Ramban: पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला से घिरी एक घाटी में चेनाब नदी के किनारे बसा रामबन (Ramban) जम्मू-कश्मीर के इसी नाम के जिले का मुख्यालय भी है। 1846 में जम्मू-कश्मीर राज्य के गठन से पहले यह चिनाब नदी के दाहिने किनारे पर 15 घरों वाला एक छोटा-सा गांव था जिसे नशबन्द के नाम से जाना जाता था।
आर पी सिंह
श्रीनगर और आसपास के क्षेत्रों में चार दिन घूमने-फिरने के बाद भी हमारे पास चार दिन की छुट्टियां बाकी थीं। एक दिन दिल्ली वापसी का मान लें तो भी हम तीन दिन कुछ स्थानों पर घूम सकते थे। अन्ततः तय हुआ कि श्रीनगर से हवाई जहाज पकड़ने के बजाय सड़क मार्ग से वापसी करते हुए रामबन (Ramban) और जम्मू को एक्सप्लोर किया जाये। टैक्सी बुक कर हम श्रीनगर से रवाना हुए तो सवेरे के नौ बज रहे थे। रास्ते में पड़ने वाले बनिहाल आदि खूबसूरत स्थानों पर रुकते-रुकाते हम रामबन पहुंचे तो सूरज पहाड़ों की ओट में दुबकने को था।
पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला से घिरी एक घाटी में चेनाब नदी के किनारे बसा रामबन (Ramban) जम्मू-कश्मीर के इसी नाम के जिले का मुख्यालय भी है। 1846 में जम्मू-कश्मीर राज्य के गठन से पहले यह चिनाब नदी के दाहिने किनारे पर 15 घरों वाला एक छोटा-सा गांव था जिसे नशबन्द के नाम से जाना जाता था। गुलाब सिंह के जम्मू-कश्मीर के महाराजा बनने के बाद शाही कारवां की आवाजाही यानी श्रीनगर पहुंचने के लिए जम्मू-उधमपुर-बनिहाल मार्ग को अपनाया गया। इस प्रक्रिया में रामबन (Ramban) को शाही कारवां के लिए पड़ाव का दर्जा मिला।
डोगराओं ने वर्तमान रामबन (Ramban) के पास एक पक्की इमारत और चेनाब नदी को पार करने के लिए लकड़ी के एक पुल का निर्माण कराया। सुखदेव सिंह चाडक ने अपनी पुस्तक “महाराजा रणबीर सिंह” में लिखा है कि महाराजा ने जम्मू से बनिहाल होते हुए श्रीनगर तक कार्ट रोड और रामबन में चिनाब नदी पर सस्पेन्शन ब्रिज बनाने का आदेश पारित किया। यह कार्ट रोड ही अब राष्ट्रीय़ राजमार्ग 44 कहलाती है। इस सड़क के विकास के साथ ही रामबन का भी विकास हुआ और 2007 में रामबन जिले के गठन के साथ ही इसे जिला मुख्यालय का दर्जा मिला।
हिमालय की पीर पंजाल श्रृंखला की यह घाटी अपने अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य और गंधक के झरनों के लिए प्रसिद्ध है। इस पानी में चमत्कारी उपचार शक्तियां मानी जाती हैं। मार्च से मई और मध्य सितम्बर से अक्टूबर के बीच यहां का मौसम सुहावना और सुन्दरता देखने लायक होती है। रामबन (Ramban) जिले में करने के लिए इतना कुछ है कि आपको कई दिन लग जायेंगे। ज्यादा कुछ करने का मन न हो तो अपने होटल की बालकनी में बैठकर प्रकृति के अद्भुत सौन्दर्य का आनन्द लें और घूमने की इच्छा हो तो पानी को बोतल और छड़ी लेकर घूमने निकल जायें।
रामबन के प्रमुख दर्शनीय स्थल (Major sightseeing places of Ramban)
बनिहाल (Banihal) :
रामबन से करीब 44 किलोमीटर दूर स्थित बनिहाल कश्मीर घाटी में प्रवेश करने से पहले अन्तिम पड़ाव है। इसे जम्मू और श्रीनगर को जोड़ने वाले प्रवेश द्वार के रूप में भी जाना जाता है। रेल और सड़क सुरंगों के बनने से पहले भी बनिहाल दर्रे से वाहन कश्मीर जाया करते थे। बनिहाल को पहली बार देशव्यापी प्रसिद्धी जवाहर सुरंग (लम्बाई 2.85 किलोमीटर) बनने पर मिली। बनिहाल-काजीगुंड रेल सुरंग (लम्बाई 11.215 किलोमीटर) बनने के बाद तो इसे भारत के बाहर भी जाना जाने लगा। इसे पीर पंजाल सुरंग भी कहा जाता है।
