Arulmigu Dhanadayuthapani Swamy Temple: अरुल्मिगु धनदायुथपानी स्वामी मन्दिर भगवान शिव के पुत्र भगवान मुरुगन यानी कार्तिकेय को समर्पित है और उनका सबसे प्रसिद्ध एवं सबसे विशाल मंदिर माना जाता है। मंदिर का परिसर काफी विशाल है और यहां तक पहुँचने के लिए 689 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर के गर्भगृह तक जाने की अनुमति किसी को भी नहीं है।
अरुल्मिगु धनदायुथपानी स्वामी मन्दिर (Arulmigu Dhanadayuthapani Swamy Temple) भगवान मुरुगन (अरुपादई वीदुगल) के छह निवासों में से तीसरा है। यह भारत के तमिलनाडु राज्य में पलानी पहाड़ियों की तलहटी में कोयंबटूर से 100 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और मदुरै के उत्तर-पश्चिम में डिंडीगुल जिले के पलानी (पलनि) शहर में स्थित है। थिरुमुरुगतरूपदाई के पुराने संगम साहित्य में थिरुवाविननकुडी के रूप में जाना जाने वाले पलानी मंदिर को पंचामृतम का पर्याय माना जाता है जो पांच सामग्रियों से बना एक मीठा मिश्रण है।
अरुल्मिगु धनदायुथपानी स्वामी मन्दिर (Arulmigu Dhanadayuthapani Swamy Temple) भगवान शिव के पुत्र भगवान मुरुगन यानी कार्तिकेय को समर्पित है और उनका सबसे प्रसिद्ध एवं सबसे विशाल मंदिर माना जाता है। मंदिर का परिसर काफी विशाल है और यहां तक पहुँचने के लिए 689 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर के गर्भगृह तक जाने की अनुमति किसी को भी नहीं है, फिर भी यहां श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बनी रहती है।
अरुल्मिगु धनदायुथपानी स्वामी मन्दिर की पौराणिक कथा (Mythology of Arulmigu Dhanadayuthapani Swamy Temple)

जब महर्षि नारद ने भगवान शिव और माता पार्वती को ज्ञानफलम अर्थात ज्ञान का फल उपहार स्वरूप दिया तो भगवान शिव ने उसे अपने दोनों पुत्रों भगवान गणेश और कार्तिकेय स्वामी में से किसी एक को देने का निर्णय लिया। इसके लिए दोनों के सामने यह शर्त रखी गई कि जो भी सम्पूर्ण संसार की परिक्रमा शीघ्रता से कर लेगा, उसे यह फल प्राप्त होगा। इसके बाद कार्तिकेय स्वामी अपने वाहन मोर पर सवार होकर निकल गए पूरे संसार की परिक्रमा करने लेकिन भगवान गणेश ने मात्र अपने माता-पिता की परिक्रमा की और कहा कि उनके लिए उनके माता-पिता ही संसार के समान हैं। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर वह ज्ञानफल भगवान गणेश को दे दिया। जब कार्तिकेय स्वामी परिक्रमा करके लौटे तो नाराज हो गए कि उनकी परिक्रमा व्यर्थ हो गई। इसके बाद कार्तिकेय स्वामी ने कैलास पर्वत छोड़ दिया और पलानी के शिवगिरि पर्वत पर निवास करने लगे। यहां ब्रह्मचारी मुरुगन स्वामी बाल रूप में विराजमान हैं।
अरुल्मिगु धनदायुथपानी स्वामी मंदिर का इतिहास एवं वास्तुकला (History and Architecture of Arulmigu Dhanadayuthapani Swamy Temple)

