ना से संबंधित कानून की परिभाषा में कोई बदलाव नहीं किया गया है। केवल इतना बदला है कि धारा 86 में दहेज प्रताड़ना से संबंधित प्रावधान के स्पष्टीकरण का जिक्र है। सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया था कि इस फैसले को गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय के मंत्री को भेजा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 2010 में दिए अपने एक फैसले का जिक्र किया जिसमें उसने दहेज प्रताड़ना से जुड़े कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए कानून में बदलाव की सिफारिश संसद से की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 498A के मामले में जब शिकायत की जाती है तो कई बार मामले को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है। ऐसे में संसद से अनुरोध है कि वह व्यावहारिक सच्चाई को देखते हुए इस कानून में बदलाव पर विचार करें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि समय आ गया है कि विधायिका को इस मामले पर विचार करना चाहिए।
आचिन गुप्ता बनाम हरियाणा राज्य मामले में एक महिला की ओर से पति के खिलाफ दर्ज कराए गए दहेज प्रताड़ना के मामले को खारिज करने की मांग की गई थी। केस को खारिज करने की पति की याचिका को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने ठुकरा दिया था। इसके बाद पति ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पाया था कि एफआईआर में लगाए गए आरोप अस्पष्ट थे। ऐसा लगता था कि ये आरोप वैवाहिक विवादों के कारण प्रतिशोध का हिस्सा थे। अदालत ने पाया कि एफआईआर उस समय दर्ज की गई जब शिकायतकर्ता अपने ससुराल से करीब 2 साल पहले चली गई थीं। इससे इसकी विश्वसनीयता पर सवाल पैदा होते हैं। शीर्ष अदालत ने इस मामले में आपराधिक कार्यवाही को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि इन कार्यवाहियों को जारी रखना कानून के दुरुपयोग के समान होगा। अदालत ने कहा था कि एफआईआर को पवित्र नहीं माना जा सकता जब इसका एकमात्र उद्देश्य आरोपी को परेशान करना हो। अदालत ने यह भी कहा था कि हर वैवाहिक झगड़े को धारा 498A के तहत क्रूरता नहीं माना जा सकता। सामान्य वैवाहिक जीवन में होने वाले छोटे-मोटे झगड़े और परेशानियां कानूनी क्रूरता के दायरे में नहीं आतीं। अदालत ने यह भी कहा कि अत्यधिक तकनीकी दृष्टिकोण अपनाने से विवाह संस्था को नुकसान हो सकता है। अदालत ने जोर देकर कहा था कि आरोपों की सावधानीपूर्वक जांच की जानी चाहिए ताकि निर्दोष पक्षों को अनावश्यक रूप से हानि न पहुंचे।