इलाहाबाद हाई कोर्ट ने माना कि मृतक सरकारी कर्मचारी के डेथ-कम-रिटायमेंट लाभों के लिए आवेदन करते समय आवेदक के लिए उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्रदान करना आवश्यक नहीं है यदि उसके नाम पर कोई नामांकन मौजूद है।
प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने माना कि मृतक सरकारी कर्मचारी के डेथ-कम-रिटायमेंट लाभों के लिए आवेदन करते समय आवेदक के लिए उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्रदान करना आवश्यक नहीं है यदि उसके नाम पर कोई नामांकन मौजूद है।
बुलंदशहर की रफत नाज और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 3 अन्य मामले में न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने अपने आदेश में कहा, “एक बार जब मृतक द्वारा अपने सेवा रिकॉर्ड में किसी व्यक्ति, जो उसकी पत्नी है के पक्ष में नामांकन किया जाता है तो प्रतिवादियों या किसी भी नियोक्ता के लिए सेवा रिकॉर्ड में नामांकित व्यक्ति के पक्ष में रिटायरमेंट के बाद के लाभों का भुगतान रोकने का कोई कारण नहीं है। यह दूसरे व्यक्ति के लिए है, जो नामांकित नहीं है और वह मुकदमे के माध्यम से अपना दावा स्थापित करे।”
याचिकाकर्ता रफत नाज के पति राशिद को उत्तर प्रदेश राज्य के तहत संस्थान में सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया। 14.07.2020 को राजकीय इंटर कॉलेज बुलंदशहर के कार्यवाहक प्रधानाचार्य के रूप में कार्य करते हुए उनका निधन हो गया। वे अपने पीछे पत्नी और चार बच्चों को छोड़ गए। याचिकाकर्ता ने डाइंग-इन-हार्नेस रूल्स के तहत अपने एक बेटे की अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया। शेष परिवार द्वारा 18.05.2021 के हलफनामे के माध्यम से कोई आपत्ति नहीं दिखाई गई और जिला मजिस्ट्रेट ने मृतक के परिवार के सदस्यों की पहचान करते हुए एक प्रमाण पत्र जारी किया।
इसके बाद जिला विद्यालय निरीक्षक (DIOS) ने याचिकाकर्ता को एक पत्र भेजा जिसमें कहा गया कि जिलाधिकीर द्वारा जारी प्रमाण पत्र से उन्हें केवल 5000 रुपये तक के लाभ की पात्रता है। यह बताया गया कि उस राशि से अधिक रिटायमेंट लाभ प्राप्त करने के लिए उन्हें सिविल कोर्ट से उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्राप्त करना आवश्यक था।
इस बीच खुद को याचिकाकर्ता के दिवंगत पति की दूसरी पत्नी होने का दावा करने वाली अंजुम परवीन (प्रतिवादी संख्या 5) ने जिला मजिस्ट्रेट को एक पत्र लिखा जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता का 2015 में तलाक हो चुका है। वह मृतक की वैध पत्नी है। उसने तर्क दिया कि अधिकारियों ने याचिकाकर्ता को लाभ जारी करने पर रोक लगाई। इसके जवाब में याचिकाकर्ता ने उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्रदान करने के लिए एक याचिका दायर की जिसका प्रतिवादी संख्या 5 ने विरोध किया। व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने वर्तमान रिट याचिका दायर की जिसमें कहा गया कि डेथ-कम-रिटायरमेंट लाभ और उसके बेटे को अनुकंपा के आधार पर नौकरी दिए बिना परिवार को गंभीर वित्तीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता को उसके पति के लाभ जारी करने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। यह तर्क दिया गया कि उत्तराधिकार प्रमाण पत्र का हवाला देना नियमों के अनुसार अनिवार्य नहीं था।
यहा रहा हाई कोर्ट का फैसला
हाई कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता के बेटे को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति दिए जाने पर कोई आपत्ति नहीं थी। ऐसा होने के कारण उन्होंने जिला विद्यालय निरीक्षक को उत्तर प्रदेश सेवा में मरने वाले सरकारी सेवकों के आश्रितों की भर्ती नियम 1974 के तहत बेटे की नियुक्ति के दावे पर विचार करने का निर्देश दिया।
डेथ-कम-रिटायरमेंट लाभों के लिए याचिकाकर्ता के दावे के संबंध में हाई कोर्ट ने कहा कि न तो न्यायालय और न ही प्रतिवादी अधिकारी यह निर्धारित कर सकते हैं कि याचिकाकर्ता के पति का वैध उत्तराधिकारी कौन है। यह देखा गया कि ऐसे मामले में कानून की स्थापित स्थिति उस व्यक्ति को लाभ प्रदान करना है जिसका नाम सेवा रिकॉर्ड में नामित किया गया।
हाई कोर्ट ने कहा, “ डीआईओएस और अन्य शिक्षा अधिकारियों द्वारा प्रथम याचिकाकर्ता या पांचवें प्रतिवादी को उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्राप्त करने पर जोर देने का कोई महत्व नहीं है। उत्तराधिकार प्रमाण पत्र भले ही प्रथम याचिकाकर्ता या उस मामले के लिए पांचवें प्रतिवादी के पक्ष में दिया गया हो, प्रतिवादी अधिकारियों द्वारा उनमें से किसी को भी भुगतान किए गए धन या धन में कोई लाभकारी हित नहीं बनाता है।”
बनारसी दास बनाम टीकू दत्ता और सी के प्रहलाद एवं अन्य बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भरोसा करते हुए हाई कोर्ट ने माना कि उत्तराधिकार प्रमाणपत्र केवल मृतक के स्वामित्व वाले धन या चल संपत्तियों में तीसरे पक्ष को वैध निर्वहन देता है। यह कहा गया कि यह उस व्यक्ति के लिए शीर्षक घोषित नहीं करता जिसके नाम पर प्रमाणपत्र जारी किया गया।
इसके अलावा न्यायालय ने माना कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 372 के तहत उत्तराधिकार प्रमाणपत्र सेवा अभिलेखों में नामांकन के बराबर होगा। यह देखा गया कि प्रतिवादी संख्या 5 ने मृतक की दूसरी पत्नी होने के अपने दावों को प्रमाणित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिखाया। ऐसे मामले में जहां याचिकाकर्ता का उल्लेख मृतक कर्मचारी की सेवा पुस्तिका में नामिती के रूप में किया गया, हाई कोर्ट ने माना कि प्रतिवादी अब उसे उसके लाभों से वंचित नहीं कर सकते।
हाई कोर्ट ने कहा, “प्रतिवादी नंबर 1,2 और 3 द्वारा दायर जवाबी हलफनामे के पैराग्राफ नंबर 5 में नामांकन की बात स्वीकार की गई है। साथ ही मानव संपदा प्रबंधन प्रणाली पोर्टल पर पोस्ट की गई जानकारी में राशिद की मृत्यु की स्थिति में सामान्य भविष्य निधि, ग्रेच्युटी और पेंशन से संबंधित प्रथम याचिकाकर्ता के पक्ष में नामांकन है। राशिद के साथ उसके रिश्ते को उसकी पत्नी के रूप में दर्शाया गया। आधिकारिक पोर्टल पर इनमें से किसी भी पोस्टिंग में पांचवें प्रतिवादी का नाम नहीं है, यहां तक कि दूर-दूर तक उसका उल्लेख भी नहीं है।”