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Mahabaleshwar : महाराष्ट्र के सतारा जिले में सतारा नगर के पश्चिमोत्तर में सह्याद्रि पहाड़ियों पर समुद्र की सतह से 1,438 मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित महाबलेश्वर (Mahabaleshwar) करीब 150 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। महाबलेश्वर नाम संस्कृत से लिया गया है जिसका अर्थ होता है “ईश्वर की महान शक्ति”।

न्यूज हवेली नेटवर्क

Mahabaleshwar : हाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे में तीन दिन कब निकल गये, पता ही नहीं चला। हमारा अगला गन्तव्य था मन्दिरों और किलों का शहर कहलाने वाला हिल स्टेशन महाबलेश्वर (Mahabaleshwar)। होटल से चेकआउट कर टैक्सी से आगे के सफर पर निकले तो सवेरे के दस बज रहे थे। पुणे से महाबलेश्वर का सफर टैक्सी से करीब तीन घण्टे का है लेकिन रास्ते में खण्डेवाड़ा, शिवापुर और नसरापुर में थोड़ी-थोड़ी देऱ रुकते हुए वाई पहुंचने में ही तीन घण्टे लग गये।

कृष्णा नदी के किनारे बसे वाई को “दक्षिण काशी” भी कहते हैं। सहयाद्रि की पहाड़ियों पर बसे इसे छोटे-से शहर को यह नाम सम्भवतः यहां के सौ से अधिक मन्दिरों के कारण मिला है। तीन वर्ष पहले सतारा की यात्रा के दौरान हमें वाई आने का अवसर मिला था। इस कारण अबकी यहां रुक कर घूमने-फिरने का कोई इराद नहीं था। इसलिए दोपहर के भोजन में महाराष्ट्रियन थाली का आनन्द लेने के बाद हम महाबलेश्वर के लिए रवाना हो गये।

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महाराष्ट्र के सतारा जिले में सतारा नगर के पश्चिमोत्तर में सह्याद्रि पहाड़ियों पर समुद्र की सतह से 1,438 मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित महाबलेश्वर (Mahabaleshwar) करीब 150 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। महाबलेश्वर नाम संस्कृत से लिया गया है जिसका अर्थ होता है “ईश्वर की महान शक्ति”। महाबलेश्वर (Mahabaleshwar) को पांच नदियों की धरती भी कहा जाता है। कृष्णा नदी का उद्गम स्थल महाबलेश्वर के पास ही है। इसके अलावा यहां वीणा, गायत्री, सावित्री और कोयना नदियां भी बहती हैं। यह एक हिन्दू तीर्थस्थल होने के साथ ही रमणीय पर्वतीय पर्यटन स्थल भी है। ऊंची-ऊंची पहाड़ियां,  हरेभरे जंगल, मनोरम घाटियां, मन्द-मन्द बहने वाली हल्की सर्द हवा, मनभवान मौसम और स्ट्रॉबेरी के बागान माबलेश्वर की विशेषता हैं। ब्रिटिश राज के दौरान यह बॉम्‍बे प्रेसीडेंसी की ग्रीष्‍मकालीन राजधानी हुआ करता था। यह महाराष्‍ट्र का सर्वाधिक लोकप्रिय पर्वतीय पर्यटन स्थल है। (Mahabaleshwar: Land of five rivers in Maharashtra)

महाबलेश्वर का इतिहास (History of Mahabaleshwar)

वर्ष 1251 में देवगिरी ने राजे सिंघण को पुराना महाबलेश्वर (Mahabaleshwar)उपहार में दिया था। राजे सिंघण ने यहां कृष्णा नदी के किनारे जलप्रपात के पास एक मन्दिर और जलाशय बनवाया। 16वीं सदी में चन्द्रराव मोरे ने जावली और महाबलेशवर पर अधिकार कर लिया। 17वीं सदी में छत्रपित शिवाजी महाराज ने जावली और महाबलेश्वर को अपने नियंत्रण में ले लिया।

बाद के दिनों में महाबलेश्वर अंग्रेजों के कब्जे में चला गया। उन्होंने सतारा समेत आसपास के स्थानों का पुनर्गठन किया और 1828 में इसे हिल स्टेशन के रूप में विकसित करना शुरू किया। 1929-30 तक इसे काफी पहचान मिल चुकी है और यह महाबलेश्वर (Mahabaleshwar) कहलाने लगा था। इसको पहले इसको मैलकम पेठ के नाम से जाना जाता था।

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महाबलेश्वर के प्रमुख दर्शनीय स्थल (Major tourist places of Mahabaleshwar)

