Bhoramdev Temple : मैकल पर्वत समूह के बीच में भोरमदेव मन्दिर करीब पांच फीट ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है। मन्दिर का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है जिस पर गंगा और यमुना की प्रतिमाएं बनी हुई हैं। इसके अतिरिक्त दक्षिण और उत्तर दिशाओं में भी द्वार हैं। तीनों प्रवेश द्वारों से सीधे मन्दिर के मण्डप में प्रवेश किया जा सकता है।
न्यूज हवेली डेस्क
छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले के मुख्यालय कवर्धा से बस पकड़ें तो आधा घण्टे की यात्रा के बाद पड़ता है चौरगांव। यहीं पर है ऐतिहासिक भोरमदेव मन्दिर (Bhoramdev Temple)। फनीनागवंशी राजा गोपाल देव ने 11वीं शताब्दी में इसका निर्माण करवाया था। ऐसा कहा जाता है कि गोण्ड राजाओं के देवता भोरमदेव थे। भोरमदेव शिवजी का ही एक नाम है जिसके कारण इसका नाम भोरमदेव मन्दिर पड़ा।
मैकल पर्वत समूह के बीच में यह भव्य मन्दिर करीब पांच फीट ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है। भोरमदेव मन्दिर (Bhoramdev Temple) का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है जिस पर गंगा और यमुना की प्रतिमाएं बनी हुई हैं। इसके अतिरिक्त दक्षिण और उत्तर दिशाओं में भी द्वार हैं। तीनों प्रवेश द्वारों से सीधे मन्दिर के मण्डप में प्रवेश किया जा सकता है। मण्डप की लम्बाई 60 और चौड़ाई 40 फीट है। मण्डप के बीच में चार जबकि किनारे की ओर 12 खम्भे हैं जिन पर छत टिकी हुई है। सभी खम्भे बहुत ही कलात्मक हैं।
नागर शैली में बने भोरमदेव मन्दिर (Bhoramdev Temple) के वास्तुशिल्प पर कोणार्क के सूर्य मन्दिर और खजुराहो के मन्दिरों का प्रभाव स्पष्ट नजर आता है। इसके मण्डप में लक्ष्मी, विष्णुऔर गरुड़ की मूर्तियों के अलावा भगवान के ध्यान में बैठे हुए एक राजपुरुष की भी मूर्ति है। गर्भगृह मन्दिर का प्राथमिक परिक्षेत्र है जहां शिवलिंग के रूप में पीठासीन देवता शिव की पूजा की जाती है। मन्दिर की दीवारों पर भगवान विष्णु और उनके दस अवतारों, महादेव शिव और उनके अर्धनारीश्वर स्वरूप, चामुण्डा, गणेश, लक्ष्मी, सरस्वती आदि की मूर्तियां हैं। मन्दिर की बाहरी दीवारों पर मिथुन मूर्तियां भी बनी हुई हैं जिसके चलते इसे “छत्तीसगढ़ का खजुराहो” भी कहा जाता है।

भोरमदेव मन्दिर (Bhoramdev Temple )श्रद्धालुओं के लिए सुबह पांच से दोपहर 12 बजे तक और शाम पांच से रात नौ बजे तक खुला रहता है। यहां जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी के बीच का है। इन दिनों पूरे छत्तीसगढ़ में मौसम काफी सुखद रहता है।
भोरमदेव मन्दिर (Bhoramdev Temple) परिसर के भीतर एक ओपन-एयर संग्रहालय है जिसमें पुरातात्विक कलाकृतियों का विशाल संग्रह है। इस परिसर में हाल ही में बजरंगबली के एक मन्दिर का निर्माण किया गया है। मुख्य मन्दिर से करीब एक किलोमीटर दूर मड़वा महल है। इसका निर्माण नागवंशी राजारामचन्द्र देव और राजकुमारी अम्बिका देवी के विवाह के उपलक्ष्य में कराया गया था। इस क्षेत्र में इस्तलीक मन्दिर भी है जिसके अब खण्डहर ही बचे हैं।
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ऐसे पहुंचें भोरमदेव मन्दिर (How to reach Bhoramdev Temple)

वायु मार्ग : निकटतम हवाईअड्डा बिलासपुर का बिलासा देवी केवट एयरपोर्ट भोरमदेव मन्दिर से करीब 124 जबकि रायपुर का विवेकानन्द इण्टरनेशनल एयरपोर्ट लगभग150 किलोमीटर दूर है।
रेल मार्ग : भोरमदेव मन्दिर जाने के लिए बिलसापुर और रायपुर जंक्शन की ट्रेन पकड़ना सबसे अच्छा विकल्प है। इन दोनों स्थानों के लिए देश के प्रमुख शहरों से ट्रेन मिलती हैं।
सड़क मार्ग : यह मन्दिर कवर्धा से करीब 17 किमी, बिलासपुर से लगभग 132 किमी, भिलाई से करीब 132 और रायपुर से करीब 134 किलोमीटर पड़ता है। रायपुर समेत छत्तीसगढ़ के सभी प्रमुख शहरों से कवर्धा के लिए बस और टैक्सी मिलती हैं।
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