“नियमों में बदलाव का प्रभाव केवल आगामी भर्तियों पर ही लागू हो सकता है, वर्तमान या चल रही भर्ती में इसका कोई असर नहीं होना चाहिए।”
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सरकारी नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया के बीच में नियम बदलने को अवैध करार दिया है। भारत के मुख्य न्यायधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई में पांच जजों की पीठ ने गुरुवार को निर्णय सुनाया कि नियमों में बदलाव का प्रभाव केवल आगामी भर्तियों पर ही लागू हो सकता है, वर्तमान या चल रही भर्ती में इसका कोई असर नहीं होना चाहिए। संविधान पीठ ने माना कि किसी भी भर्ती प्रक्रिया में उम्मीदवारों की योग्यता या अर्हता को बीच में बदलना न्यायसंगत नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय राजस्थान हाई कोर्ट में 13 अनुवादक पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया के संबंध में जुलाई 2023 में दिए गए फैसले पर रोक लगाने के बाद आया है। कानूनी विवाद यह था कि क्या चयन प्रक्रिया शुरू होने के दौरान या उसके बाद सार्वजनिक पदों पर पर नियुक्तियों के मानदंडों में संशोधन किया जा सकता है जिसे आमतौर पर खेल के नियमों को बीच में बदलना कहा जाता है।
दरअसल, वर्ष 2013 में अनुवादकों के पदों पर भर्ती के दौरान राजस्थान सरकार ने बीच में कुछ नियमों में बदलाव किया था जिसमें यह कहा गया कि केवल वही उम्मीदवार नियुक्ति के लिए योग्य माने जाएंगे जिन्होंने लिखित और मौखिक परीक्षा में 75 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त किए हों। यह निर्णय उन अभ्यर्थियों पर लागू किया गया जिन्होंने पहले ही परीक्षा दे दी थी जिसके कारण भर्ती प्रक्रिया में असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई थी।
यह फैसला सुनाने वाली संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के अलावा न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति पामिदिघंटम श्री नरसिम्हा, न्यायामूर्ति पंकज मित्तल और न्यायामूर्ति मनोज कुमार मिश्र शामिल थे। संविधान पीठ ने अपने फैसले में साफ किया कि भर्ती प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और निष्पक्ष होनी चाहिए, ताकि सभी उम्मीदवारों को समान अवसर मिले। सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा है कि सरकारी नौकरियों में चयन के लिए पात्रता मानदंड या नियमों को भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद तब तक नहीं बदला जा सकता जब तक कि मौजूदा नियमों द्वारा स्पष्ट रूप से अनुमति न दी गई हो।
इस निर्णय से यह भी स्पष्ट हुआ कि सरकारें किसी भी भर्ती प्रक्रिया में केवल उन्हीं नियमों का पालन करें जो प्रक्रिया शुरू होने से पहले लागू थे। शीर्ष अदालत ने कहा कि चयन प्रक्रिया का उद्देश्य यह देखना है कि सबसे उपयुक्त उम्मीदवार चुना जाए और सर्वोत्तम विकल्प के लिए विवेक की डिग्री नियोक्ता पर छोड़ी जानी आवश्यक है। इस प्रकार हमारे विचार में, नियमों के अभाव में नियुक्ति या भर्ती प्राधिकारी लिखित परीक्षा और साक्षात्कार जैसे बेंचमार्क के साथ एक प्रक्रिया प्रक्रिया तैयार कर सकता है।