महाबलेश्वर मन्दिर :

महाबलेश्वर मन्दिर
महाबलेश्वर मन्दिर

महाबलेश्वर शहर से करीब छह किलोमीटर दूर स्थित इस मन्दिर को महाबली के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव को समर्पित इस मन्दिर का निर्माण चन्दा राव मोरे वंश के शासकों द्वारा कराया गया था। इसे दक्षिण भारत की हेमदन्त स्थापत्य शैली में बनाया गया है। मन्दिर के भीतरी भाग में स्थित गर्भगृह में भगवान शिव की मूर्ति है। इस मन्दिर का सबसे बड़ा आकर्षण शिवलिंगम है जो छह फीट ऊंचा है। इस मन्दिर का अत्यधिक धार्मिक महत्व है क्योंकि यह दुनिया का एकमात्र मन्दिर है जिसमें रुद्राक्ष के रूप में लिंग विराजित है। परिसर में स्थित एक चौकोर चबूतरा मुख्य पर्यटक आकर्षण है। यह वह स्थान है जहां छत्रपति शिवाजी महाराज ने जरूरतमन्दों को सोना दान करने के लिए तुलादान किया था।

पंचगंगा मन्दिर :

पंचगंगा मन्दिर
पंचगंगा मन्दिर

भगवान कृष्ण को समर्पित इस मन्दिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में देवगिरि के यादव शासक राजा सिंहनदेव ने कराया था। 16वीं और 17वीं शताब्दी में जाओली के राजा चन्दराव मोरे और मराठा शासक शिवाजी ने इसकी संरचना में बड़े पैमाने पर सुधार किया। यह मन्दिर ठीक उसी बिन्दु पर स्थित है जहां पांच नदियां- कृष्णा, सावित्री, कोयना, वीणा और गायत्री अपना जल मिलाती हैं। यहां एक गोमुखी से पवित्र जल अनवरत बहता रहता है।

कृष्णबाई मन्दिर : वर्ष 1888 में निर्मित कृष्णाबाई मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है और इसमें भगवान कृष्ण की भी एक भव्य मूर्ति है। यहां आपको पत्थर की नक्काशीदार छत और स्तम्भों के साथ शिवलिंग भी मिलेगा जो इसकी समग्र वास्तुकला को अद्वितीय और अलग बनाता है। यह मन्दिर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है जहां से कृष्णा घाटी के लुभावने दृश्य देखने को मिलते हैं।

भूषण महामुनि : महाबलेश्वर के उत्तरी भाग में स्थित भूषण महामुनि धार्मिक स्थल को श्रीक्षेत्र महाबलेश्वर भी कहा जाता है  जिसका अर्थ है “पवित्र स्थान का मन्दिर”। भगवान शिव को समर्पित इस मन्दिर में स्वयंभू शिवलिंग है। यह धर्मस्थाल सप्ताह के प्रत्येक दिन सुबह 6:00 बजे से रात 10:00 बजे तक खुला रहता है।

शंकर मन्दिर : इस मन्दिर को ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर देवताओं के त्रिकोण के रूप में भी जाना जाता है। इन तीनों देवताओं को शिवलिंग में उकेरा और अवतरित किया गया है। शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग में पंचगंगा नदियों की नक्काशी है। कई लोग इस जगह को प्रसिद्ध शासक शिवाजी से जोड़ते हैं और माना जाता था कि वे अपनी मां जीजाबाई के साथ यहां आए थे।

एलीफेन्ट हेड पॉइन्ट :

एलीफेंट हेड पॉइंट
एलीफेंट हेड पॉइंट

यह महाबलेश्वर के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। यहां एक विशाल चट्टान है जिसकी संरचना हाथी की सिर की तरह दिखती है। मानसून के समय में यह जगह बहुत ही मनोरम हो जाती है और यहां की खूबसूरत हरीभरी वादियां पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। महाबलेश्वर बस स्टेशन से करीब सात किलोमीटर दूर स्थित इस पहाड़ी को “नीडल्स पॉइन्ट” भी कहते हैं।

आर्थर सीट :

आर्थर सीट
आर्थर सीट

महाबलेश्वर से 13 किलोमीटर की दूर स्थित है इस स्थान को “बिन्दुओं की रानी” भी कहा जाता है। किंवदन्ती और लोककथा के अनुसार अपनी पत्नी और बेटे को सावित्री नदी में हुई नौका दुर्घटना में खो देने के बाद आर्थर माल्ट यहीं पर बैठकर नदी को देखा करता था। इस वजह से इस स्थान का नाम आर्थर सीट पड़ गया। यहां से सावित्री नदी, सहयाद्रि की पहाड़ियों और हरे-भरे जंगलों का दृश्य बहुत ही रमणीय होता है। कुछ लोगों द्वार इस स्थान पर आत्महत्या कर लेने की वजह से इसे “सुसाइड पॉइन्ट” भी कहा जाता है।

