Sat. Mar 15th, 2025
Picture of China's under-construction heliport taken from satellite.Picture of China's under-construction heliport taken from satellite.

यह हेलीपोर्ट एलएसी से पूर्व की ओर 20 किलोमीटर की दूरी पर अरुणाचल प्रदेश के संवेदनशील फिशटेल इलाके के नजदीक बनाया जा रहा है।

नई दिल्ली। “मुंह में राम बगल में छुरी”। यह कहावत चीन पर एक बार फिर सटीक बैठ रही है। एलएसी पर चार स्थानों से अपनी सेना हटाने और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की दुहाई देते-देते उसने अरुणाचल प्रदेश से लगी सीमा यानी एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) पर नापाक हरकत की है। वह एलएसी के नजदीक एक हेलीपोर्ट बना रहा है। यह हेलीपोर्ट एलएसी से पूर्व की ओर 20 किलोमीटर की दूरी पर अरुणाचल प्रदेश के संवेदनशील फिशटेल इलाके के नजदीक बनाया जा रहा है। ईओएस डाटा एनालिटिक्स पर मौजूद सैटेलाइट से ली गई एक तस्वीर से चीन की इस नापाक हरकत का खुलासा हुआ है।

चीन की इस हरतत से दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है। चीन पहले से ही एलएसी से सटे इलाकों पर सैकड़ों गांव बसा चुका है जिन्हें जियाओकांग कहा जाता है। इन गांवों को उसने इस तरह बसाया है जिससे उनका सैन्य इस्तेमाल भी किया जा सके। इन खुराफातों की वजह से चीन की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं।

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एलएसी तक सैन्य साजो-सामान लाना होगा आसान

ग्रागीगाबू क्यू नदी के किनारे इस हेलीपोर्ट के बन जाने के बाद चीनी सेना के लिए भारत से लगती सीमा के पास सैन्य साजो-सामान और सैनिकों की आवाजाही आसान हो जाएगी। यह इलाका स्वायत्त क्षेत्र तिब्बत के नाइंगिच प्रांत में आता है। यह चीनी इलाका है और यहां पर भारत के साथ चीन का कोई विवाद नहीं है.

 सैटेलाइट से ली गई तस्वीर से पता चलता है कि जहां हेलीपोर्ट बनाया जा रहा है, वहां एक दिसंबर 2023 तक कोई निर्माण नहीं था। हालांकि 31 दिसंबर 2023 की एक सैटेलाइट तस्वीर से पता चलता है कि जमीन को निर्माण के लिए साफ किया जा रहा है। स्पेश टेक्नोलॉजी से जमीन पर नजर रखने वाली संस्था मैक्सर की ओर से बीते 16 सितंबर को ली गई हाई रिजोल्यूशन तस्वीर से पता चलता है कि वहां पर बहुत अधिक निर्माण कार्य किया जा चुका है।

अरुणाचल प्रदेश के फिशटेल इलाके को यह नाम उसकी सीमा के आकार को देखते हुए दिया गया है। यह फिशटेल-1 और फिशटेल-2 में बंटा हुआ है। फिशटेल-1 दिबांग घाटी में स्थित है जबकि फिशटेल-2 अंजॉ जिले में है। इन दोनों इलाकों को काफी संवेदनशील माना जाता है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि इस इलाके में एलएसी को लेकर भारत और चीन के दावे अलग-अलग हैं.

हेलीपोर्ट पर 600 मीटर लंबा रनवे

चीन जो हेलीपोर्ट बना रहा है, उसमें 600 मीटर का एक रनवे शामिल है। इसका इस्तेमाल हेलिकॉप्टरों के रोलिंग टेकऑफ (उड़ान) भरने में किया जाएगा। यह एक ऐसी तकनीक है, जिसे अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में इस्तेमाल किया जाता है जहां हेलिकॉप्टरों के लिए बहुत अधिक ऊर्जा नहीं होती है।

यह हेलीपोर्ट एक ऐसे इलाके में स्थित है जहां की ऊंचाई तिब्बती पठार के ऊंचे इलाकों की तुलना में काफी कम है। इससे हेलीकॉप्टर की आवाजाही में आसानी होगी। हालांकि पठार के बाकी के इलाके ऊंचाई की वजह से हेलिकॉप्टर की उड़ान के लिए ठीक नहीं हैं। इस इलाके में औसत ऊंचाई 15 सौ मीटर है। इतनी ऊंचाई में हेलीकॉप्टर और विमान अधिक पैलोड के साथ उड़ सकते हैं।  इस हेलीपोर्ट में कम से कम तीन हैंगर (जहां हेलिकॉप्टर या विमान रखे जाते हैं.) और एक एयर ट्रैफिक कंट्रोल टॉवर, उससे जुड़ी इमारतें और दूसरे निर्माण हैं।

क्या खतरे में आ जाएगी सीमा रेखा

भारतीय सेना की ईस्टर्न कमांड के प्रमुख रख चुके लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) प्रवीण बख्शी कहते हैं, ”यह हेलीपोर्ट उन प्रमुख इलाकों के लिए खतरा साबित हो सकता हैजिनको संवेदनशील माना जाता है।” उन्हंने आगे कहा,”मैं इसे गंभीरता से लूंगा और अगर जरूरी हुआ तो भारतीय वायु सेना के साथ मिलकर एक उपयुक्त प्रतिक्रिया की योजना बनाऊंगा जिससे इस इलाके में चीनियों के किसी ‘ग्रे-जोन’ युद्ध को कुशलता से रोका जा सके।” पारंपरिक युद्ध से कमतर युद्ध को ग्रे-जोन युद्ध कहा जाता है। इससे सीमा रेखाओं को खतरा होता है और स्थिरता खतरे में पड़ जाती है।

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