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संजीव जिन्दल

रे भाई, आपके हिल स्टेशन में कौन-कौन से दर्शनीय पॉइंट हैं।” “सर, बेताब वैली है, कैमल बैक पॉइंट है, हिमालय दर्शन पॉइंट है, साथ ही और भी है बहुतकुछ।” जींस-टीशर्ट पहने साहब और जींस-टॉप में समायी मेमसाब एक घंटे में तैयार होकर और बच्चे चिप्स-फ्रूटी के पैकेट लेकर टैक्सी में बैठ जाते हैं ।

“सर, यह बेताब वैली है। यहां बेताब फिल्म की शूटिंग हुई थी।” पूरा परिवार स्टाइल से उतरता है, इधर-उधर नजर घूमाता है, “अरे! इसमें ऐसा देखने लायक क्या है?” “देखिए सर कितना खूबसूरत मैदान है।” “अरे, इससे खूबसूरत तो हमारे होटल का लॉन ही था। ”चलिए सर, कैमल बैक दिखाता हूं। वह देखिए सर, पहाड़ ऊंट की तरह दिखाई दे रहा है।” इस बार मम्मी-पापा से पहले बच्चे बोल उठते हैं, “पापा हमें तो कुछ नहीं दिख रहा!!” मेमसाब- “यह क्या दिखा रहे हो? हम राजस्थान से आये हैं, असली ऊंट देखे हैं। यह तो कहीं से भी कैमल नहीं लग रहा।” “छोडिए सर, आइए हिमालय दिखाता हूं, मजा आ जाएगा।” 15 मिनट की ड्राइव के बाद हम एक ऊंची पहाड़ी पर पहुंचे। “ओ हो, आज तो बहुत ज्यादा बादल हैं। कुछ दिखाई नहीं दे रहा है सर। मौसम साफ होने के आसार भी नहीं हैं, चलिए आपको होटल में छोड़ देता हूं।”

अक्सर लोगों के साथ हिल स्टेशन पर ऐसा ही होता है। हिल स्टेशन इस तरह से घूमने के लिए नहीं होते दोस्तों। यहां घूमना है तो निकल जाओ सुबह-सुबह पैदल-पैदल। हिल स्टेशन का एक-एक व्यक्ति, एक-एक वनस्पति, एक-एक घर देखने लायक होता है। हिमाचल प्रदेश का जांगलिक गांव जो बर्फ के कारण लगभग चार महीने दुनिया से कटा रहता है, वहां के लोग टाइम पास करने और कमाई करने के लिए भेड़ पालते हैं। भेड़ की ऊन से तरह-तरह मफलर और शाल बनाई जाती हैं। हिल स्टेशन के ऐसे पॉइंट आपको टैक्सी से घूमने पर नहीं मिलेंगे।

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किसी भी हिल स्टेशन में प्रकृति दिन में कई-कई बार रंग बदलती है। कभी पहाड़ बादल के पीछे छिप जाते हैं तो कभी कोहरा किसी घाटी को ढक लेता है। सुबह आग के गोले की तरह आसमान में उग रहे सूरज को बादल का एक आवारा टुकड़ा एकाएक ढक कर उसकी सारी ऐंठ निकाल देता है। दोपहर के समय सूरज अपनी तपिश महसूस कराने की कोशिश कर ही रहा होता है कि सर्द हवा का एक मद्धम झोंका हौले से वदन को सहला कर असीम आनन्द से भर देता है।

ये पहाड़ हैं जनाब, यहां आने से पहले प्रकृति का सम्मान करना सीखें। महंगी कार में बैठकर ऐंठ न दिखाएं, घूमने का मजा लेना है तो पैदल-पैदल दूर तक चले जाइए। यहां कदम-कदम पर दृश्य बदलते हैं, कुछ-कुछ दूरी पर परिदृश्य। इनका आनन्द मासूम बनकर उठाएं, साहिबी की ऐंठ दिखाई तो आपकी जुबान से भी निकलेगा- यहां आखिर ऐसा है ही क्या…?

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