डिंडीगुल के पलानी के शिवगिरि पर्वत स्थित मुरुगन स्वामी के इस मंदिर (Arulmigu Dhanadayuthapani Swamy Temple) का इतिहास बहुत पुराना है। हालाकि वर्तमान मंदिर का निर्माण चेर राजाओं द्वारा कराया गया है लेकिन इसका वर्णन स्थल पुराणों और तमिल साहित्य में मिलता है।
अरुल्मिगु धनदायुथपानी स्वामी मंदिर (Arulmigu Dhanadayuthapani Swamy Temple) का निर्माण 5वीं-6वीं शताब्दी के दौरान चेर वंश के शासक चेरामन पेरुमल ने कराया। कहा जाता है कि जब पेरुमल ने पलानी की यात्रा की तो उनके सपनों में कार्तिकेय स्वामी आए और पलानी के शिवगिरि पर्वत पर अपनी मूर्ति के स्थित होने की बात बताई। राजा पेरुमल को वाकई उस स्थान पर कार्तिकेय स्वामी की मूर्ति प्राप्त हुई जिसके बाद पेरुमल ने उस स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया। इसके बाद चोल और पांड्य वंश के शासकों ने 8वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान मंदिर के विशाल मंडप और गोपुरम बनवाए। मंदिर को सुंदर कलाकृतियों से सजाने का काम नायक शासकों ने किया। मंदिर का गर्भगृह आरंभिक चेर वास्तुकला का है जबकि इसके चारों ओर चलने वाले ढके हुए कक्ष में पांड्य प्रभाव के अचूक निशान हैं, विशेष रूप से दो मछलियों पांडियन शाही प्रतीक चिन्ह के रूप में। गर्भगृह की दीवारों पर पुरानी तमिल लिपि में कई शिलालेख हैं। गर्भगृह के ऊपर सोने का एक गोपुरम है जिसमें पीठासीन देवता कार्तिकेय स्वामी और उनके परिचारक देवी-देवताओं की कई मूर्तियां हैं। मंदिर के हृदय के चारों ओर पहले आंतरिक प्रहारम या चलगृह में दो छोटे मंदिर हैं। एक-एक मंजिर शिव और पार्वती का है। इसके अलावा एक मंदि ऋषि भोगर का हैं जिन्हें किंवदंती के अनुसार मुख्य मूर्ति के निर्माण और अभिषेक का श्रेय दिया जाता है। दूसरे परिसर में कार्तिकेय स्वामी के स्वर्ण रथ के गाड़ी-घर के अलावा भगवान गणपति का एक प्रसिद्ध मंदिर है।

माना जाता है कि मुरुगन स्वामी की मूर्ति नौ अत्यन्त जहरीले पदार्थों को मिलाकर बनाई गई है। हालाकि आयुर्वेद में इन जहरीले पदार्थों को एक निश्चित अनुपात में मिलाकर औषधि निर्माण की प्रक्रिया का भी वर्णन है। मंदिर के गोपुरम को सोने से मढ़ा गया है।
अरुल्मिगु धनदायुथपानी स्वामी मन्दिर (Arulmigu Dhanadayuthapani Swamy Temple) की एक विशेषता यहां का प्रसाद है जिसे पंचतीर्थम प्रसादम कहा जाता है। इस विशेष प्रसाद को भौगोलिक संकेत या GI टैग भी प्रदान किया गया है। पंचतीर्थम को केला, घी, इलायची, गुड़ और शहद से तैयार किया जाता है। तिरुपति के लड्डू की तरह पलनि का यह पंचतीर्थम प्रसाद भी अत्यंत प्रसिद्ध है।
ऐसे पहुंचें अरुल्मिगु धनदायुथपानी स्वामी मन्दिर (How to reach Arulmigu Dhanadayuthapani Swami Temple)

वायु मार्ग : पलानी का सबसे नजदीकी हवाईअड्डा कोयंबटूर अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा है जो यहाँ से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मदुरै हवाईअड्डा भी पलनि से लगभग 125 किमी की दूरी पर स्थित है।
रेल मार्ग : पलनि में इसी नाम से रेलवे स्टेशन है जो कोयंबटूर-रामेश्वरम रेललाइन पर स्थित है। पलनि के लिए मदुरै, कोयंबटूर और पलक्कड से ट्रेन मिलती हैं। चेन्नई से पलनि के लिए रेल की बेहतर सुविधा उपलब्ध है।
सड़क मार्ग : सड़क मार्ग से भी पलनि पहुंचना आसान है क्योंकि तमिलनाडु राज्य परिवहन निगम की कई बड़े शहरों से पलनि के लिए चलाई जाती हैं। इसके अलावा केरल राज्य परिवहन की बसें कोझिकोड, कासरगोड, कोट्टयम, पलक्कड और एर्नाकुलम आदि शहरों को पलनि से जोड़ती हैं।
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