Sat. Mar 15th, 2025
Supreme Court

शीर्ष अदालत ने सरपंच सोनम लकड़ा को हुए मानसिक उत्पीड़न के लिए राज्य सरकार पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जिसका भुगतान चार सप्ताह में किया जाना है।

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नई दिल्लीसुप्रीम कोर्ट ने गांवों में सरपंचों और अधिकारियों के बीच के काम से जुड़े मामलों पर अहम टिप्पणी की है। करीब 2 सप्ताह पहले दिए गए इस फैसले में शीर्ष अदालत ने नौकरशाहों की औपनिवेशिक मानसिकता को चिह्नित किया। अदालत छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के एक गांव की महिला सरपंच सोनम लकड़ा को हटाने के मामले की सुनवाई कर रही थी। उसने एक सुदूरवर्ती गांव की निर्वाचित महिला सरपंच को “अनुचित कारणों” से हटाने पर नाखुशी जताने के साथ ही सवाल किया, “क्या राज्य सरकार चाहती है कि बाबू (नौकरशाह) के सामने सरपंच भीख का कटोरा लेकर जाए?“ इसके साथ ही न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायामूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने सरपंच सोनम लकड़ा को हुए मानसिक उत्पीड़न के लिए राज्य सरकार पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जिसका भुगतान चार सप्ताह में किया जाना है।  बेंच ने कहा कि राज्य सरकार महिला को परेशान करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से यह राशि वसूलने को स्वतंत्र है।

देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि अधिकारी आदतन जमीनी स्तर के लोकतांत्रिक संस्थानों में निर्वाचित प्रतिनिधियों, विशेषकर महिलाओं पर हुक्म चलाने का प्रयास करते हैं। पीठ ने चिंता के साथ कहा कि यह पंचायतों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के साथ किए जाने वाले व्यवहार का एक बार-बार दोहराया जाने वाला पैटर्न है। इसमें प्रशासनिक अधिकारी महिला सरपंचों के खिलाफ प्रतिशोध लेने के लिए पंचायत सदस्यों के साथ मिलीभगत करते हैं। अधिकारियों को इसके बजाय शासन में महिलाओं की भागीदारी और नेतृत्व को प्रोत्साहित करना चाहिए।

महिला सरपंच सोनम लकड़ा के खिलाफ भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के दौरान मामूली आधार पर कार्रवाई शुरू की गई थी। वहीं, विष्णु देव साय के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने उनका बचाव किया था।

महिला सरपंच के काम की तारीफ

बेंच ने 27 वर्षीय सोनम लकड़ा द्वारा किए गए विकास कार्यों की प्रशंसा की। बेंच ने कहा कि जनपद पंचायत के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने ऐसी परियोजनाओं के लिए आवश्यक समय के बारे में तकनीकी विशेषज्ञता की कमी के बावजूद 16 दिसंबर 2022 को एक कार्य आदेश जारी किया। इसमें तीन महीने के भीतर विकास कार्य पूरा करने का आदेश दिया गया। यह आदेश लकड़ा को 21 मार्च, 2023 को दिया गया, विडंबना यह है कि तीन महीने की अवधि का आखिरी दिन था। काम के निष्पादन में देरी के लिए सोनम को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया।

नौकरशाही की मनमानी के कारण हटाया

पीठ ने कहा कि महिला सरपंच के स्पष्टीकरण के बावजूद नौकरशाही की मनमानी के कारण उन्हें 18 जनवरी 2024 को पद से हटा दिया गया। हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने महिला सरपंच के खिलाफ आरोपों को बेबुनियाद और उनके पद से हटाए जाने को जल्दबाजी वाला कदम बताया। अदालत ने कहा कि अपनी औपनिवेशिक मानसिकता के साथ प्रशासनिक अधिकारी एक बार फिर निर्वाचित जनप्रतिनिधि और चयनित लोक सेवक के बीच मूलभूत अंतर को पहचानने में विफल रहे हैं।

अपने आदेश का पालन करने पर करते हैं मजबूर

पीठ ने कहा कि अक्सर, सोनम लाकड़ा जैसे निर्वाचित प्रतिनिधियों को नौकरशाहों के अधीनस्थ माना जाता है। उन्हें ऐसे निर्देशों का पालन करने के लिए मजबूर किया जाता है जो उनकी स्वायत्तता का अतिक्रमण करते हैं। साथ ही उनकी जवाबदेही को प्रभावित करते हैं। यह गलत और स्वयंभू पर्यवेक्षी शक्ति निर्वाचित प्रतिनिधियों को नागरिक पदों पर आसीन लोक सेवकों के बराबर मानने के इरादे से लागू की जाती है, जो चुनाव द्वारा प्रदत्त लोकतांत्रिक वैधता की पूरी तरह से अवहेलना करता है।

महिलाओं की पहल का समर्थन करना चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब देश आर्थिक महाशक्ति बनने की कोशिश कर रहा था, तब ऐसी घटनाएं नियमित रूप से हो रही थीं और इन्हें सामान्य माना जा रहा था। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रशासनिक अधिकारियों को उदाहरण पेश करना चाहिए, महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने और ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में महिलाओं के नेतृत्व वाली पहलों का समर्थन करने के प्रयास करने चाहिए। निर्वाचित पदों पर महिलाओं को हतोत्साहित करने वाले प्रतिगामी रवैये को अपनाने के बजाय, उन्हें ऐसा माहौल बनाना चाहिए जो शासन में उनकी भागीदारी और नेतृत्व को प्रोत्साहित करे।

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