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अपनी इस पीड़ा को मैं आप लोगों के साथ आज साझा कर रहा हूं पर मेरे साथ ऐसा अक्सर होता है, नौकरी के लिए आने वाले 10 युवाओं में से 8-9 ऐसे ही होते हैं।

पंकज गंगवार

अभ्यर्थी चाहे युवक हों या युवती, वे कितने भी बड़े और नामी शिक्षण संस्थान से पढे हों, उनके पास कितनी भी बड़ी-बड़ी डिग्रियां हो या वे सिर्फ प्राइमरी स्तर तक ही स्कूल गए हों, अगर वे मेरे पास नौकरी मांगने आते हैं तो मैं इन सबसे प्रभावित हुए बिना उनका एक छोटा-सा टेस्ट लेता हूं जो शायद तीसरी या चौथी क्लास के स्तर का होता है। इसके कुछ चरण होते हैं- पहला, मैं अपने प्रॉडक्ट्स पर लिखे नाम जो कि अधिकतर अंग्रेजी में होते हैं, उनको पढ़ने के लिए कहता हूं। दूसरा, हमारे उत्पादों के डिटेल की पुस्तिका जिन पर उत्पाद के बारे में हिंदी में लिखा होता है, वह पढ़ने को दे देता हूं। तीसरा, गणित का ज्ञान परखने के लिए जोड़-घटाना, गुणा-भाग के कुछ बहुत आसान से प्रश्न देता हूं। इस आलेख के ऊपर लगी फोटो को देखकर आपको अंदाजा लग जाएगा कि मैं किस स्तर के प्रश्न देता हूं। जो उत्तर पुस्तिका मैं यहां शेयर कर रहा हूं वह एक बी फार्मा सेकंड ईयर की बच्ची की है, जो मेरे पास नौकरी के लिए आई थी। उसकी इस उत्तर पुस्तिका को देखकर मैं आश्चर्य से भर गया। बी फार्मा एक टेक्निकल कोर्स है जिसमें दवाइयों के बारे में पढ़ाया जाता है। दवाइयों के टेक्निकल नामों को पढ़ना काफी कठिन होता है लेकिन मेरी कंपनी के उत्पाद जिनके नाम बहुत सामान्य होते हैं,  उनको भी वह अंग्रेजी में नहीं पढ़ पा रही थी। हिंदी भी अटक-अटक कर पढ़ रही थी। और गणित कितनी आती होगी, इसको तो आप उसकी उत्तर पुस्तिका के इस पन्ने को देखकर समझ ही जाएंगे।

मेरे एक पत्रकार मित्र ने भी ऐसा ही एक किस्सा सुनाया था। बात तब की है जब वह एक बड़े अखबार में एक बड़े पद पर थे। एक बार उन्हें मार्केटिंग विभाग में एग्जीक्यूटिव के पदों की नियुक्ति के लिए बनाए गए इन्टरव्यू बोर्ड में शामिल किया गया। उनका कहना था कि साक्षात्कार देने आए ज्यादातर युवा मार्केटिंग और सेल्स में अन्तर तक नहीं बता पाए जबकि वे सभी एमबीए थे। आपको याद होगा कि इंफोसिस के को-फाउंडर और मानद चेयरमैन एन. आर. नारायण मूर्ति  ने कुछ साल पहले कहा था कि देश के 80 प्रतिशत युवा नौकरियों के लिए अच्छी तरह प्रशिक्षित नहीं हैं।

अपनी इस पीड़ा को मैं आप लोगों के साथ आज साझा कर रहा हूं पर मेरे साथ ऐसा अक्सर होता है, नौकरी के लिए आने वाले 10 युवाओं में से 8-9 ऐसे ही होते हैं। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि दोष किसको दूं, आज की पीढ़ी को या आज की शिक्षा प्रणाली को? आप ही कुछ बताइए।

 (लेखक पोषण विज्ञान के गहन अध्येता होने के साथ ही न्यूट्रीकेयर बायो साइंस प्राइवेट लिमिटेड (न्यूट्रीवर्ल्ड) के चेयरमैन भी हैं)

 

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