केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का यह संविधान संशोधन विधेयक पेश किया।
नई दिल्ली। एक देश एक चुनाव विधेयक (One Nation One Election Bill) मंगलवार को लोकसभा में पेश किया गया। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल (Arjun Ram Meghwal) ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का यह संविधान संशोधन विधेयक पेश किया। विधेयक के प्रस्तुत होते ही इसका विरोध शुरू हो गया। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि संविधान संशोधन विधेयक 129 का वह विरोध करते हैं। इस विधेयक को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। सपा ने भी विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि संविधान की बात करने वाले लोग आज फिर संविधान के खिलाफ जा रहे हैं। ये संविधान की मूल भावना खत्म कर रहे हैं, इसके अलावा इनके पास कोई काम ही नहीं बचा है। विधेयक के पक्ष में 269 और विपक्ष में 198 वोट पड़े। विपक्ष के पुरजोर विरोध के मद्देनजर सरकार ने विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति को भेजने का फैसला किया है। केंद्रीय कैबिनेट ने 12 दिसंबर को इस विधेयक को मंजूरी दी थी।
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि यह प्रस्तावित विधेयक संविधान के मूल ढांचे को ही प्रभावित करता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि राज्य सरकार और राज्य विधानसभा केंद्र सरकार या स्वयं संसद के अधीनस्थ नहीं हैं। इस संसद के पास सातवीं अनुसूची की सूची एक और सूची तीन के तहत कानून बनाने की शक्ति है। इसी तरह, राज्य विधानसभा के पास सातवीं अनुसूची सूची दो के तहत कानून बनाने की शक्ति है। इस प्रक्रिया से राज्य विधानसभा की स्वायत्तता छीन ली जा रही है।
असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि इस विधियक का वह विरोध करते हैं। यह बिल लोकतांत्रिक स्वराज के अधिकारों का उल्लंघन करता है। राज्य विधानसभा का कार्यकाल 5 साल का नहीं होगा, यह अपने आप में संविधान का उल्लंघन है। यह विधेयक संघवाद के सिद्धांतों के खिलाफ और राष्ट्रपति स्टाइल वाले लोकतंत्र की तरह है। यह बिल राज्यों के क्षेत्रीय दलों को खत्म करने के लिए है।
टीडीपी ने किया समर्थन
चंद्रबाबू नायडू की पार्टी तेलगु देशम पार्टी ने इस विधेयक को अपना समर्थन दे दिया है। टीडीपी एनडीए की सहयोगी पार्टी है।
कानून मंत्री ने दिया विपक्ष को जवाब
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि सदस्यों ने विधेयक के संबंध में आपत्ति उठाई है पर अनुच्छेद 368 संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के बारे में अधिकार देता है। यह तो संविधान में ही लिखा है। संसद को विधानमंडलों को चुनाव के बारे में यह अधिकार देता है। यह संवैधानिक प्रस्ताव है। एकसाथ चुनाव के लिए संशोधन इसको संतुलित कर सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती केस में 1973 में फेडरल स्ट्रक्चर के बार में बात की। कुछ और बिंदु बाद में जोड़े गए हैं।
कानून मंत्री ने कहा कि संविधान के मूल ढांचे में कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। इससे कोई ना तो संसद की शक्ति में कमी आ रही है ना ही विधानसभा की शक्ति में कमी आ रही है। 4 नवंबर 1948 को बाबा साहेब ने कहा था ति संघवाद का मूल सिद्धांत यह है कि विधायिका और कार्यपालिका की सत्ता केंद्र और राज्यों के बीच केंद्र द्वारा बनाए गए किसी कानून के द्वारा नहीं बल्कि संविधान द्वारा ही बंटी रहती है। हम किसी सूची में कोई संशोधन नहीं कर रहे हैं, कैसे संघवाद का विरोध कर रहे हैं।
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