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residency located on the banks of river gomti in lucknow.residency located on the banks of river gomti in lucknow.

Residency: स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बेगम हजरत महल की सेना ने सैय्यद बरकत अहमद के नेतृत्व में रेजीडेंसी को घेर लिया। जमकर गोलाबारी हुई। क्रांतिकारियों ने 86 दिन तक यहां अपना कब्जा रखा। कई छोटे-बड़े अंग्रेज सैनिक और अधिकारी आजादी के मतवालों के हाथों मारे गए।

न्यूज हवेली नेटवर्क

खनऊ में गोमती के किनारे 33 एकड़ के विशाल भूखण्ड पर एक खंडहरनुमा उदास-सी इमारत। जानकारी न होने पर इस पर निगाह पड़ते ही मन में सवाल उठेगा, “इतनी पुरानी और गिरताऊ इमारत, यह तो बड़ी खतरनाक है, इसे ढहा क्यों नहीं देते?” पर नहीं, यह इसका वास्तविक परिचय नहीं है। यह रेजीडेंसी है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े गवाहों में से एक। यह अब एक संरक्षित इमारत है।

रेजीडेंसी
रेजीडेंसी

अवध की राजधानी फैजाबाद से लखनऊ स्थानान्तरित होने के बाद नवाब आसफ-उद-दौलाने अंग्रेजों की सुविधा के लिए नदी के किनारे एक ऊंचे स्थान पर 1775 में इसका निर्माण शुरू करवाया था जो 1800 में नवाब सआदत अली खान के शासन काल में पूरा हुआ। उस दौर में इस इमारत को बनाने में लगभग 17,000 रुपये का खर्च आया था। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने इसे अपने एजेन्ट का निवास स्‍थान बनाया जो नवाबों के दरबार में उसका प्रतिनिधित्‍व करता था। उसी समय से इसे ब्रिटिश रेजीडेंसी कहा जाने लगा।

रेजीडेंसी परिसर में मुख्य रूप से पांच-छह भवन थे जिनमें मुख्य भवन, बैंक्वेट हाल, डॉक्टर फेयरर का घर, बेगम कोठी, मस्जिद, सेंट मेरी चर्च, ट्रेज़री हाउस आदि प्रमुख थे। रेजीडेंसी के नीचे आज भी एक बड़ा तहखाना है। अवध के रेजीडेंट इस तहखाने में आराम फरमाते थे। पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तमाम अंग्रेज महिलाओं और बच्चों ने इसी तहखाने में शरण ली थी। स्वतंत्रता संग्राम की स्मृति में यहां एक संग्रहालय भी बनाया गया है।

रेजीडेंसी  का संग्रहालय।
रेजीडेंसी का संग्रहालय।

रेजीडेंसी के मुख्य प्रवेश द्वार से थोड़ी आगे बढ़ने पर बैली गार्ड द्वार है। काले रंग का यह द्वार काफ़ी ऊंचा है और दूर से देखने पर किसी किले के प्रवेश द्वार जैसा लगता है। अवध के नवाब ने कैप्टन जॉन बैली के सम्मान में इसका निर्माण करवाया था। इस द्वार के दोनों ओर की दीवारों पर खिड़कियां हैं जो आज भी सही-सलामत हैं।

रेजीडेंसी का बैली गार्ड द्वार।
रेजीडेंसी का बैली गार्ड द्वार।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बेगम हजरत महल की सेना ने सैय्यद बरकत अहमद के नेतृत्व में रेजीडेंसी को घेर लिया। जमकर गोलाबारी हुई। क्रांतिकारियों ने 86 दिन तक यहां अपना कब्जा रखा। कई छोटे-बड़े अंग्रेज सैनिक और अधिकारी आजादी के मतवालों के हाथों मारे गए। कई हिंदुस्तानी सैनिक भी शहीद हुए।

सीढ़ीदार लॉन और बगीचों से घिरे इस परिसर में एक कब्रिस्तान भी है जिसमें सर हेनरी लॉरेंस समेत करीब दो हजार लोगों की कब्रें है। इनकी मौत घेराबंदी के दौरान हुई थी। इतिहासकार स्वर्गीय डॉ. योगेश प्रवीन ने अपनी किताब में लिखा है कि इसी जगह एक जुलाई 1857 को कर्नल पामर की बेटी के पैर में गोली लगी थी। इसी भवन की ऊपरी मंजिल के पूर्वी सिरे वाले कमरे में 2 जुलाई 1857 को सर हेनरी लॉरेंस को क्रांतिकारियों ने गोली मारी थी।

1857 में पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुई गोलाबारी में रेजीडेंसी परिसर के कई भवन पूरी तरह नष्ट हो गए थे जबकि कुछ बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए। इसकी दीवारों पर गोलों के निशान आज भी देखे जा सकते हैं। यहां कराए गए उत्खनन में सुनियोजित लीवर प्रणाली और कई अन्य वस्तुएं मिली हैं।

 ऐसे पहुंचें रेजीडेंसी

रेजीडेंसी
रेजीडेंसी

वायु मार्ग : रेजीडेंसी के नजदीकी हवाईअड्डा लखनऊ की ही चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट है जहां से टैक्सी, कैब या ऑटो करके यहां तक पहुंचा जा सकता है।

रेल मार्ग : लखनऊ में कई रेलवे स्टेशन हैं। इनमें चारबाग के नाम से प्रसिद्ध रेलवे स्टेशन सबसे बड़ा है। महलनुमा भव्य इमारत वाले इस स्टेशन में दरअसल दो रेलवे स्टेशन हैं जिनमें एक उत्तर रेलवे का और दूसरा पूर्वोत्तर रेलवे का टर्मिलन है। इसके अलावा ऐशबाग जंक्शन, गोमती नगर और बादशाह नगर यहां के प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं।

बस मार्ग : लखनऊ सड़क मार्ग से देश के सभी प्रमुख स्थानों से जुड़ा है। यहां उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के कई डिपो और स्टेशन हैं जहां से रेजीडेंसी के लिए टैक्सी, कैब या ऑटो मिल जाते हैं।

 

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