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पूजा स्थल अधिनियम, 1991 देश में 15 अगस्त 1947 को जैसी स्थिति थी, उसमें किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप को बदलने पर रोक लगाता है।

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ई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट 12 दिसंबर को पूजा स्थल अधिनियम, 1991 (Places of Worship Act, 1991) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। इस अधिनियम की कुछ धाराओं की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है। इस मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेष पीठ का गठन किया है। इस पीठ में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायामूर्ति केवी विश्वनाथन शामिल हैं।

यह अधिनियम 15 अगस्त 1947 को जैसी स्थिति थी, उसमें किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप को बदलने पर रोक लगाता है। इसका मतलब है कि उस तारीख के बाद किसी भी पूजा स्थल के स्वामित्व या प्रबंधन को लेकर कोई मुकदमा नहीं दायर किया जा सकता।

याचिकाकर्ताओं में ये हैं शामिल

कई याचिकाकर्ताओं ने पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को चुनौती दी है। इनमें काशी राजघराने की बेटी महाराजा कुमारी कृष्णा प्रिया, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय, रिटायर्ड सैन्य अधिकारी अनिल कबोत्रा, अधिवक्ता चंद्रशेखर और रुद्र विक्रम सिंह, वाराणसी निवासी स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती, मथुरा निवासी धार्मिक गुरु देवकीनंदन ठाकुर और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय शामिल हैं।

याचिका में इन मुद्दों का जिक्र

याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह अधिनियम हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों के अधिकारों का हनन करता है। उनका कहना है कि यह अधिनियम उन्हें अपने पूजा स्थलों और तीर्थस्थलों को फिर प्राप्त करने से रोकता है जिन्हें आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था। वे यह भी तर्क देते हैं कि यह अधिनियम धर्मनिरपेक्षता और कानूनी शासन के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि यह अधिनियम अदालत जाने और न्यायिक कदम उठाने के उनके अधिकार से वंचित करता है। साथ ही, यह अधिनियम उन्हें अपने पूजा स्थलों और तीर्थस्थलों का प्रबंधन, रखरखाव और प्रशासन करने के अधिकार से भी वंचित करता है।

जमीयत और  मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी दायर की हैं याचिकाएं

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। इस याचिका में हिंदू याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर पिटिशन को चुनौती दी गई है। जमीयत का कहना है कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने से पूरे भारत में अनगिनत मस्जिदों के खिलाफ मुकदमों का सिलसिला शुरू हो जाएगा। इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। बोर्ड ने 1991 के कानून के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध किया है।

ज्ञानवापी परिसर में मस्जिद का प्रबंधन करने वाली कमेटी ऑफ मैनेजमेंट अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद ने भी इस मामले में एक हस्तक्षेप आवेदन दायर किया है। इसमें पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने की मांग की गई है। अधिनियम को चुनौती देने वाली एक याचिका में कहा गया है कि यह अधिनियम भगवान राम के जन्मस्थान को शामिल नहीं करता है लेकिन भगवान कृष्ण के जन्मस्थान को शामिल करता है।

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