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रामपुर का रजा पुस्तकालय

यह पुस्तकालय भले ही कोलकाता स्थित राष्ट्रीय पुस्तकालय की तुलना में काफी छोटा है लेकिन दुर्लभ पाण्डुलिपियों और पुस्तकों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इसे दुनिया के 10 आश्चर्यजनक पुस्तकालयों में आठवें स्थान पर रखा गया है।

न्यूज हवेली नेटवर्क

प्राचीन भारत में शिक्षा के दो बड़े केन्द्र थे- तक्षशिला विश्वविद्यालय और नालन्दा महाविहार (विश्वविद्यालय)। पश्चिम से आने वाले आक्रान्ताओँ ने तक्षशिला विश्वविद्यालय को पूरी तरह नष्ट कर दिया जबकि नालन्दा महाविहार में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने तोड़फोड़ करने के बाद आग लगा दी। शिक्षा के इन दो महान केन्द्रों को जिस तरह खत्म किया गया, उससे भारत के एक बड़े वर्ग में शिक्षा और ज्ञान को लेकर मुस्लिम शासकों के प्रति अत्यन्त नकारात्मक छवि बन गयी। लेकिन, इसी भारत में एक ऐसा “ज्ञान खजाना घर” है जो उक्त धारणा को तोड़ता है। रामपुर के नवाब फैजुल्ला खान द्वारा 18वीं शताब्दी के आखिरी दशकों में स्थापित इस किताबघर को दुनिया आज रजा पुस्तकालय (Raza Library) और रामपुर पुस्तकालय के नाम से जानती है। (Raza Library: A priceless treasure of rare manuscripts in Rampur)

सबसे बड़ी बात यह कि नवाब फैजुल्ला खान के वंशजों ने भी इस पुस्तकालय के विकास में अहम योगदान दिया। नवाब हामिद अली खान ने किले के अन्दर इन्डो-यूरोपियन शैली में हामिद मन्जिल नाम से एक शानदार हवेली का निर्माण कर पुस्तकालय को यहां स्थानान्तरित किया।

रामपुर का रजा पुस्तकालय

यह पुस्तकालय भले ही कोलकाता स्थित राष्ट्रीय पुस्तकालय की तुलना में काफी छोटा है लेकिन दुर्लभ पाण्डुलिपियों और पुस्तकों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। एयर कनाडा की इन फ्लाइट पत्रिका एनरूट ने दुर्लभ संग्रह और भवन की वास्तुकला के आधार पर इसे दुनिया के 10 आश्चर्यजनक पुस्तकालयों में आठवें स्थान पर रखा है।

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रज़ा पुस्तकालय (Raza Library) भारतीय-इस्लामी सांस्कृतिक विरासत का एक बड़ा केन्द्र है। इसमें पाण्डुलिपियों, ऐतिहासिक दस्तावेजों, इस्लामी सुलेख के नमूनों, लघु चित्रों, खगोलीय उपकरणों तथा अरबी और फारसी भाषाओँ में दुर्लभ सचित्र कार्यों का अत्यन्त दुर्लभ और मूल्यवान संग्रह है। इस पुस्तकालय में संस्कृत, हिन्दी, तमिल, उर्दू, पश्तो, तुर्की आदि की महत्वपूर्ण पुस्तकें और दस्तावेज हैं। हजरत अली के हाथ से हिरन की खाल पर लिखी कुरान-ए-पाक और सुमेर चन्द की फारसी में सोने के पानी से लिखी रामायण भी यहां मौजूद है। यहां विभिन्न भाषाओं की 60 हजार से अधिक मुद्रित किताबें हैं।

नवाब फैजुल्ला खान ने प्राचीन पांडुलिपियों और इस्लामी सुलेख के लघु नमूने के अपने निजी संग्रह से इस पुस्तकालय की स्थापना की थी। नवाब अहमद अली खान के शासनकाल के दौरान इसके संग्रह में उल्लेखनीय विस्तार हुआ। उनके वारिसों ने इस परम्परा को जारी रखते हुए इस पुस्तकालय के विस्तार में अहम योगदान दिया।

भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय महत्व की संस्था का दर्जा दिया है। वर्तमान में यह भारत सरकार के सांस्कृतिक विभाग के अधीन एक स्वायत्त संस्था के रूप में संचालित है।

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ऐसे पहुंचें रजा पुस्तकालय

पता  :  हामिद मन्जिल, जामा मस्जिद के पीछे, किला, रामपुर। पिन- 244901.

सड़क मार्ग : रामपुर दिल्ली-लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग नम्बर 24 पर दिल्ली से करीब 215 किलोमीटर पड़ता है। दिल्ली, मुरादाबाद, देहरादून, बरेली, लखनऊ आदि से यहां के लिए नियमित बस सेवा है।

रेल मार्ग : भारतीय रेल के तीन महत्वपूर्ण मार्ग (जम्मू-हावड़ा, अमृतसर-हावड़ा और दिल्ली-लखनऊ) रामपुर से गुजरते हैं। इस कारण ट्रेन से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।

वायु मार्ग : बरेली का सिविल एनक्लेव रामपुर का निकटतम एयरपोर्ट है जो यहां से करीब 69 किमी पड़ता है।

 

51 thought on “रजा पुस्तकालय : रामपुर में दुर्लभ पाण्डुलिपियों का अनमोल खजाना”
  1. I’m really inspired together with your writing talents as well as with the structure on your blog. Is this a paid topic or did you modify it yourself? Either way keep up the excellent quality writing, it’s uncommon to see a nice blog like this one these days!

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