वेन्ना झील :

वेन्ना झील
वेन्ना झील

महाबलेश्वर में सैलानियों के आकर्षण का एक प्रमुख केन्द्र वेन्ना झील अत्यन्त सुन्दर है। 1942 ईस्वी में सतारा के शासक महाराजा अप्पासाहेब द्वारा इसका निर्माण महाबलेश्वर नगर में पेयजल की आपूर्ति के लिए कराया गया था। लगभग 28 एकड़ में फैली इस झील में सैलानी नाव की सवारी का आनन्द ले सकते हैं।

तपोला :

तपोला
तपोला

सुन्दर घाटियों के बीच स्थित छोटा-सा गांव तपोला अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुन्दरता के लिए जाना जाता है। यहां से जंगलों और किलों के खूबसूरत नजारे आनन्दित कर देते है। यहां आप जंगल ट्रैकिंग के अलावा वासोटा किले की ट्रैकिंग भी कर सकते हैं।

वसोटा किला : यह किला महाबलेश्वर से लगभग 46 किलोमीटर दूर बामनोली गांव के पास शिवसागर झील के किनारे स्थित है। किले के पास ही नागेश्वर नामक एक गुफा मन्दिर है। यह किला और इसके आसपास की पहाड़ियों ट्रैकिंग के लिए आदर्श स्थान है। घने जंगलों के बीच स्थित यह किला अब खण्डहर हो चुका है, इस कारण यहां रात को रुकने की अनुमति नहीं है। इस किले को व्यघ्रगढ़ भी कहा जाता है।

प्रतापगढ़ किला :

प्रतापगढ़ किला
प्रतापगढ़ किला

महाबलेश्वर शहर से करीब 21 किलोमीटर दूर स्थित इस किले को छात्रपति शिवाजी ने बनवाया था। 1656 में इसका निर्माण कार्य पूरा हुआ था। उसी वर्ष 10 नवम्बर को शिवाजी और अफजल खान के बीच युद्ध हुआ जिसमें शिवाजी को विजय प्राप्त हुई। इस जीत के बाद मराठा साम्राज्य का बहुत अधिक विस्तार हुआ था। समुद्र की सतह से एक हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस किले के दो भाग हैं- निचला किला और ऊपरी किला। ऊपरी किले में शिवजी का मन्दिर और कई भवन हैं। निचले किले में भवानी मन्दिर है। कहा जाता है कि शिवाजी यहीं पर मां भवानी की आराधना किया करते थे। किला परिसर में चार झीलें भी हैं जो इस किले की सुन्दरता को और बढ़ाती हैं। यहां पर हस्तशिल्प केन्द्र और पुस्तकालय भी है। किला परिसर में छत्रपति शिवाजी की 17 फीट ऊंची कांस्य प्रतिमा है जिसे 1957 में स्थापित किया गया था।

लॉडविक पॉइन्ट :

लॉडविक पॉइन्ट
लॉडविक पॉइन्ट

महाबलेश्वर से पांच किलोमीटर किलोमीटर दूर स्थित इस स्थान से एलीफेन्ट हेड पॉइन्ट और प्रतापगढ़ किले का शानदार नजारा दिखाई देता है। इस स्थान का नाम पहले “सिडनी पॉइन्ट” था। ब्रिटिश सेना के जनरल लॉडविक ने 1824 में इस चोटी पर सबसे पहले चढ़ाई की। लॉडविक के पुत्र ने उनके सम्मान में यहां पर संगमरमर का 25 फीट ऊंचा स्तम्भ बनवाया जिसके निचले हिस्से पर लॉडविक की आकृति बनाई गई है। इस बिन्दु तक पहुंचने के कारण लॉडविक के सम्मान में इस स्थान का नाम “लॉडविक पॉइन्ट” कर दिया गया। इस स्थान से बहुत ही मनमोहक दृश्य दिखाई देता है। यह महाबलेश्वर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है।

लिंगमाला जलप्रपात :

लिंगमाला जलप्रपात
लिंगमाला जलप्रपात

महाबलेश्वर की हरीभरी पृष्ठभूमि में लिंगमाला जलप्रपात किसी नाचती हुई परी की तरह प्रतीत होता है। महाराष्ट्र के छह सबसे सुन्दर जलप्रपातों में से एक इस प्रपात में जलधारा 600 फीट की ऊंचाई से नीचे चट्टानों पर गिरती है।

