Fri. Mar 21st, 2025
If there is money then there is honey.If there is money then there is honey.

ब्रिटिश अर्थशास्त्री डेविड रिकार्डो कहते हैं कि किसी भी देश को उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करना चाहिए जिसमें उसके श्रमिक अत्यधिक कुशल हैं और उन उत्पादों को अन्य देशों को निर्यात करना चाहिए।

पंकज गंगवार

मैं एक सेमिनार में शामिल होने के लिए महाराष्ट्र गया था। यह जगह शिर्डी के पास थी इसलिए मैंने शिर्डी हवाईअड्डे को चुना। शिर्डी के लिए मुझे आराम से दिल्ली से डायरेक्ट फ्लाइट मिल गई। जाते समय शिर्डी शहर घूमा और साईं बाबा के मंदिर भी गया। इसी दौरान मुझे एक विचार आया कि भारत को इस तरह के बहुत सारे आध्यात्मिक प्रोडक्ट्स की जरूरत है क्योंकि अगर शिर्डी में साईं बाबा का मंदिर न होता तो शायद शिर्डी में एयरपोर्ट भी ना होता और शिर्डी शहर व आसपास इतना विकास भी न हुआ होता।

हर देश की एक विशेषता होती है, एक स्पेशलिटी होती है। जैसे चीन निर्माण में कुशल है जबकि जापान, कोरिया और अमेरिका तकनीक में आगे हैं। कोई देश हथियार बनाने में कुशल है तो कोई देश किसी अन्य तरह के उत्पाद तैयार करने में कुशल है। ब्रिटिश अर्थशास्त्री डेविड रिकार्डो कहते हैं कि किसी भी देश को उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करना चाहिए जिसमें उसके श्रमिक अत्यधिक कुशल हैं और उन उत्पादों को अन्य देशों को निर्यात करना चाहिए।

भारत अध्यात्म पैदा करने में एक्सपर्ट है। क्योंकि मैं एक बिजनेसमैन हूं और सभी चीज मुझे बिजनेस की तरह ही दिखाई देती हैं, इसलिए मुझे सभी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे तथा बाबा, फकीर, औलिया आदि के आश्रम भी एक प्रोडक्ट की तरह ही दिखाई देते हैं। ऐसे प्रोडक्ट जिनका करोड़ों हजार रुपये का टर्नओवर है और इन मुख्य प्रोडक्ट के इर्द-गिर्द लाखों करोड़ों रुपयों की अन्य इंडस्ट्रीज भी खड़ी हो गई हैं जिनका अस्तित्व मुख्य प्रोडक्ट की वजह से ही है।

हमारे पूर्वजों ने उत्तराखंड के दुर्गम स्थानों पर इस तरह के कई प्रोडक्ट्स बनाएं जिनकी वजह से आज भी उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था चल रही है। हम लोग पर्यटन प्रेमी नहीं बल्कि तीर्थयात्रा प्रेमी हैं। लेकिन, मेरा मानना है की अभी भी हमें बहुत सारे तीर्थस्थानों (आध्यात्मिक उत्पादों) की जरूरत है। मुझे लगता है कि आध्यात्मिक गुरुओं को अपना कार्यक्षेत्र अत्यंत पिछड़े हुए इलाकों में ही बनना चाहिए जिससे वहां की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा और उन्हें अपने उत्पादों की मार्केटिंग में भी ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़गी।

शिर्डी
शिर्डी

मुझे इस समय के आध्यात्मिक उत्पादों (spiritual products) में बागेश्वर बाबा में बहुत दम नजर आ रहा है। आने वाले समय में उनके आश्रम में बहुत भीड़ होने वाली है। उनके शहर के आसपास आर्थिक गतिविधियां भी खूब बढ़ेंगी तो ऐसे में कोई चाहे तो उनके शहर में होटल, रेस्टोरेंट, ट्रैवल एजेंसी आदि शुरू कर सकता है।

फैक्ट्रियों में वस्तुओं का उत्पादन होता है। हमने अपने उपयोग की वस्तुएं जरूरत से ज्यादा बना ली हैं। एक साबुन की जगह हमने कई प्रकार के साबुन, अलग-अलग अंगों के लिए अलग-अलग साबुन बना लिये हैं। इसलिए भौतिक उत्पादों में संभावना कम बची है और कंपटीशन भी ज्यादा है। ऊपर से इनकम टैक्स और जीएसटी जीने नहीं देते। भौतिक उत्पाद जैसे आई फोन का नया वर्जन न ले पाने की स्थिति में हमें मानसिक अशांति होती है और इस मानसिक अशांति को दूर करने के लिए आध्यात्मिक उत्पादों की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए ज्यों-ज्यों भौतिक उत्पाद बढ़ेंगे, उसी अनुपात में हमें आध्यात्मिक उत्पादों को भी बढ़ाने की जरूरत है। मैं देख रहा हूं सभी आध्यात्मिक स्थानों पर भीड़ बढ़ती जा रही है। इसका मतलब यह है कि डिमांड ज्यादा है और सप्लाई कम, यानी इस मार्केट में बहुत संभावना है। इन आध्यात्मिक उत्पादों में ऑपरेटिंग एक्सपेंसेस बहुत कम होते हैं और अच्छा मार्जिन होता है। इसलिए ये लोग सीएसआर पर भी खूब खर्च करते हैं। अस्पताल, धर्मशाला के अलावा और भी तमाम तरह के सामाजिक कार्य अपने लाभ के एक हिस्से से करते हैं जिससे इनका बिजनेस और बढ़ता है।

 डिस्क्लेमर : यह पोस्ट किसी की आस्था पर प्रहार के लिए या उसका मजाक उड़ाने के लिए नहीं है। लेखक द्वारा एयरपोर्ट पर फ्लाइट का इंतजार करते समय में किया गया निठल्ला चिंतन भर है।

 ((लेखक पोषण विज्ञान के गहन अध्येता होने के साथ ही न्यूट्रीकेयर बायो साइंस प्राइवेट लिमिटेड (न्यूट्री वर्ल्ड) के चेयरमैन भी हैं।))

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *