परवेज मुशर्रफ (Pervez Musharraf) की ददिहाल और ननिहाल दोनों बागपत के कोताना गांव में ही थी। उनकी मां का नाम बेगम जरीन और पिता का नाम मुशर्रफुद्दीन था।
बागपत। उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के कोताना गांव में स्थित पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ (Pervez Musharraf) के स्वजन की 13 बीघा भूमि गुरुवार को नीलाम हो गई। राजस्व अभलेखों में शत्रु संपत्ति (enemy property) के रूप में दर्ज यह जमीन एक करोड़ 38 लाख 16 हजार रुपये में नीलाम हुई। इसका आधार मूल्य 39 लाख 16 हजार रुपये रखा गया था। ई-नीलामी प्रक्रिया गुरुवार सुबह 11 बजे से शुरू होकर रात 9:30 बजे तक चली। इस जमीन को तीन लोगों ने मिलकर खरीदा है। यह परवेज मुर्शरफ (Pervez Musharraf) के परिवार की उत्तर प्रदेश में आखिरी जमीन थी। अब यहां मुशर्रफ और उनके स्वजन का नाम फाइलों में ही रह जाएगा।
कोताना गांव के रहने वाले नुरू 1965 में पाकिस्तान चले गए थे। उनके नाम से गांव में लगभग 13 बीघा भूमि थी जिसे 2010 में शत्रु संपत्ति घोषित किया गया था। भूमि के आठ प्लाट हैं जिनकी ई-नीलामी प्रक्रिया हुई। शत्रु संपत्ति अभिरक्षक कार्यालय की ओर से कोताना गांव से करीब एक किलोमीटर दूर बांगर (नदी के किनारे ऊंची) में स्थित इस संपत्ति की नीलामी प्रक्रिया को पूरी कराया गया। एडीएम पंकज वर्मा ने बताया कि खरीदारों को चार महीनों में रुपये जमा करने होंगे। पहले महीने में 25 प्रतिशत और अगले तीन महीनों में बाकी 75 प्रतिशत रुपये जमा कराने होंगे।
परवेज मुशर्रफ (Pervez Musharraf) की ददिहाल और ननिहाल दोनों कोताना गांव में ही थी। उनकी मां का नाम बेगम जरीन और पिता का नाम मुशर्रफुद्दीन था। जरीन और मुशर्रफुद्दीन की शादी के बाद वर्ष 1943 में दोनों परिवार गांव से चले गए थे। परवेज मुशर्रफ और उनके भाई जावेद मुशर्रफ का जन्म दिल्ली में हुआ था। बंटवारे के बाद 1947 में परवेज मुशर्रफ (Pervez Musharraf) का परिवार पाकिस्तान में बस गया। हालांकि उनके परिवार के सदस्य नुरू 1965 तक यहीं रहते थे। परवेज मुशर्रफ गांव में कभी नहीं आए। देश के बंटवारे के दौरान उनका परिवार 1947 में पाकिस्तान जाकर बस गया था। परवेज मुशर्रफ बाद में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष बने और नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद से हटाकर सत्ता हथिया ली। तानाशाह मुशर्रफ को ही कारगिल युद्ध के लिए जिम्मेदार माना जाना है।
परवेज मुशर्रफ (Pervez Musharraf) के भाई जावेद और परिवार के अन्य सदस्यों की जमीन 15 साल पहले शत्रु संपत्ति (enemy property) के रूप में दर्ज हो गई थी। बताया जा रहा है कि प्रशासन पिछले कई सालों से इस जमीन को स्थानीय लोगों को तीन-तीन साल के पट्टे पर दे रहा था। ग्रामीण यहां गेहूं और धान की खेती किया करते थे। पिछले साल इस जमीन को पट्टे पर नहीं दिया गया।