Devprayag : उत्तराखण्ड में पवित्र नदियों के संगमों पर देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, नन्दप्रयाग, कर्णप्रयाग और विष्णुप्रयाग स्थित हैं जिन्हें पंच प्रयाग कहते हैं। देवप्रयाग इन पंच प्रयागों में सबसे श्रेष्ठ और पहला प्रयाग है। इसका महत्व प्रयागराज के बराबर माना गया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपने लेखों में इसका उल्लेख किया है। देवप्रयाग क्षेत्र का भगवान राम से विशेष सम्बन्ध है। यह क्षेत्र उनकी तपस्थली के रूप में प्रसिद्ध है।
प्रकाश नौटियाल
आजकल चार धाम (बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री) यात्रा जोरों पर है। अगर आप भी तीर्थयात्रा पर निकले हों तो देवप्रयाग (Devprayag) में जरूर घूमें। देवप्रयाग से गुजरने से पहले जान लें कि अलकनन्दा और भागीरथी का संगम यहीं पर होता है। यह वही भागीरथी नदी है जिसे भगवान राम के पूर्वज राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का उद्धार करने के लिए गोमुख में मां गंगा के रूप में पृथ्वी पर उतारा था। देवप्रयाग में अलकनन्दा का इसी भागीरथी नदी में संगम होता है। अलकनन्दा को बहू और भागीरथी को सास के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि अलकनन्दा अत्यन्त शान्त वेग से बहती है जबकि भागीरथी शोर मचाते हुए।
देवप्रयाग (Devprayag) एक प्राकृतिक सम्पदा युक्त स्थल है। इसे “सुदर्शन क्षेत्र” भी कहा जाता है। सातवीं सदी में इसको “ब्रह्मपुरी”, “ब्रह्म तीर्थ” और “श्रीखण्ड नगर” जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता था। इसे “उत्तराखण्ड का रत्न” के रूप में भी जाना जाता है। दक्षिण भारत के प्राचीन ग्रन्थ अरावल में इसका कण्डवेणुकटि नगरम के नाम से उल्लेख है। तीन पर्वतों दशरथांचल, गिद्धांचल पर्वत और नरसिंहकल पर्वत के मध्य में स्थितदेवप्रयाग समुद्रतल से 830 मीटर (2,723 फीट) की औसत ऊंचाई पर बसा हुआ है।1000 ईस्वी से 1083 ईस्वी तक पूरे गढ़वाल की तरह यह भी पाल वंश के अधीन रहाजो बाद में पवार वंश के शाह कहलाए।
उत्तराखण्ड में पवित्र नदियों के संगमों पर देवप्रयाग (Devprayag), रुद्रप्रयाग, नन्दप्रयाग, कर्णप्रयाग और विष्णुप्रयाग स्थित हैं जिन्हें पंच प्रयाग(Panch Prayag)कहते हैं। देवप्रयाग इन पंच प्रयागों में सबसे श्रेष्ठ और पहला प्रयाग है। इसका महत्व प्रयागराज के बराबर माना गया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपने लेखों में इसका उल्लेख किया है। देव्रपयाग (Devprayag) के बारे में ईटी एटकिंसन ने लिखा है, “यह एक छोटी सपाट जगह पर एक खड़ी चट्टान के नीचे जलस्तर से 100फीट ऊंचाई पर स्थित है। इसके पीछे 800 फीट ऊंचे उठते पर्वत का एक कगार है। जल के स्तर से उपर तक पहुंचने के लिए चट्टानों को काटकर बनायी गयी एक बड़ी सीढ़ी हैजिस पर चढ़कर मवेशी आराम से पहुंच सकें। इसके अलावा रस्सी के दो झूला पुल भागीरथी और अलकनन्दा नदियों के उस पार जाने के लिए हैं।”
भगवान राम से जुड़ा है देवप्रयाग का इतिहास (History of Devprayag is linked to Lord Ram)