विल्सन पॉइन्ट :

विल्सन पॉइन्ट
विल्सन पॉइन्ट

महाबलेश्वर से लगभग 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित विल्सन पॉइन्ट इस क्षेत्र का सबसे ऊंचा स्थान है जो समुद्र की सतह से 1,439 मीटर ऊंचा है। इसे आमतौर पर “सनराइज़ पॉइन्ट” के रूप में जाना जाता है। इसका यह नाम सर लेस्ली विल्सन के नाम पर रखा गया। यहां तीन वॉचटॉवर बनाए गये है जहां से घाटी और पहाड़ियों के आश्चर्यजनक मनोरम दृश्य दिखायी देते हैं। यहां से सूर्योदय की अलोकिक छटा देखते ही बनती है और सूर्यास्त का नजारा है बेहद सुन्दर होता है।

पंचगनी :

पंचगनी
पंचगनी

पांच तरफ से पहाड़ियों से घिरा यह हिल स्टेशन महबलेश्वर से करीब 20 किलोमीटर दूर है। महाबलेश्वर गर्मी के मौसम में ब्रिटिश अधिकारियों की पसन्दीदा जगह थी लेकिन मानसून के दौरान यह निर्जन हो जाने की वजह से रहने के लायक नहीं रह जाता था। इसके विपरीत पंचगनी का मौसम पूरे साल खुशनुमा रहता था, इसलिए अंग्रेजों ने इसे आपने आरामगृह या रिजॉर्ट के तौर पर विकसित किया। जॉन चेस्सन को एक उपयुक्त जगह खोजने के लिए प्रतिनियुक्त किया गया था। उन्होंने रुस्तमजी दुबाश की सहायता से इस क्षेत्र में पहाड़ियों का सर्वेक्षण किया और पांच अलग-अलग पहाड़ियों पर बसे पांच गांव चुने। इस क्षेत्र की झीलों जलप्रपातों, पहाड़ों, जंगलों और घाटियों की सुन्दरता पर्यटकों को मुग्ध कर देती है। पंचगनी जाने पर टेबल लैण्ड, देवराई, पारसी पॉइन्ट, कैट्स पॉइन्ट और वाई घूमना तथा राजपुरी गुफाएं देखना ना भूलें। पंचगनी जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से अप्रैल के बीच का होता है। इस दौरान पूरे दिन मौसम बहुत अच्छा रहता है। जुलाई से सितम्बर के बीच यहां हल्की से भारी वर्षा होती है। इस दौरान यह जगह पूरी तरह से हरियाली से भर जाती है, हवा में नमी रहती है और रातें सर्द होती हैं।

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कब जायें महाबलेश्वर (When to go to Mahabaleshwar)

सहयाद्रि की पहाड़ियों पर बसे महाबलेश्वर में पूरे साल बहुत ही सुहावना मौसम बना रहता है लेकिन अक्टूबर से लेकर जून तक का समय सबसे अच्छा होता है। जुलाई से सितम्बर के बीच यहां भारी वर्षा होती है। हालांकि इस समय यहां की पहाड़ियां बेहद खूबसूरत दिखाई पड़ती हैं पर फिसलन, भूस्खलन और सड़क ब्लॉक होने की खतरा बना रहता है। बरसात के मौसम में यहां के होटलों में ज्यादातर कमरे खाली होते हैं, इसलिए आप किराया कम करने के लिए सौदेबाजी कर सकते हैं।

ऐसे पहुंचें महाबलेश्वर

वायु मार्ग : पुणे इण्टरनेशनल एयरपोर्ट महाबलेश्वर का सबसे नजदीकी हवाईअड्डा है जो यहां से करीब 130 किलोमीटर पड़ता है। दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बंगलुरु, जयपुर समेत देश के लगभग सभी प्रमुख शहरो से यहां के लिए सीधी अथवा कनेक्टिव फ्लाइट्स हैं।

रेल मार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन सतारा यहां से करीब 62 किलोमीटर दूर है जहां के लिए मुम्बई, पुणे, हजरत निजामुद्दीन (दिल्ली), नागपुर आदि से ट्रेन हैं।

सड़क मार्ग : मुम्बई, पुणे, नासिक, सतारा, अमरावती, कोल्हापुर समेत महाराष्ट्र के लगभग प्रमुख शहरों से महाबलेश्वर के लिए नियमित बस सेवा है। मुम्बई-पुणे एक्सप्रेसवे ने महाबलेश्वर का सफर काफी सुविधाजनक बना दिया है।

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