विभिन्न सर्वेक्षणों में पाया गया है की भारत में 70% लोगों में सूक्ष्म पोषक तत्वों (micronutrients) की कमी है। हमारे देश की अधिकतर स्वास्थ्य समस्याओं के मूल में पोषक तत्वों की कमी ही है।
पंकज गंगवार
सामान्यतः जब कुपोषण (malnutrition) की बात आती है तब हम इसे बीमारियों और स्वास्थ्य से जोड़कर ही देखते हैं। लेकिन, कुपोषण के अन्य दुष्प्रभाव भी हैं जिनसे आम आदमी अनजान है। शायद आपको मेरी इस बात पर आश्चर्य हो कि कुपोषण हमारी अर्थव्यवस्था को पीछे धकेल रहा है। आइये समझते हैं कि ऐसा कैसे हो रहा है।
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का अनुमान हम जीडीपी यानी कि सकल घरेलू उत्पाद (gross domestic product) के आकलन के आधार पर करते हैं। जितना अधिक सकल घरेलू उत्पाद होगा उतनी ही बड़ी अर्थव्यवस्था होगी। किसी भी देश की फैक्ट्रियां जो उत्पादन करती हैं वह तो जीडीपी के अंतर्गत आता ही है लेकिन छोटी-छोटी आर्थिक गतिविधियां और सेवाएं भी जीडीपी का ही हिस्सा होती हैं। आपके घर की कामवाली, माली, प्रेस वाला, परचून दुकानदार, फल-सब्जी बेचने वाले भी जीडीपी में अपना योगदान दे रहें हैं। विश्व में जनसंख्या में हम अब पहले नंबर पर हैं और जीडीपी के मामले में यूनाइटेड किंगडम (यूके) को पछाड़कर विश्व में पांचवें स्थान पर पहुंच चुके हैं।
अगर हम जीडीपी को देश की जनसंख्या से भाग कर दें तो पता चल जाएगा कि एक व्यक्ति का जीडीपी में औसत योगदान क्या है। प्रत्येक नागरिक का हमारी जीडीपी में कितना योगदान है, इस आधार पर विश्व में हमारी रैंक 126 वीं है जो बहुत ही कम है। इसका अर्थ यह निकलता है कि हमारे यहां के व्यक्ति कम उत्पादक हैं। इस आधार पर कतर, सिंगापुर, ब्रूनेई, नार्वे, आयरलैंड जैसे देश अग्रणी हैं, अर्थात उनके प्रत्येक व्यक्ति का अर्थव्यवस्था में योगदान अन्य देशों के मुकाबले कहीं अधिक है, इसलिए वे इस सूची में आगे हैं।
किसी भी देश के शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ एवं सक्षम नागरिक ही वहां की आर्थिक गतिविधियों को संचालित कर पाते हैं। आज की अर्थव्यवस्था शारीरिक श्रम पर आधारित नहीं रह गई है, आज अर्थव्यवस्था के मामले में वे देश ही आगे हैं जिनके नागरिक अधिक इनोवेटिव और उत्पादक हैं। जिस देश में लोग नई-नई तकनीकों पर अनुसंधान और निर्माण कर रहे हैं, वही देश उन्नति कर रहे हैं।
मां के गर्भ से ही असर डालने लगता है कुपोषण
आइये देखते हैं कि कुपोषण (malnutrition) कैसे मां के गर्भ से ही हमारे स्वास्थ्य पर असर डालने लगता है। यदि गर्भवती मां में आयरन और फोलिक एसिड की कमी होगी तो बच्चे के मस्तिष्क का विकास ठीक से नहीं होगा। वह मानसिक रूप से मंदित रहेगा ही। ऐसे बच्चे के यदि जन्म के बाद पर्याप्त पोषण मिले तब भी उसका शारीरिक और मानसिक विकास ठीक से नहीं होगा। वह वयस्क होने पर भी बाकी बच्चों से पीछे ही रहेगा। अब आप समझ सकते हैं की ऐसा वयस्क सिर्फ निचले स्तर की आर्थिक गतिविधियां ही कर सकेगा जिसके चलते वह जीडीपी में कोई विशेष योगदान नही दे पायेगा।
अब चलिए उदाहरण लेते हैं एक व्यस्क व्यक्ति का। यह व्यक्ति पढ़ा-लिखा है और एक अच्छी नौकरी में है पर छिपे हुए कुपोषण का शिकार हो गया है। अब वह बीमार रहने लगा है और अक्सर काम से छुट्टी लेनी पड़ रही है। वह डॉक्टरों के चक्कर लगाते-लगाते परेशान हो चुका है। वह अपने परिवार का भी ध्यान नहीं रख पा रहा है। उसकी नियोक्ता कंपनी भी परेशान हो चुकी है इसलिए उसे वीआरएस पर भेजने का फैसला लिया जा चुका है जबकि वह अपने क्षेत्र का विशेषज्ञ है। लेकिन, अब उसकी सेवाएं कोई नहीं ले पा रहा है। इससे उसके नियोक्ता को भी नुकसान हुआ और उस देश को भी जहां वह काम कर रहा था।
ज्यादातर भारतीय सूक्ष्म पोषक तत्वों के मामले में दरिद्र
विभिन्न सर्वेक्षणों में पाया गया है की भारत में 70% लोगों में सूक्ष्म पोषक तत्वों (micronutrients) की कमी है। हमारे देश की अधिकतर स्वास्थ्य समस्याओं के मूल में पोषक तत्वों की कमी ही है।
एक संस्था ने अनुमान लगाया है की भारत के लोगों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के कारण अर्थव्यवस्था को प्रतिवर्ष 2.5 प्रतिशत का तात्कालिक नुकसान हो रहा है जो की लगभग चार लाख करोड़ के आसपास बैठता है। जाहिर है कि लम्बे समय का नुकसान इससे कहीं ज्यादा होगा जिसका आकलन करना आसान नहीं है।
भारत के लोगों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को मद्देनजर रखते हुए ही हमने सूक्ष्म पोषक तत्वों (micronutrients) पर काम करना शुरू किया। परिणाम उत्साहवर्धक रहे हैं। हमसे जुड़े और हमारे उत्पादों का इस्तेमाल करने वाले लोगों का स्वास्थ्य अन्य लोगों की तुलना में बेहतर है। इससे उनकी उत्पादकता बढ़ रही है तथा धन एवं अमूल्य समय बर्बाद होने से बच रहे हैं।
((लेखक पोषण विज्ञान के गहन अध्येता होने के साथ ही न्यूट्रीकेयर बायो साइंस प्राइवेट लिमिटेड (न्यूट्रीवर्ल्ड) के चेयरमैन भी हैं।))