देवप्रयाग (Devprayag) क्षेत्र का भगवान राम से विशेष सम्बन्ध है। यह क्षेत्र उनकी तपस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। स्कन्द पुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है। कहते हैं कि रावण के वध की वजह से लगे ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान राम ने यहीं पर तपस्या और विशेश्वर शिवलिंग की स्थापना की थी। भगवान राम का प्रसिद्ध रघुनाथ मन्दिर यहीं पर है जो किशहर के ऊपरी भाग में एक चबूतरे पर पर बिना चूना-सीमेन्ट के पत्थरों से बनाया गया है। यहां भगवान राम (जो कि विष्णु के अवतार थे) और माता सीता (जो कि देवी लक्ष्मी के अवतार थीं) की पूजा की जाती है। माना जाता है कि 8वीं शताब्दी के दौरान यह मन्दिर गढ़वाल साम्राज्य विस्तार के साथ ही आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था। हालांकि यह मन्दिर मूल रूप से 10वीं शताब्दी से अस्तित्व में है।
रघुनाथ मन्दिर के गर्भगृह में पाषाण से बनी छह फीट ऊंची चतुर्भुज मूर्ति है। पूजा करते समय इस मूर्ति की दो बांहों को ढक दिया जाता है। इस मन्दिर के चारों ओर शंकराचार्य, हनुमान और भगवान शिव के छोटे-छोटे मन्दिर हैं। मन्दिर में राजस्थानी शैली की एक छतरी भी बनी हुई है जिसकी कई कार्यक्रमों मेंपूजा की जाती है। इसी मन्दिर में1785 में पंवार राजा जयकृत सिंह ने जान दे दी थी। इसके बाद उनकी चारों रानियां भी सती हो गयी थीं। इन रानियों को समर्पित एक मन्दिर भी यहां है जिसे सती मन्दिर कहा जाता है। उस घटना के बाद से पंवार वंश का कोई भी राजा रघुनाथ मन्दिर की ओर नहीं जाता है। राजा जब भी देवप्रयाग (Devprayag) जाते थे तो मन्दिर को पूरी तरह से ढंक दिया जाता था। मन्दिर के ठीक पीछे एक शिलालेख हैजिस पर ब्राह्मी लिपि में 19 लोगों के नाम अंकित हैं। माना जाता है ये वे 19 लोग हैं जिन्होंने स्वर्ग की प्राप्ति के लिए देवप्रयाग के संगम में जल समाधि ली थी।मन्दिर के शीर्ष पर सोने का कलश और गर्भगृह में भगवान राम की मूर्ति है। मूर्ति के हाथ और पैरों में आभूषण हैं और सिर पर सोने का मुकुट लगा हुआ है। साथ में माता सीता और लक्ष्मण हैं। मन्दिर के बाहर गरुड़ की पीतल की एक मूर्तिहै। मन्दिर के दायीं तरफ बदरीनाथ, महादेव और कालभैरव विराजमान हैं। मन्दिर के सिंहद्वार तक पहुंचने के लिए101 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। 1803 में आये भूकम्प की वजह से यह मन्दिर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था। तब ग्वालियर के महाराज दौलतराव सिंधिया ने इसकी मरम्मत करवाई थी।श्रीनारायण चतुर्वेदी नेहिन्दू मन्दिरों के रूप विन्यास में नागर शैली के मन्दिरों का जो वर्णन किया है, उसके मुताबिक इस मन्दिर की बनावट नागर शैली की है, मात्र शिखर ही कत्यूरी शैली का है।
108 विश्वमूर्ति में शामिल : आदि गुरु शंकराचार्य ने चार धामों (उत्तर में केदारनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथपुरी और पश्चिम में श्रृंगेरी मठ) के अतिरिक्त 108 विश्वमूर्ति यानि ऐसे विराट मन्दिरों की स्थापना की थी जिनमें भगवान द्वारा स्वयं स्थापित होने की मान्यता है। उत्तराखण्ड में ऐसे तीन मन्दिर हैं- रघुनाथ मन्दिर देवप्रयाग (Devprayag), नरसिंह मन्दिर जोशीमठ और भगवान श्री बदरीनाथ। इन स्थानों पर भगवान ने स्वयं प्रकट होकर स्थान को सिद्ध किया। इन 108 मन्दिरों में एक भारत के बाहर नेपाल में मुक्तिनाथ मन्दिर है जिसकी झील से शालिग्राम भगवान की पिण्डिया निकलती हैं।
चार किलोमीटर दूर है सीता कुटी (Sita Kuti is four kilometers away)
