Sun. Feb 23rd, 2025
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चित्तूर शहर व इसके आसपास का क्षेत्र अपनी खूबसूरत पहाड़ियों, घाटियों, जल प्रपातों, वन सम्पदा और जैव विधता, किलों एवं मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है। यहां के प्राकृतिक दृश्य मन को मोहित करने वाले हैं और पर्यटकों को कुछ दिन और रुकने का आमन्त्रण देते प्रतीत होते हैं।

आर पी सिंह

मने अपनी दक्षिण भारत यात्रा की विधिवत शुरुआत तिरुपति के   तिरुमला वेंकटेश्वर (बालाजी) मन्दिर में दर्शन-पूजन के साथ की। इसके बाद हमारी अगली मंजिल था चित्तूर (Chittoor)। तिरुपति से चित्तूर शहर की दूरी करीब 70 किलोमीटर है। तिरुपति में सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी (वेंकटाद्रि) से यहां तक की सड़क पहाड़ों और घाटियों के बीच से गुजरती है। पकाला और पुथालापट्टू होते हुए चित्तूर (Chittoor) शहर पहुंचने में हमारी बस को करीब ढाई घण्टे लगे।

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चित्तूर (Chittoor) शहर आन्ध्र प्रदेश के सबसे दक्षिणी भाग में पोन्नई नदी के तट पर स्थित है। यहां की संस्कृति, परम्पराओं और खानपान पर आन्ध्र प्रदेश के अलावा तमिलनाडु और कर्नाटक का भी खासा प्रभाव है, हालांकि मुख्य भाषा तेलुगु ही है। यह शहर व इसके आसपास का क्षेत्र अपनी खूबसूरत पहाड़ियों, घाटियों, जल प्रपातों, वन सम्पदा और जैव विधता, किलों एवं मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है। यहां के प्राकृतिक दृश्य मन को मोहित करने वाले हैं और पर्यटकों को कुछ दिन और रुकने का आमन्त्रण देते प्रतीत होते हैं।

चित्तूर के आसपास के घूमने योग्य स्थान (Places to visit around Chittoor)

कौण्डिन्य वन्यजीव अभयारण्य :

कौण्डिन्य वन्यजीव अभ्यारण्य
कौण्डिन्य वन्यजीव अभ्यारण्य

ऊंची पहाड़ियों और गहरी घाटियों से युक्त कौण्डिन्य वन्यजीव अभ्यारण्य एक हाथी रिजर्व भी है। यहएशियाई हाथियों की आबादी वाला आन्ध्र प्रदेश का एकमात्र अभयारण्य है। करीब 358 वर्ग किलोमीटर में फैले इस अभयारण्य के शुष्क पर्णपाती जंगलों में बीच-बीच में कांटेदार झाड़ियां हैं। यहां कई छोटे-छोटे तालाब और टैंक हैं तथा पलार नदी अपनी सहायक नदियों कैंडिन्य और कैगल के साथ बहती है। इस अभयारण्य में हाथियों के अलावा एशियाई सुस्त भालू, हिमालयन काले भालू, लकड़बग्घा, दरियाई घोड़ा, तेंदुआ, चीतल, चौसिंघा, सांभर, साही, जंगली सूअर आदि जानवर देखने को मिलते हैं। कल्याण रेवू जलप्रपात और कैगल जलप्रपात इस अभयारण्य की सीमा के अन्दऱ हैं।

टाडा जलप्रपात : चित्तूर से करीब तीन घण्टे ड्राइव की दूरी पर स्थित टाडा जलप्रपात और इसके आसपास की खूबसूरती देखते ही बनती है। यह इस क्षेत्र के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है।

तलाकोना जलप्रपात : येर्रावारिपालेम मण्डल के नेराबैलु गांव में स्थित तलाकोना जलप्रपात की ऊंचाई 270 फुट है। यह एक वन-प्रान्त में स्थित है जहां के रमणीय दृश्य मनको मोह लेते हैं। यहां एक मन्दिर भी है जिसको सिद्धेश्वर स्वामी मन्दिर कहा जाता है।

नागालपुरम जलप्रपात :

नागालपुरम जलप्रपात
नागालपुरम जलप्रपात

यह एक बहुत ही सुन्दर, स्वच्छ और शान्त जलप्रपात है जहां पर्यटक तैराकी का आनन्द ले सकते हैं।

हॉर्सले हिल्स :

हॉर्सले हिल्स
हॉर्सले हिल्स

मदनपल्ली के करीब एक स्थित इस पर्वतीय पर्यटन स्थल का स्थानीय नाम “एनुगु मल्लम्मा कोण्डा” है। यहां की भौगौलिक स्थिति, प्राकृतिक सौन्दर्य और मौसम को देखते हुए इसे “आंध्र ऊटी” भी कहा जाता है। यहां जैव विविधता वाले जंगल, मानव निर्मित पार्क. चिड़ियाघर और कई ट्रैक हैं। यहां आप तैराकी और तीरन्दाजी का आनन्द भी ले सकते हैं। आसपास के लोगों के लिए यह एक पिकनिक स्थल है। यह अब एक हनीमून डेस्टिनेशन के रूप में उभर रहा है।

