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adhai din ka jhopraadhai din ka jhopra

मोहम्मद गोरी ने तराईन के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद उनकी राजधानी तारागढ़ (अजमेर) पर हमला किया। यहां स्थित संस्कृत विद्यालय के उपरी ढांचे को तोड़कर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया। इसे ही अढाई दिन का झोपड़ा कहते हैं।

पंकज गंगवार

तीत में उत्तर पश्चिम दिशा से भारत में अनगिनत आक्रमण हुए। खजाने को लूटने के इरादे से भारत में घुसे आक्रान्ताओं ने नरसंहार कर महलों और मन्दिरों को तो लूटा ही, तमाम धर्मस्थल और शिक्षण संस्थान भी ध्वस्त कर दिए। ऐसे ही स्याह दौर में एक संस्कृत विद्यालय और उसके परिसर में बने मन्दिर के उपरी ढांचे को तोड़कर बनायी गयी थी एक मस्जिद जिसे कहते हैं- अढ़ाई दिन का झोपड़ा (Adhai Din Ka Jhopra)।

अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह से बमुश्किल आधा किलोमीटर दूर स्थित अढ़ाई दिन के झोपड़े को 1192 ईस्वी में अफगान सेनापति मोहम्मद गोरी के आदेश पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था। दरअसल, मोहम्मद गोरी ने तराईन के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद उनकी राजधानी तारागढ़ (अजमेर) पर हमला किया। यहां स्थित संस्कृत विद्यालय के उपरी ढांचे को तोड़कर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया। इसका प्रमाण है अढाई दिन के झोपड़े के मुख्य द्वार के बायीं ओर लगा संगमरमर का एक शिलालेख जिस पर संस्कृत में इस विद्यालय का उल्लेख है। इसकी दीवारों पर हरकेली नाटक (विग्रहराज चतुर्थ द्वारा रचित) के अंश मिलते हैं जो इसके संस्कृत पाठशाला होने के साक्षी हैं। कहा जाता है कि यह परिवर्तन 60 घंटे के अन्दर करवा कर मस्जिद बनवा दी गयी। इसी कारण इसे अढ़ाई दिन का झोपड़ा (Adhai Din Ka Jhopra) कहते हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार यहां चलने वाले ढाई दिन के (पंजाब शाह के) उर्स के कारण इसका यह नाम पड़ा।

अढ़ाई दिन का झोपड़ा
अढ़ाई दिन का झोपड़ा

यहां भारतीय शैली में अलंकृत स्तंभों के ऊपर छत का निर्माण किया गया है। यहां कुल 70 स्तम्भ हैं। असल में ये स्तम्भ उस मन्दिर के हैं जिसे धवस्त कर स्तम्भों को वैसे ही रहने दिया गया। इन स्तम्भों की ऊंचाई करीब 25 फीट है और हर एक पर खूबसूरत नक्काशी है।

अढ़ाई दिन के (Adhai Din Ka Jhopra) झोपड़े का आधे से ज्यादा हिस्सा मन्दिर का होने के कारण यह अन्दर से मस्जिद न लगकर किसी मन्दिर की तरह ही दिखायी देता है। हालांकि जो नयी दीवारें बनवायी गयीं, उन पर कुरान की आयतें जरूर लिखी गयी हैं। मस्जिद के प्रत्येक कोने में चक्राकार एवं बांसुरी के आकार की मीनारें हैं। 90 के दशक में इस मस्जिद के आंगन में देवी-देवताओं की कई प्राचीन मूर्तियां यहां-वहां बिखरी हुई थीं जिन्हें बाद में एक सुरक्षित स्थान पर रखवा दिया गया। इतिहासकार जावेद शाह खजराना के अनुसार, केरल स्थित चेरामन जुमा मस्जिद के बाद अढाई दिन का झोपड़ा भारत में सबसे पुरानी मस्जिद है। अंग्रेज इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने अढ़ाई दिन का झोपड़ा (Adhai Din Ka Jhopra) को देखते ही बता दिया था कि यह हिन्दू शिल्पकला का प्राचीनतम नमूना है।

ऐसे पहुंचें अढाई दिन का झोपड़ा (This is how to reach the Adhai Din Ka Jhopra)

अढ़ाई दिन का झोपड़ा
अढ़ाई दिन का झोपड़ा

वायु मार्ग : निकटतम हवाईअड्डा अजमेर का किशनगढ़ एयरपोर्ट यहां से करीब 26 किलोमीटर दूर है। दिल्ली, मुम्बई, अहमदाबाद और हैदराबाद से यहां के लिए सीधी उड़ानें हैं।

रेल मार्ग : अजमेर जंक्शन यहां से मात्र डेढ़ किलोमीटर पड़ता है। नयी दिल्ली, सराय रोहिल्ला (दिल्ली), बरेली जंक्शन, दादर (मुम्बई), उदयपुर, जयपुर, अहमदाबाद, आगरा कैण्ट, भोपाल जंक्शन आदि से अजमेर के लिए सीधी ट्रेन सेवा है।

सड़क मार्ग : जयपुर से अजमेर करीब 131 किलोमीटर दूर है। उदयपुर यहां से करीब 284 और आगरा 390 किमी है। राजस्थान के सभी प्रमुख शहरों से अजमेर के लिए सरकारी बस सेवा है। टैक्सी भी मिलती हैं।

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