Jageshwar: पतित पावन जटागंगा के तट पर समुद्रतल से लगभग 6200 फुट की ऊंचाई पर स्थित जागेश्वर धाम (Jageshwar Dham) में करीब ढाई सौ छोटे-बड़े मन्दिर हैं। मुख्य परिसर में 125 मन्दिरों का समूह है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मन्दिरों के निर्माण की अवधि को तीन कालों में बांटा गया है- कत्यरीकाल, उत्तर कत्यूरीकाल एवं चन्द काल।
न्यू हवेली नेटवर्क
उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा नगर से 35 किलोमीटर दूर स्थित है देवाधिदेव महादेवका पावन धाम जागेश्वर (Jageshwar)। पुराणों में इसे हाटकेश्वर भी कहा गया है। शिव पुराण, लिंग पुराण और स्कन्द पुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है। यहां के शिवलिंग को ज्योतिर्लिंग के सदृश्य माना गया है। इसे योगेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि लिंग के रूप में शिवपूजन की परम्परा यहां से ही शुरू हुई थी। जागेश्वर (Jageshwar) को उत्तराखण्ड का पांचवां धाम भी कहा जाता है।
पतित पावन जटागंगा के तट पर समुद्रतल से लगभग 6200 फुट की ऊंचाई पर स्थित जागेश्वर धाम (Jageshwar Dham) में करीब ढाई सौ छोटे-बड़े मन्दिर हैं। मुख्य परिसर में 125 मन्दिरों का समूह है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मन्दिरों के निर्माण की अवधि को तीन कालों में बांटा गया है- कत्यरीकाल, उत्तर कत्यूरीकाल एवं चन्द काल।
जागेश्वर की महिमा और मान्यताएं (Glory and beliefs of Jageshwar)
जटा गंगा के तट पर स्थित जागेश्वर धाम (Jageshwar Dham) को भगवान शिव की तपोस्थली कहा जाता है। हालांकि इसके ज्योतिर्लिंग होने को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं। ऋग्वेद में वर्णित “नागेशं दारुकावने” के आधार पर इसे दसवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है और पुराणों में इसे हाटकेश्वर कहा गया है। रुद्र संहिता में उल्लिखित “दारुकावने नागेशं” का स्थान गुजरात के द्वारका से करीब 17 किलोमीटर दूर है और इसे ही बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना गया है।
जागेश्वर मन्दिर (Jageshwar Temple) को उत्तराखण्ड का पांचवां धाम भी कहा जाता है। मान्यता है कि सुर, नर, मुनि से सेवित हो भगवान भोलेनाथ यहां जागृत हुए थे इसीलिए इस जगह का नाम जागेश्वर पड़ा। इस पावनस्थली के बारे में एक श्लोक है :
मा वैद्यनाथ मनुषा व्रजन्तु, काशीपुरी शंकर बल्ल्भावां।
मायानगयां मनुजा न यान्तु, जागीश्वराख्यं तू हरं व्रजन्तु।
(मनुष्य वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग न जा पाये, शंकर प्रिय काशी औरमायानगरी (हरिद्वार) भी न जा सके तो जागेश्वर धाम में भगवान शिव के दर्शन जरूर करना चाहिए।)

एक और मान्यता है कि सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की थी। शिवलिंग पूजन की परम्परा भी यहां से ही शुरू हुई थी। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मन्दिर (Jageshwar Temple) में मांगी गयी मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं जिसका भारी दुरुपयोग हो रहा था। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर (Jageshwar) आए और उन्होंने महामृत्युंजय में स्थापित शिवलिंग को कीलित करके इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। कीलित किए जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएंपूरी नहीं होतीं, केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं।
स्कन्द पुराण, लिंग पुराण और मार्कण्डेय पुराण में जागेश्वर की महिमा का बखान किया गया है। श्रद्धालु मानते हैं कि महामृत्युंजय मन्दिर में रुद्राभिषेक, जप आदि करने से मृत्युतुल्य कष्ट भी टल जाता है। सावन का महीना शिवजी का महीना माना जाता है, इसी कारण पूरे श्रावण मास में जागेश्वर में मेला लगा रहता है।
ऐसे पहुंचें जागेश्वर धाम (How to reach Jageshwar Dham)
यह मन्दिर परिसर अल्मोड़ा से करीब 35 और रानीखेत से लगभग 78 किलोमीटर दूर है। काठगोदाम रेलवे स्टेशन यहां से करीब 122 जबकि हल्द्वानी 127 किमी दूर है। नजदीकी एयरपोर्ट पन्तनगर यहां से करीब 150 किमी पड़ता है।
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