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याचिका में कहा गया है कि यह एक्ट पुलिस को शिकायतकर्ता, अभियोजक और निर्णायक बनने तथा आरोपी की पूरी संपत्ति कुर्क करने की अनुमति देता है।

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एक्ट (Uttar Pradesh Gangsters Act) की वैधता की जांच करेगा। उसने इसको लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका में कहा गया है कि यह एक्ट पुलिस को शिकायतकर्ता, अभियोजक और निर्णायक बनने तथा आरोपी की पूरी संपत्ति कुर्क करने की अनुमति देता है।

अपराधों में आरोपी लोगों की संपत्तियों पर अवैध बुलडोजर कार्रवाई पर प्रतिबंध लगाने तथा दिशा-निर्देश निर्धारित करने के 16 दिन बाद न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) एक्ट, 1986 की संवैधानिक वैधता की जांच करने पर सहमति जताई है।

एडवोकेट ऑन रिकार्ड अंसार अहमद चौधरी के माध्यम से दायर जनहित याचिका में इस अधिनियम की धारा 3, 12 और 14 के साथ-साथ 2021 के नियम 16(3), 22, 35, 37(3) और 40 को चुनौती दी गई है जो मामलों के पंजीकरण, संपत्तियों की कुर्की, जांच और ट्रायल से संबंधित हैं। याचिका के मुताबिक, गैंगस्टर्स कानून की उक्त धाराएं और नियम संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 20(2), 21 व 300ए और संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करते हैं।

गैंगस्टर्स एक्ट के नियम 22 में कहा गया है कि अधिनियम के तहत एक भी कार्य या चूक प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने के लिए पर्याप्त होगी। इससे आरोपी का आपराधिक इतिहास अप्रासंगिक हो जाएगा। तर्क दिया गया है कि यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ अधिनियम के तहत फिर से एफआईआर दर्ज करना, जिसने अपराध किया है और जिसके खिलाफ पहले ही एफआईआर दर्ज हो चुकी है, दोहरा खतरा है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 20(2) का उल्लंघन है।

 

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