नागरी हिल्स :

नागरी हिल्स
नागरी हिल्स

हॉर्सले हिल्स की तरह ही खूबसूरत यह पहाड़ी इन्सान की नाक की तरह दिखती है इसलिए इसे “नागरी नाक” भी कहते हैं। यह एक गोलाकार पर्वत श्रृंखला है जो अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के लिए जानी जाती है और चुनौतीपूर्ण ट्रैक्स के लिए प्रसिद्ध है। मुख्य पहाड़ी समुद्र की सतह से 1,050 मीटर ऊंची है। यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त के अत्यन्त सुन्दर दृश्य देखने को मिलते हैं।

मोगिलेश्वर मन्दिर :

मोगिलेश्वर मन्दिर
मोगिलेश्वर मन्दिर

चित्तूर (Chittoor) से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित मोगिली गांव में भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध मन्दिर है जिसे मोगिलेश्वर मन्दिर कहा जाता है। इसकी दीवारों पर सुन्दर मूर्तियां उकेरी गयी हैं। कहा जाता है कि मन्दिर का तालाब भीषण गर्मी में भी नहीं सूखता है। जनवरी के पहले दिन यहां बड़ी संख्या में तीर्थयात्री आते हैं।

विनायक मन्दिर :

श्री वरसिद्धि विनायक स्वामी मन्दिर
श्री वरसिद्धि विनायक स्वामी मन्दिर

कनिपकम में स्थित भगवान गणेश को समर्पित इस मन्दिर को श्री वरसिद्धि विनायक स्वामी मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है। यह चित्तूर (Chittoor) से करीब 11 किलोमीटर पड़ता है। एक लोककथा के अनुसार, तीन भाई थे जो बहरे थे, अपने खेत में पानी उपलब्ध कराने के लिए एक कुआं खोद रहे थे। वे जिस उपकरण से खुदाई कर रहे थे वह कुएं में गिर गया और किसी कठोर वस्तु से टकराया। जब उन्होंने और खोदा तो कुएं से खून बहने लगा और तीनों की विकलांगता दूर हो गयी। इसकी जानकारी मिलने पर स्थानीय लोग तुरन्त उस स्थान पर पहुंचे। खोजबीन करने पर उन्हें भगवान गणेश की एक प्रतिमा मिली। ग्रामीणों ने आगे खुदाई की लेकिन वे देवता के आधार का पता लगाने में असमर्थ रहे। भगवान यहां इसी कुएं में विराजमान हैं जिसमें हमेशा पानी भरा रहता है।

श्रीकालाहस्ती मन्दिर :

श्रीकालाहस्ती मन्दिर
श्रीकालाहस्ती मन्दिर

स्वर्णमुखी नदी के तट पर स्थित श्रीकालाहस्ती मन्दिर दक्षिण भारत का एक महत्वपूर्ण शैव क्षेत्र है। श्रीकालाहस्ती का नाम तीन जानवरों से लिया गया है- श्री (मकड़ी), काला (सांप) और हस्ती (हाथी) जो शिवजी की पूजा करते थे और यहां शरण पाते थे।

श्री वेंकटेश्वर मन्दिर :

श्री वेंकटेश्वर मन्दिर
श्री वेंकटेश्वर मन्दिर

यह आंध्र प्रदेश के सबसे प्राचीन मन्दिरों में से एक है और भगवान बालाजी को समर्पित हैं जिन्हें वेंकटेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। इस मन्दिर का निर्माण कब हुआ इसके मूल तथ्य या दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि इस मन्दिर का उल्लेख नवीं शताब्दी के इतिहास में मिलता है जब कांचीपुरम के पल्लव वंश शासकों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था। 15वीं शताब्दी में इस मन्दिर को प्रसिद्धि मिलना आरम्भ हुई। इसके भवन पर चोल, पंड्या और पल्लव यानी तीन तरह की वास्तुकला की प्रभाव दिखता है जो इसे और भी खास बनाता है।

रामगिरि :

रामगिरि
रामगिरि

इस छोटे-से गांव को भैरव क्षेत्र भी कहा जाता है। यहां कुछ प्राचीन मन्दिर हैं। भगवान शिव को समर्पित एक मन्दिर पहाड़ी के आधार पर जबकि भगवान मुरुगा को समर्पित एक अन्य प्रसिद्ध मन्दिर पहाड़ी की चोटी पर है। कहा जाता है कि इस मन्दिर के पास के तालाब के जल में औषधीय गुण हैं।