बनिहाल को कभी विशालता के नाम से जाना जाता था। कश्मीरी इतिहासकार कल्हण द्वार रचित “राजतरंगनी” के अनुसार, 11वीं शताब्दी तक यह एक बहुत ही संकरी पहाड़ी घाटी थी जिसका उपयोग विद्रोही राजकुमारों व अन्य विद्रोहियों द्वारा भागने के मार्ग के रूप में किया जाता था। कश्मीरी भाषा में बनिहाल का अर्थ है “हिमावात” यानी “बर्फीला तूफान”। सम्भवतः समुद्र की सतह से 2832 मीटर (9291 फीट) की ऊंचाई पर स्थित बनिहाल दर्रे के खतरनाक मौसम के कारण इसको यह नाम दिया गया है।
ठण्डी-छह : इस खूबसूरत हिल स्टेशन के बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। बनिहाल से लगभग 10 किलोमीटर दूर इस स्थान में घास के अत्यन्त सुन्दर और विशाल मैदानों के दोनों ओर दो समानान्तर जल धाराएं बहती हैं।
ज़ब्बान : घास का यह सुरम्य मैदान नौगाम्मोर से करीब पांच किलोमीटर दूर स्थित है।
नील टॉप : यह दर्शनीय स्थल जिला मुख्यालय रामबन से लगभग 55 किलोमीटर और बनिहाल कस्बे से चामलवास गांव होते हुए 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। समुद्र तल से 1800 से 2000 मीटर की औसत ऊंचाई पर स्थित यह स्थान मोटर मार्ग से जुड़ा हुआ है। यहां के लिए मागेरकोटे से भी एक मार्ग है।
डेगनटॉप :
गूल-माहोर मार्ग पर गूल से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित है डेगन टॉप। समुद्र तल से लगभग 2000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस स्थान सेगूल कस्बे का विहंगम दृश्य दिखता है। यहां के हरे-भरे घास के मैदान स्कीइंग और स्नो स्लेजिंग जैसे शीतकालीन खेलों के लिए आदर्श हैं। यहां पैराग्लाइडिंग की सुविधा और शिखर पर एक हेलीपैड भी है।
तत्तापानी : रामबन से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित यह स्थान गंधक के झरनों के लिए प्रसिद्ध है। माना जाता है कि इसके पानी में जादुई उपचार गुण हैं जो त्वचा रोग और गठिया जैसी बीमारियों के इलाज में कारगर हैं। इन झरनों में स्नान करने के लिए हर साल जून से नवम्बर के बीच हजारों लोग यहां आते हैं।
पटनीटॉप (Patnitop) :
रामबन से समुद्र तल से 2024 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पटनीटॉप तक पहुंचने के लिए करीब 45 किलोमीटर दूरी तय करनी पड़ती है। पटनीटॉप में हर मौसम में करने के लिए कुछ न कुछ है। सर्दी के मौसम में स्कीइंग कर सकते हैं तो गर्मियों में ट्रैकिंग का अलग ही आनन्द है। नौ छेद वाले गोल्फ कोर्स में भी हाथ आजमा सकते हैं। बारिश, बर्फबारी अथवा कोहरा न हो यानी आसमान कुछ साफ हो तो पैरसेलिंग करिये। ढलानों और जंगलों से गुजरने वाले रास्तों पर घुड़सवारी करने का अपना अलग ही मजा है। यहां तीन झरने हैं जिनके पानी में औषधीय गुण होने का दावा किया जाता है। और हां, पटनीटॉप जायें तो रोपवे की सैर करना न भूलें जो आपको आसमान से पटनीटॉप का शानदार नजारा दिखाता है। यह भारत का सबसे ऊंचा रोपवे है जिसका उद्घाटन वर्ष 2020 में हुआ था। इसके बन जाने से संगेट से पटनीटॉप की दूरी महज 15 मिनट में पूरी हो जाती है। फोटोग्राफी का शौक है तो क्लिक करते-करते आपका कैमरा भले ही भर जाये पर यहां के एक से एक शानदार-भव्य दृश्य खत्म नहीं होंगे। जैसे-जैसे प्रचार-प्रसार हो रहा है, पटनीटॉप में पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यहां हर साल औसतन छह लाख पर्यटक पहुंचने लगे हैं। भारत में गुलमर्ग और औली के बाद पटनीटॉप को स्कीइंग के लिए सबसे अच्छा स्पॉट माना जाता है।