स्कन्द पुराण के माहेश्वर खण्ड के उपखण्ड केदार खण्ड में भगवान राम के भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता सहित यहां आने का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि जब प्रजा के आरोप लगाने पर भगवान राम ने माता सीता का त्याग किया तो लक्ष्मण जी माता सीता को ऋषिकेश के आगे तपोवन में छोड़ कर चले गये। मान्यता हैकि जिस स्थान पर लक्ष्मण जी ने माता सीता को विदा किया था वह स्थान देवप्रयाग (Devprayag) के निकट ही चार किलोमीटर आगे पुराने बदरीनाथ मार्ग पर स्थित है। तब से इस गांव का नाम सीता विदा पड़ गया। इसके निकट ही सीताजी ने अपने रहने के लिए कुटिया बनायी थीजिसे अब सीता कुटी या सीतासैंण भी कहा जाता है।
भगवान विष्णु के पांच अवतारों का है सम्बन्ध (There is a relation between the five incarnations of Lord Vishnu)
देवप्रयाग (Devprayag) से भगवान विष्णु के पांच अवतारों का सम्बन्ध माना जाता है। जिस स्थान पर भगवान विष्णु वराह के रूप में प्रकट हुए, उसे वराह शिला कहा जाता है। जिस जगह पर वे वामन के रूप में प्रकट हुए, उस जगह को वामन गुफा के नाम से जाना जाता है। देवप्रयाग के निकट नरसिंहाचल पर्वत है जिसके शिखर पर भगवान विष्णु नरसिंह के रूप में पधारे थे। इस पर्वत को भगवान विष्णु के अवतार परशुराम की तपोस्थली भी कहा जाता है। उन्होंने सहस़्त्रबाहु को मारने से पहले यहीं तप किया था। यहीं पास में ही शिव तीर्थ है जहां भगवान श्रीराम की बहन शान्ता ने श्रृंगी मुनि से विवाह करने के लिए तप किया था। श्रृंगी मुनि द्वारा यज्ञ कराये जाने के बाद ही कौशल नरेश दशरथ के चार पुत्रों- राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ था। श्रीराम के गुरु वशिष्ठ यहां जिस जगह पर रहे थे, उसे वशिष्ठ गुफा कहते हैं। गंगा के उत्तर में स्थित एक पर्वत को राजा दशरथ की तपोस्थली माना जाता है। इसी पहाड़ी से एक धारा बहती है जिसका नाम राजा दशरथ की पुत्री शान्ता के नाम पर शान्ता धारा है|
देवप्रयाग (Devprayag) जिस पहाड़ी पर स्थित है उसे गिद्धांचल कहते हैं।यह जगह जटायु की तपोस्थली रही है। यहीं भगवान श्रीराम ने एक किन्नर को शापमुक्तकिया थाजो ब्रह्मा के श्राप से मकड़ी बन गया था। इसी प्राचीन नगर में ओडिशा (उत्कल) के राजा इन्द्रद्युम ने भगवान विष्णु की आराधना की थी।
देव शर्मा के नाम पर कहा जाता है देवप्रयाग (Devprayag is called after Dev Sharma)
देवप्रयाग में ही अलकनन्दा का भागीरथी में संगम होने के बाद वह गंगा के रूप में ऋषिकेश की और प्रस्थान करती हैं। इसी कारण देवप्रयाग को को पंच प्रयागों में सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। स्कन्द पुराण के केदार उपखण्ड में देवप्रयाग (Devprayag) पर 11 अध्याय हैं। कहते हैं कि पितामह ब्रह्मा ने यहां दस हजार साल तक भगवान विष्णु की आराधना की और उनसे सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था। इस कारण देवप्रयाग (Devprayag) को ब्रह्मतीर्थ और सुदर्शन क्षेत्र भी कहा जाता है। एक मान्यता यह भी है कि ऋषि देव शर्मा ने यहां 11 हजार वर्षों तक तपस्या की थी। उनकी कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उनके वरदान दिया कि इस स्थान की प्रसिद्धी तीनों लोक में विस्तारित होगी और यह स्थान कालान्तर तक तुम्हारे नाम से प्रसिद्ध होगा। साथ ही उन्होंने देव शर्मा को वचन दिया कि वे त्रेता युग में वापस देवप्रयाग आयेंगे। भगवान विष्णु ने राम के रूप मेंअवतार लेकर अपना वचन पूरा किया।
