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apamarg which is also called chirchita in common language.apamarg which is also called chirchita in common language.

अथर्ववेद में अपामार्ग समेत 288 जड़ी-बूटियों का उल्लेख है। ऋग्वेद में 67 और यजुर्वेद में 82 जड़ी-बूटियों का उल्लेख मिलता है।

पंकज गंगवार

ब भी मेरे पास कुछ अतिरिक्त समय होता है तो मैं झाड़ियों के इर्द-गिर्द बैठ जाता हूं। ऊपर दिए गए चित्र में आप जिस झाड़ी को देख रहे है, वह गर्मियों में यहां नहीं थी लेकिन बरसात के साथ-साथ बढ़ती गई और जब सर्दी का मौसम आने पर खत्म होने को होगी,  मेरे लिए छोटे-से दुख का कारण भी बनेगी। प्रकृति का यही नियम है जो जन्म लेता है उसे जाना भी होता है। ऐसी झाड़ियों के आसपास होना मुझे शांति से भर देता है। कहने को तो ये मामूली झाड़ियां ही दिखती हैं पर इनमें एक पौधा औषधीय गुणों से भरा हुआ है और यह मनुष्य के धरती पर आने से पहले से ही यहां मौजूद है। मनुष्य के आने के बाद इस पौधे ने उसका पूरा सहयोग किया है और अपने औषधियों गुणों द्वारा उसे स्वस्थ किया है।

इन झाड़ियों में से जिनको मैं जानता हूं, उन सबके बारे में आपसे बात करूंगा लेकिन मैं आज जिस औषधीय झाड़ी की बात कर रहा हूं उसका नाम है अपामार्ग जिसको आम भाषा में चिरचिटा या लटजीरा भी कहते हैं। यह अक्सर हमारे घरों के आसपास खाली जगह में उग आता है। इसके बीज हमारे कपड़ों में चिपक जाते हैं और उनको निकालना थोड़ा परेशानी का काम है और यह हमें कई बार परेशान भी करता है, लेकिन यह परेशान हमें इसलिए नहीं करता कि हमें कोई कष्ट देना चाहता है बल्कि यह इस माध्यम से अपना विस्तार करना चाहता है। इस माध्यम से इसके बीज दूर तक फैल जाते हैं।

इन दिनों मैं अथर्ववेद की जड़ी-बूटियों पर आधारित पुस्तक भी पढ़ रहा हूं। वेदों में मनुष्य के काम आने वाली जड़ी-बूटियों का भी उल्लेख है। ऋग्वेद में 67 और यजुर्वेद में 82  जड़ी-बूटियों का उल्लेख है। ब्राह्मण ग्रंथों और उपनिषदों में भी यत्र-तत्र जड़ी-बूटियों का उल्लेख मिल जाता है। विशेष रूप से अथर्ववेद चिकित्सा और मनुष्य के लौकिक जीवन मे काम आने वाले ज्ञान को समर्पित है। आयुर्वेद का अगर कोई सबसे प्राचीन ग्रंथ है तो वह अथर्ववेद को ही कहा जायेगा।

अथर्ववेद में 288 जड़ी-बूटियों का उल्लेख है। इनमें से भी अपामार्ग या चिरचिटा का खूब गुणगान है। यदि आप ग्रामीण परिवेश से जुड़े हुए हैं तो जानते ही होंगे कि इसका प्रयोग गांवों में काफी होता है। मेरे दादाजी कुत्ते के काटने पर इसकी जड़ को मट्ठा में पीसकर पिलाते थे। पास के ही एक गांव के एक बुजुर्ग मवेशियों की चिकित्सा में इसका इस्तेमाल करते थे। किसी जानवर के कंधे पर चोट लगने या किसी भी प्रकार की सूजन आने पर वह इसके पत्तों को आटे में मिलाकर खिलाते थे और मवेशी की समस्या दूर हो जाती थी। हालांकि ये लोग कभी भी यह नहीं बताते थे कि उन्होंने क्या खिलाया लेकिन जड़ी-बूटियों के मामले में मैं ठहरा पुराना जासूस। मैं उनका पीछा करके किसी भी तरह से यह पता लगा ही लेता था कि आखिर वे क्या चीज तोड़ कर लाए हैं।

अपामार्ग जिसको आम भाषा में चिरचिटा या लटजीरा कहा जाता है।
अपामार्ग जिसको आम भाषा में चिरचिटा या लटजीरा कहा जाता है।

हमारा बहुत-सा ज्ञान इसी तरह हमारे पूर्वजों के साथ ही चला गया लेकिन जब मैंने अथर्ववेद में अपामार्ग के बारे में पढ़ा तो आश्चर्य से भर गया कि हमारे पूर्वजों को हजारों वर्ष पहले भी इसके औषधीय गुणों की जानकारी थी और उन्होंने इसको ग्रंथों में भी जगह दी।

अपामार्ग ओषधीनां सर्वासामेक इद्वशी।

तेन ते मृज्म आस्थितमथ त्वमगदश्चर॥

– अथर्ववेद ४।१७।८

अर्थात् अपामार्ग औषधि निश्चय ही सब औषधियों को वश में रखने वाली औषधि है। इससे शरीर के सभी रोग दूर होते हैं और मनुष्य इसके सेवन से निरोग होकर विचरता है। यजुर्वेद में इसे पापनाशन, कृत्यानाशन, रोगनाशन एवं कुस्वप्न-नाशन में उपयोगी बताया गया है। यजुर्वेद की विभिन्न संहिताओं में अपामार्ग का चूर्ण बनाकर यज्ञ करने का विधान भी उपलब्ध है। भावप्रकाश निघण्टु एवं द्रव्यगुण विज्ञान के अनुसार इसका बीज उष्ण, तिक्त, कटु, तीक्ष्ण, दीपन, पाचन, पित्तविरेचक, वामक, मूत्रजनन, कफघ्न, विषघ्न, कृमिघ्न, अम्लतानाशक एवं शिरोविरेचन है। इसका उपयोग कफ-वात रोगों, वेदनायुक्त शोथ विकारों, अर्श,

मूत्रेन्द्रिय विकारों, चर्म रोगों, हृदय रोगों, सर्प-विष आदि में करते हैं। आंख की फूली में इसकी जड़ को शहद के साथ पीसकर अंजन की तरह लगाते हैं। अत्रिपुत्र ने अपामार्ग को शिरोविरेचन द्रव्यों में सर्वश्रेष्ठ कहा है। आयुर्वेद के ग्रन्थों में पुत्रोत्पत्ति के लिए ऋतुमती स्त्री को इसके बालों को दूध के साथ पिलाने का निर्देश दिया गया है। अगर किसी को प्रसव न हो रहा हो तो इसकी जड़ को कमर से बांधने से समस्या दूर हो जाती है।

अपामार्ग की पत्तियों को गुड़ में मिलाकर खाने हर प्रकार का ज्वर ठीक हो जाता है। जो लोग दन्त रोग से परेशान रहते हैं, वे अपामार्ग के पौधे को जलाकर उसकी राख बनायें और नियमित रूप से अपने दांतों पर मलें। ऐसा करने से दन्त रोग नष्ट हो जाते है।

((लेखक पोषण विज्ञान के गहन अध्येता होने के साथ ही न्यूट्रीकेयर बायो साइंस प्राइवेट लिमिटेड (न्यूट्री वर्ल्ड) के चेयरमैन भी हैं))

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