अदालत ने पति को अपने नाबालिग बच्चों के लिए अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने का आदेश दिया जो पिछले 6 वर्षों से अपनी मां के साथ रह रहे हैं।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर एक अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने एक गैर-दलित महिला और एक दलित व्यक्ति (एससी) के बीच विवाह को रद्द कर दिया। अदालत ने इसी के साथ पति को अपने नाबालिग बच्चों के लिए अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने का आदेश दिया जो पिछले 6 वर्षों से अपनी मां के साथ रह रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने महिला को निर्देश दिया कि वह बच्चों को समय-समय पर उनके पिता से मिलवाए, उन्हें छुट्टी पर ले जाने दे और उनके बीच अच्छे संबंध बनाए।
जस्टिस सूर्यकांत और उज्जल भुइयां की पीठ ने गुरुवार को यह अहम फैसला सुनाया। पीठ ने जूही पोरिया नी जावलकर और प्रदीप पोरिया को तलाक देते हुए स्पष्ट किया कि गैर-दलित महिला को भले ही शादी के आधार पर एसएसी का दर्जा नहीं मिल सकता लेकिन एससी से पैदा हुए उसके दोनों बच्चों को तलाक के बाद भी एससी का दर्जा मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने पति को आदेश दिया है कि वह 6 महीने के भीतर बच्चों को एससी सर्टिफिकेट बनवाकर दे।
सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में इस बात को दोहराया है और 2018 में एक फैसला भी दिया था कि इस बात पर कोई विवाद नहीं हो सकता कि जाति जन्म से निर्धारित होती है और अनुसूचित जाति (समुदाय) के व्यक्ति से शादी करके जाति नहीं बदली जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में कहा था, “जन्म से जाति तय होती है, शादी से नहीं। सिर्फ पति एससी होने से पत्नी एससी नहीं हो सकती।”
बच्चों को मिलेंगे एससी कोटे के अधिकार
ताजा मामले में 11 वर्षीय बेटा और 6 वर्षीय बेटी पिछले छह वर्षों से रायपुर में अपने नाना-नानी के घर गैर-दलित महिला के साथ रह रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों बच्चों को एससी जाति प्रमाणपत्र हासिल करने का फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों को सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और रोजगार के उद्देश्य से अनुसूचित जाति माना जाएगा।
न्यायमूर्ति सार्यकांत की अगुवाई वाली पीठ ने पति से कहा कि वह संबंधित अधिकारियों से संपर्क करे और छह महीने के भीतर दोनों बच्चों के लिए एससी प्रमाण पत्र प्राप्त करे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह स्नातकोत्तर तक बच्चों की शिक्षा का सारा खर्च वहन करेगा जिसमें प्रवेश और ट्यूशन फीस के साथ-साथ बोर्डिंग और लॉजिंग खर्च भी शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि महिला और बच्चों के आजीवन भरण-पोषण के लिए एकमुश्त समझौते के अतिरिक्त पुरुष को महिला को भी एकमुश्त धनराशि देनी होगी। महिला को 42 लाख रुपये एकमुश्त रूप से पति से मिलेंगे। पति रायपुर में अपनी जमीन का एक प्लॉट भी महिला को देगा।
दिलचस्प बात यह है कि पीठ ने अलग-थलग पड़े दंपती के बीच हुए समझौते में एक प्रावधान को भी प्रभावी कर दिया है जिसके तहत पति को अगले साल 31 अगस्त तक महिला को निजी इस्तेमाल के लिए दोपहिया वाहन खरीदना होगा।
पीठ ने एक-दूसरे के खिलाफ दर्ज क्रॉस-एफआईआर को भी रद्द कर दिया।