देवप्रयाग में प्राचीन मन्दिरों की भरमार (Devprayag is full of ancient temples)
उत्तराखण्ड की धर्मनगरियों की बात होने पर प्रायः ऋषिकेश और हरिद्वार का ही नाम लिया जाता है लेकिन यहां ऐसे कई स्थान हैं जिनमें देवप्रयाग (Devprayag) भी एक है। इस पावन नगर ने आधुनिकता के इस दौर में भी अपनी पुराने वैभव को नहीं खोया है। यह शहर पहले भी मन्दिरों से भरा हुआ था और आज भी प्राचीन मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है। देवप्रयाग के पूर्व में धनेश्वर मन्दिर, दक्षिण में ताण्डेश्वर मन्दिर, पश्चिम में तांतेश्वर मन्दिर और उत्तर में बालेश्वर मन्दिर है। इसके अलावा यहां वागीश्वर महादेव मन्दिर, जोगबाड़ा या जोगेश्वर महादेव मन्दिर, क्षेत्रपाल मन्दिर, नागराजा मन्दिर, नरसिंह मन्दिर, महिषमर्दिनी मन्दिर, भरत मन्दिर, गंगा मन्दिर आदि भी हैं। यह भी कहा जाता है कि यहां गंगाजल के भीतर भी एक शिवलिंग मौजूद है। इसके अलावा यहां बेताल कुण्ड, ब्रह्म कुण्ड, सूर्य कुण्ड और वाशिष्ठ कुण्ड भी हैं।
शोधार्थियों के लिए नक्षत्र वेधशाला (Nakshatra Observatory for researchers)
यहां पर एक नक्षत्र वेधशाला है जिसकी स्थापना 1946 में स्वर्गीय आचार्य चक्रधर जोशी (खगोल विज्ञान और ज्योतिष के विद्वान) ने की थी। उत्तराखण्ड की यह सबसे प्रचीन वेधशाला दशरथांचल पर्वत पर स्थित है। शोधार्थियों और खगोलशास्त्र के जिज्ञासुओं के लिए यह वेधशाला आचार्य चक्रधर जोशी की एक अनमोल भेंट है। आयार्य ने इस वेधशाला को समृद्ध बनाने के लिए अथक परिश्रम किया ताकि आने वाली पीढ़ियां ग्रह-नक्षत्रों का अध्ययन कर सकें। उन्होंने भारत के कोने-कोने का भ्रमण करके अनेक ग्रन्थ, पाण्डुलिपियां और महत्वपूर्ण पुस्तकें यहां संगृहीत कीं। यहां भोज पत्र और ताड़ पत्र के कई हस्तलिखित ग्रन्थ, दर्शन, संस्कृति औरविज्ञान से सम्बन्धित साहित्य, जर्मन टेलीस्कोप, जलघटी, सूर्यघटी, धूर्वघटी, बैरोमीटर, सोलर सिस्टम, राशि बोध, नक्षत्र मण्डल चार्ट, आदिका दुर्लभ संग्रह है। इस बेशकीमती संग्रह की वजह से यह नक्षत्र वेधशाला आज देसी-विदेशी सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है।
ऐसे पहुंचें देवप्रयाग (How to reach Devprayag)
वायु मार्ग : निकटतम हवाईअड्डा देहरादून का जौली ग्रांट एयरपोर्ट यहां से करीब 86 किलोमीटर पड़ता है।
रेल मार्ग : निकटतम रेल हेड योग नगरी ऋषिकेश रेलवे स्टेशन यहां से करीब 72 किलोमीटर दूर है। हालांकि यहां के लिए बहुत कम ट्रेन हैं। इसलिए देहरादून अथवा हरिद्वार की ट्रेन पकड़ना ही उचित रहेगा। फिलहाल 125 किमी लम्बीऋषिकेश-कर्णप्रयाग परियोजना पर काम चल रहा है। इसके पूरा होने पर देवप्रयाग तक का सफर आसान हो जायेगा।
सड़क मार्ग : देवप्रयाग राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 58 पर स्थित है।दिल्ली के आनन्द विहार अंतरराज्यीय बस टर्मिनल से यह करीब 298 किलोमीटर पड़ता है। देश के किसी भी कोने से यहां जाने के लिए पहले आपको हरिद्वार, देहरादून या ऋषिकेश पहुंचना पड़ेगा। इन तीनों शहरों से देवप्रयाग के लिए नियमित रूप से बसों का संचालन होता है। आप चाहें तो टैक्सी भी कर सकते हैं।