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Hijab banned in Muslim-majority country Tajikistan

राष्ट्रपति इमोमाली रहमान जहां कट्टरवाद के खिलाफ कड़े कदम उठा रहे हैं, वहीं अपने देश में पश्चिमी जीनवशैली को बढ़ावा देने में जुटे हैं।

 दुशानबे  ज्यादातर मुस्लिम बहुल देशों में हिजाब, दाढ़ी और धार्मिक कपड़ों को धार्मिक पहचान माना जाता है मगर ताजिकिस्तान एक ऐसा मुस्लिम देश है जहां हिजाब और अन्य धार्मिक कपड़ों के पहनने पर पाबंदी लगा दी गई है। पिछले 30 सालों से ताजिकिस्तान की सत्ता में काबिज राष्ट्रपति इमोमाली रहमान का मानना है कि धार्मिक पहचान देश के विकास में बाधक है। हालांकि यह कानून इसी साल जून में लगा किया गया था मगर अब इस पर अमल सख्ती से शुरू हो गया है। यह विवादित कानून देश के मुस्लिम समुदाय के एक बड़े वर्ग के बीच व्यापक चर्चा और असंतोष की वजह बन गया है। (Hijab banned in Muslim-majority country Tajikistan)

राष्ट्रपति इमोमाली रहमान (Emomali Rahman) जहां कट्टरवाद के खिलाफ कड़े कदम उठा रहे हैं, वहीं अपने देश में पश्चिमी जीनवशैली को बढ़ावा देने में जुटे हैं। ताजिकिस्तान की सरकार का कहना है कि इस प्रतिबंध का उद्देश्य अपने राष्ट्रीय सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करना है। इससे अंधविश्वास और उग्रवाद से लड़ने में मदद मिलेगी।

2020 की जनगणना के मुताबिक ताजिकिस्तान में 96 प्रतिशत आबादी मुस्लिम हैं मगर वहां की सरकार इस्लामी जीवन शैली और मुस्लिम पहचान को धर्मनिरपेक्षता के लिए एक चुनौती मानती है। 1994 से सत्ता में काबिज इमोमाली रहमान ने दाढ़ी बढ़ाने पर भी रोक लगा दी। इन प्रतिबंधों का उल्लंघन करने पर सजा और भारी जुर्माना का सामना लोगों को करना पड़ता है

ताजिकिस्तान ने साल 2007 से स्कूलों और 2009 से सार्वजनिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाया था। लेकिन,  अब कोई महिला देश में कहीं भी हिजाब या कपड़े से सिर नहीं ढक सकती है। देश में दाढ़ी रखने के खिलाफ कोई कानून नहीं है, इसके बावजूद लोगों की दाढ़ी जबरन काट दी जाती है। टीआरटी वर्ल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति ने प्रबंधित कपड़ा पहना तो उसे भारी जुर्माने का सामना करना पड़ता है। आम लोगों पर 64,772 रुपये, कंपनी को 2.93 लाख और सरकारी अधिकारियों पर चार लाख से 4,28,325 रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है।

ताजिकिस्तान में अपने बच्चों को धार्मिक शिक्षा हासिल करने के लिए विदेश भेजाने वालों को दंडित किया जाता है 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे बिना अनुमति के मस्जिदों में नहीं जा सकते हैं। ईद-उल-फितर और ईद-उल-अजहा पर बच्चों के उत्सवों पर भी प्रतिबंध लगा है।काले कपड़े बेचने पर भी रोक

ताजिकिस्तान सुन्नी मुस्लिम बहुल देश है। मगर यहां हिजाब और दाढ़ी रखने को विदेशी सांस्कृति माना जाता है। दो साल पहले ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में काले कपड़े के बेचने पर प्रतिबंध भी लग चुका है। तुर्किये के दैनिक सबा की रिपोर्ट के अनुसार, 18 वर्ष से कम उम्र किशोर शुक्रवार की नमाज में हिस्सा नहीं ले सकते। वर्ष 2015 में ताजिकिस्तान की धार्मिक मामलों की राज्य समिति 35 वर्ष से कम उम्र के लोगों के हज यात्रा पर जाने पर प्रतिबंध लगा चुकी है।

कट्टरपंथ को सबसे बड़ी चुनौती मानती है सरकार

ताजिकिस्तान की सरकार कट्टरपंथ को सबसे बड़ा खतरा मानती है। उसका मानना है कि इन उपायों से कट्टरवाद से लड़ने में मदद मिलेगी। पिछले कुछ वर्षों में ताजिक नागरिकों ने आईएसआई खूब ज्वाइन की। इसी साल मार्च में मॉस्को के क्रोकस सिटी हॉल पर आतंकी हमले में ताजिक नागरिक के शामिल होने के सुबूत मिले थे। इस हमले में 140 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। वर्ष 2014 में 200, 2015 में 1000 और 2018 में आईएसआईएस में शामिल होने की खातिर सीरिया और इराक जाने वाले ताजिकों नागरिकों की संख्या लगभग 1,000 थी।

ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमान का कहना है कि उनका उद्देश्य ताजिकिस्तान को लोकतांत्रिक, संप्रभु, कानून-आधारित और धर्मनिरपेक्ष देश बनाना है। उन्होंने लोगों को अपने दिल में ईश्वर से प्रेम करने की सलाह दी।

मस्जिदों में खोली जा रहीं चाय की दुकानें

2017 में ताजिकिस्तान की धार्मिक मामलों की समिति ने बताया था कि एक साल में देश में 1,938 मस्जिदों को बंद किया गया था। मस्जिदों को चाय की दुकानों और चिकित्सा केंद्रों में तब्दील किया जा रहा है।

जनता ने व्यक्त की तीव्र प्रतिक्रिया

नए कानून के लागू होने के बाद, ताजिकिस्तान की जनता ने तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की है। राजधानी दुशानबे की एक शिक्षिका निलोफर का कहना है कि पुलिस ने उन्हें हाल ही में तीन बार हिजाब उतारने के लिए कहा। जब उन्होंने हिजाब उतारने से इंकार किया तो पुलिस ने उन्हें रातभर थाने में रखा। उनके पति को भी दाढ़ी काटने से मना करने के कारण पांच दिनों तक जेल में रहना पड़ा। इन घटनाओं ने निलोफर और उनके परिवार के जीवन पर गंभीर असर डाला है और कई लोग इस कानून के खिलाफ खुलकर विरोध जता रहे हैं।

कानून विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह नया कानून कट्टरपंथ को रोकने में विफल साबित हो सकता है। वे मानते हैं कि सरकार के द्वारा उठाए गए इस कदम से कट्टरपंथ की समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि यह और अधिक असंतोष और सामाजिक तनाव को बढ़ा सकता है। मानवाधिकार विशेषज्ञ लरिसा अलेक्जांडरोवा ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि देश को गरीबी, भ्रष्टाचार और सामाजिक असमानता जैसे असली मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए, बजाय इसके कि वे केवल सतही उपायों पर ध्यान केंद्रित करें।

 

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