कुद और बटोट नाम के प्रसिद्ध गांव पटनीटॉप के पास ही स्थित हैं। कुद का पतीसा (एक तरह की मिठाई) मशहूर है। गर्मागर्म खाने पर यह मुंह में ही पिघल जाता है। बटोटे उच्च गुणवत्ता वाले राजमा के लिए प्रसिद्ध है।
माधोटॉप :
पटनीटॉप से करीब पांच किलोमीटर दूर स्थित यह स्थान अपने स्कीइंग मैदानों के लिए प्रसिद्ध है। यहां के शानदार ढलानों पर सर्दी के मौसम में “बर्फ की कालीन” बिछते ही स्कीइंग के शौकीन उमड़ पड़ते हैं। हमारी आपको सलाह है कि स्कीइंग से पहले किसी अनुभवी व्यक्ति से सलाह-मशविरा अवश्य कर लें। स्कीइंग का कोर्स करना सबसे अच्छा विकल्प है।
नाग मन्दिर :
यह पटनीटॉप क्षेत्र के सबसे प्राचीन मन्दिरों में एक माना जाता है। मन्तलाई में चेनाब नदी के समीप एक पर्वत शिखर पर स्थित इच्छाधरी नाग देवता का यह मन्दिर कब बना यह स्पष्ट तो नहीं है मगर इसे 800 वर्ष से अधिक पुराना बताया जाता है। इसका अधिकतर हिस्सा लकड़ी से बना है। कहा जाता है कि इच्छाधारी नाग देवता ने यहां पर ब्रह्मचारी रूप में 22 वर्ष तपस्या करने के बाद पिण्डी स्वरूप धारण कर लिया था। चूंकि यहां पर नाग देवता का ब्रह्मचारी स्वरूप है, इसलिए जिस स्थान पर वे पिण्डी स्वरूप में विराजमान हैं। यहां महिलाओं का प्रवेश निषेध है।
नत्थाटॉप :
समुद्र तल से करीब सात हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित इस स्थान से पर्वतीय प्राकृतिक सौन्दर्य को उसकी पूरी विराटता के साथ निहारा जा सकता है। यहां से हिमालय और शिवालिक के दृश्य देखते ही बनते हैं। यहां पर कई स्पॉट एक्टिविटी भी कराई जाती हैं।
सनासर झील :
पटनीटॉप से 20 किलोमीटर दूर समुद्र की सतह से 2,050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है सनासर झील। सना और सर नाम के दो गांवों के नाम पर इस झील को यह नाम मिला है। यहां से आप पहाड़ों और जंगलों के सुन्दर परिदृश्यों का आनन्द ले सकते हैं। रॉक क्लाइम्बिंग, पैरासेलिंग, पैराग्लाइडिंग, हॉट एयर बैलून राइड्स आदि भी कर सकते हैं। झील के पास ही एक पर्वत श्रृंखला है जिसे शान्ता रिज के नाम से जाना जाता है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने सनासर झील को संरक्षित आर्द्र भूमि (वेटलैण्ड) घोषित किया है।
बुद्ध अमरनाथ मन्दिर :
भगवान शिव को समर्पित बुद्ध अमरनाथ मन्दिर के पास ही पौराणिक पुलत्स्य नदी बहती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, लंकापति रावण के दादाजी पुलत्स्य ऋषि ने यहां घोर तप किया था। उनके नाम पर ही इस नदी को यह नाम मिला है। रक्षाबन्धन पर यहां श्रद्धालु उमड़ पड़ते हैं।
ऐसे पहुंचें रामबन (How to reach Ramban)
वायु मार्ग : श्रीनगर का शेख उल आलम इण्टरनेशल एयरपोर्ट रामबन शहर से करीब 137 किलोमीटर जबकि जम्मू एयरपोर्ट 127 किलोमीटर दूर है।
रेल मार्ग : बनिहाल रेलवे स्टेशन यहां से लगभग 46 किलोमीटर जबकि ऊधमपुर 59 किलोमीटर दूर है।
सड़क मार्ग : रामबन शहर राज्य के दो सबसे महत्वपूर्ण शहरों जम्मू और श्रीनगर के मध्य में राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। इन दोनों ही स्थानों से यहां के लिए सरकारी और निजी बसें, टेम्पो ट्रैवलर, कैब, टैक्सियां आदि चलती हैं।