कलावगुण्टा : यह शहर चित्तूर (Chittoor) से करीब आठ किलोमीटर दूर एरगोन्डा और पोन्नायी नदियों के संगम पर बसा हुआ है। यहां कई प्राचीन मन्दिर हैं जिनकी स्थापत्य कला पर्यटकों का मन मोह लेती है।

गुर्रमकोण्डा किला :

गुर्रमकोंडा किला
गुर्रमकोंडा किला

विजयनगर साम्राज्य के उत्थान और पतन का गवाह रहा यह किला चित्तूर (Chittoor) शहर से करीब 108 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित है। शुरुआती दौर में इसे मिट्टी और चट्टानों से बनाया गया था। 1714 ईस्वी में इस पर कदप्पा के नवाब अब्दुल नबी खान का कब्जा हो गया। शिलालेखों से पता चलता है कि इस किले की विशाल दीवारों, अन्दर की इमारतों, कार्यालय भवन और रंगीन महल का निर्माण अब्दुल नबी खान ने करवाया था। गुर्रमकोण्डा किला 500 फुट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। मराठों के अलावा सिद्दापाह सुल्तानों का भी इस पर नियन्त्रण रहा। अंग्रेजों के आगे घुटने टेकने से पहले हैदर अली और टीपू सुल्तान ने इस किले पर कब्जा कर लिया था। वर्तमान में यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन एक संरक्षित स्मारक है।

यह किला साल में सभी दिन सुबह आठ से सायंकाल छह बजे तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है। इसका निकटतम रेलवे स्टेशन वायलपाडु है जो यहां से करीब 10 किलोमीटर पड़ता है। मदनपल्ली से यहां के लिए सीधी बस सेवा है।

कब जायें चित्तूर (When to go to Chittoor)

गर्मी के मौसम में चित्तूर का तापमान 46 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इसलिए अप्रैल, मई और जून में यहां का कार्यक्रम ना बनाएं। यहां जाने का सबसे सही समय मध्य सितम्बर से फरवरी तक है। इस दौरान यहां का अधिकतम तापमान आमतौर पर 20 से 25 डिग्रीके आसपास रहता है और प्रकृति खिल उठती है।

ऐसे पहुंचें चित्तूर (How to reach Chittoor)

वायु मार्ग : निकटतम हवाईअड्डा तिरुपति एयरपोर्ट चित्तूर से करीब 84 किलोमीटर दूर है।

रेल मार्ग : चित्तूर (Chittoor) शहर रेल नेटवर्क से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। नयी दिल्ली, हजरत निजामुद्दीन (दिल्ली), मुम्बई, हैदराबाद, तिरुवनन्तपुरम, यशवन्तपुर जंक्शन (बंगलुरु), बंगलुरु कैण्ट, भुवनेश्वर, तिरुपति, श्री माता वैष्णो देवी कटड़ा आदि से यहां के लिए ट्रेन मिलती हैं।

सड़क मार्ग : चित्तूर (Chittoor) राष्ट्रीय राजमार्ग चार पर चेन्नई और बंगलुरु के बीच स्थित है। राष्ट्रीय राजमार्ग 18 भी चित्तूर जिले से होकर गुजरता है। यह शहर बंगलुरु से 182 , चेन्नई से 158 और हैदराबाद से 584 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आन्ध्र प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों से यहां के लिए बस सेवा है।

आन्ध्र प्रदेश के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल (Famous tourist places of Andhra Pradesh)

विशाखापत्तनम, विजयवाड़ा, चित्तूर, तिरुपति, श्रीशैलम, कुरनूल, नेल्लोर, अनन्तपुर, अमरावती, लेपाक्षी, राजमुन्दरी,अन्नावरम, यागन्ती।

पर्वतीय पर्यटन स्थल : अराकू घाटी, हॉर्सले हिल्स, नागरी हिल्स, नल्लामला हिल्स, लम्बासिंगी, अनन्तगिरि पहाड़ियां, स्वामीमलाई हिल्स, पापिकोण्डालु, नागालपुरम, मारेडुमिलि, नागालपुरम।

आन्ध्र प्रदेश के पकवान (Dishes of andhra pradesh)

पुलिहोरा, पुलासा पुलुसु, मेदु वड़ा, पेसराट्टू, गुट्टी वंकया कूरा, पुनुगुलु, दोंडाकाया फ्राई, बबबत्लू (पूरन पोली), उप्पिण्डी, गोंगुरा अचार अम्बाडी, बूरेलू, चेपा पुलुसु, गोंगुरा मटन, आन्ध्रा चिकन बिरयानी, आंध्रा पेपर चिकन, गौंगुरा मामसम।

 

3 thought on “चित्तूर : प्रकृति, अध्यात्म और स्थापत्य का संगम”
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